मुरादाबाद: असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने मुसलमानों द्वारा विवाह और तलाक के पंजीकरण से जुड़े 89 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया है। इन कानूनों के रद्द होने पर सरकार का UCC की तरफ बढ़ता हुआ एक कदम बताया जा रहा है। वहीं अब इस फैसले को लेकर समाजवादी पार्टी के नेता और सांसद एसटी हसन ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार के ऐसे फैसले असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का एक प्रयास है।
सभी धर्मों की अपनी-अपनी परम्पराएं- एसटी हसन
उन्होंने कहा, "सरकार कानूनों में बदलाव कर रही है। लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। मुसलमान शरिया और कुरान के हिसाब से ही चलेगा। हम हजारों वर्षों से इन कानूनों को मानते आ रहे हैं और आगे भी मानते रहेंगे।" सपा नेता ने कहा कि आप कानूनों में बदलाव करके यह नहीं कह सकते कि हिंदू शवों को जलाने की जगह दफनाना शुरू कर दे। या मुसलमान निकाह की जगह कुछ और तरीका अपना ले। सभी धर्मों के अपनी-अपनी परम्पराएं हैं। यह साफ़-साफ़ लोगों के धार्मिक अधिकारों में दखल है।
असम के कानूनों में हुआ है बदलाव
बता दें कि शुक्रवार देर रत हुई असम सरकार की कैबिनेट बैठक में मुसलमानों द्वारा विवाह और तलाक के पंजीकरण से जुड़े 89 साल पुराने कानून को रद्द करने का फैसला किया था। इस अधिनियम में मुस्लिम विवाह और तलाक के स्वैच्छिक पंजीकरण का प्रावधान था और सरकार को एक मुस्लिम व्यक्ति को ऐसे पंजीकरण के लिए आवेदन पर मुस्लिम विवाह और तलाक को पंजीकृत करने के लिए अधिकृत करने वाला लाइसेंस प्रदान करना होता था।
असम के कानून में क्या हुआ बदलाव?
पर्यटन मंत्री बरुआ ने कहा कि आज के इस फैसले के बाद असम में अब इस कानून के तहत मुस्लिम विवाह और तलाक को पंजीकृत करना संभव नहीं होगा। हमारे पास पहले से ही एक विशेष विवाह अधिनियम है और हम चाहते हैं कि सभी विवाह इसके प्रावधानों के तहत पंजीकृत हों। मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने बताया कि असम में वर्तमान में 94 अधिकृत व्यक्ति हैं जो मुस्लिम विवाह और तलाक का पंजीकरण कर सकते हैं। लेकिन कैबिनेट के फैसले के साथ, जिला अधिकारियों द्वारा इसके लिए निर्देश जारी करने के बाद उनका अधिकार समाप्त हो जाएगा।