Saturday, December 21, 2024
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कल तक जिस अतीक की चलती थी सल्तनत, आज चालीसवें पर एक अदद फूल को तरस रही उसकी कब्र, पसरा सन्नाटा

अतीक और अशरफ की जिंदगी में जिस पुश्तैनी घर पर सैकड़ों का हुजूम मौजूद रहता था वहां आज कोई झांकने तक नहीं पहुंचा है। अतीक अहमद जब जिंदा था तो उसके साथ कभी सैकड़ों तो कभी हजारों की भीड़ पीछे चलती थी।

Reported By : Imran Laeek Edited By : Khushbu Rawal Published : May 25, 2023 17:35 IST, Updated : May 25, 2023 17:35 IST
atiq ahmed ashraf
Image Source : INDIA TV आज माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का चालीसवां है

प्रयागराज: माफिया अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ की हत्या हुए आज 40 दिन पूरे हो गए हैं। इस्लाम धर्म की रिवायत के मुताबिक अतीक और अशरफ का आज चालीसवां है। 5 बार के विधायक और एक बार के सांसद अतीक अहमद का उसकी जिंदगी में भले ही जबरदस्त रसूख और दबदबा रहा हो, लेकिन वक्त का सितम ऐसा है कि आज चालीसवे के मौके पर भी उसकी कब्र सूनी पड़ी हुई है। कब्रिस्तान से लेकर पुश्तैनी घर तक पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है। ना तो कब्र पर किसी ने फूल चढ़ाए हैं और ना ही घर पर चालीसवे से जुड़ी कोई रस्म अदा की जा रही है। कहा जा सकता है कि जिस अतीक अहमद की मर्जी के बिना कभी प्रयागराज में एक पत्ता भी नहीं हिलता था, आज उसी अतीक की कब्र किसी अपने की आमद के जरिए दो बूंद पानी और एक अदद फूल के लिए तरस रही है।

चालीसवें की रस्म में क्या-क्या होता है?

इस्लामिक परंपरा के मुताबिक किसी शख्स की मौत के 40 दिनों तक परिवार में मातम पसरा रहता है। इस दौरान कोई भी शुभ काम नहीं किए जाते, किसी तरह की खुशियां नहीं मनाई जाती। 40 दिन पूरे होने पर चालीसवें की रस्म अदा की जाती है। परिवार के सदस्य व दूसरे करीबी आमतौर पर सुबह के वक्त ही मरहूम यानी मृतक की कब्र पर जाते हैं। वहां फूल चढ़ाते हैं और चादर पोशी की जाती है। इस दौरान फातिहा पढ़ी जाती है और मरहूम को जन्नत में जगह मिलने की दुआएं की जाती है। इसके अलावा घरों पर धार्मिक ग्रंथों का पाठ किया जाता है। गरीबों को खाना खिलाया जाता है। भंडारे का आयोजन होता है। मिसकीनों को बर्तन कपड़ों व दूसरे सामानों का दान किया जाता है। चालीसवे की फातिहा पढ़ी जाती है और मृतक को कब्र के आजाब से बचाने के लिए विशेष दुआ की जाती है।

वीरान पड़ी है अतीक और अशरफ की कब्र
माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का आज चालीसवां जरूर है लेकिन ना तो उनकी कब्र पर कोई आंसू बहाने या फूल चढ़ाने के लिए पहुंचा है और ना ही शहर के चकिया इलाके में स्थित पुश्तैनी घर पर फातिहा हो रही है। बदनसीबी का आलम यह है कि रात के वक्त अतीक और अशरफ की कब्र पर किसी ने चरागां यानी रोशनी भी नहीं की। एक दीया तक नहीं जलाया गया। अतीक और अशरफ की कब्र आज खास दिन भी वीरान पड़ी हुई है। शहर के कसारी मसारी इलाके के जिस कब्रिस्तान में इन्हें दफनाया गया, वहां आज पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है।

अतीक के चालीसवे पर लोगों की दूरी की क्या वजह?
अतीक और अशरफ की जिंदगी में जिस पुश्तैनी घर पर सैकड़ों का हुजूम मौजूद रहता था वहां आज कोई झांकने तक नहीं पहुंचा है। अतीक अहमद जब जिंदा था तो उसके साथ कभी सैकड़ों तो कभी हजारों की भीड़ पीछे चलती थी। काफिले में दर्जनों गाड़ियां शामिल रहती थी, आज मौत के बाद जब अपनों व दूसरे करीबियों ने साथ छोड़ दिया है तो गैरों से किसी तरह की उम्मीद पूरी तरह बेमानी है। वैसे चालीसवे के दिन लोगों की यह दूरी और बेरुखी कतई हैरान करने वाली नहीं है क्योंकि माफिया के परिवार के ज्यादातर सदस्य या तो जेल में हैं या फिर जेल जाने के डर से पुलिस से बचते हुए फिर रहे हैं।

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गौरतलब है कि माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या आज से ठीक 40 दिन पहले 15 अप्रैल को प्रयागराज के कॉल्विन हॉस्पिटल में पुलिस कस्टडी में की गई थी। मौके से ही तीन शूटर पकड़े गए थे। शूटरों ने पुलिस को जो बयान दिया है वह फिलहाल किसी के गले नहीं उतर रहा है। उमेश पाल शूटआउट केस के बाद से अतीक अहमद और उसके परिवार के जो दुर्दिन शुरू हुए वह फिलहाल खत्म होते नजर नहीं आ रहे हैं।

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