Mahakumbh 2025: ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि गृहस्थ लोगों को कल्पवास में आध्यात्मिक जीवन का आनंद मिलता है इसलिए वे घर-बार छोड़कर एक महीने के लिए कल्पवास करते हैं। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कल्पवास के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि जब भी कोई काम करना होता है तो हम उसकी पूरा योजना बनाते हैं। उसी तरह कल्पवास एक महीने का होता है और उसकी पूरी योजना बनाई जाती है। योजनाबद्ध तरीके से जीवन को जीते हैं। क्या, कबतक और कैसे करूंगा, इसका परिणाम क्या होगा? ये हम संकल्प में कहते हैं। फिर निश्चय और नियमों का पालन करते हैं। यह पूरे एक महीने तक चलता है। संन्यासी का जीवन जीना होता है। एक समय का सात्विक भोजन, प्रात: काल उठकर गंगा स्नान, ब्रह्मचर्य का पालन, असत्य नहीं बोलना होगा, जप तप और सत्संग, इस तरह से एक संन्यासी का जीवन जीते हुए अगली पूर्णिमा तक की अवधि पूरी करनी होती है।
कल्पवास में मिलता है आध्यात्मिक आनंद
उन्होंने बताया कि संन्यासी गृहस्थ में नहीं जाता है क्योंकि वह उसी जीवन से आया होता है। गृहस्थ व्यक्ति के पास संन्यास का अनुभव नहीं होता है तो फिर वह सोचता है कि संन्यासियों के पास कुछ नहीं है फिर भी वे सुखी हैं। तो वह सोचता है कि मैं भी एक महीना कल्पवास कर लूं। वे एक महीना संन्यासियों के साथ जीकर कल्पवास करते हैं। घर में उन्हें वह आनंद नहीं मिलता है जो यहां कल्पवास में मिलता है। गृहस्थ लोगों को कल्पवास में आध्यात्मिक जीवन का आनंद मिलता है।
जो व्यक्ति जहां है वहां से ऊंचा उठ सकता है
वहीं दलित को शंकराचार्य बनाने से जुड़े सवाल पर अविमुक्तेश्वरानंद ने दलित को कभी शंकराचार्य बनने से नहीं रोका गया...दलित समाज के संत रविदास सबसे बड़े गुरु बने। जो व्यक्ति जहां है वहां से ऊंचा उठ सकता है। हमको हमारे भाई के खिलाफ खड़ा करने की साजिश राजनीतिज्ञों द्वारा की गई है जो ठीक नहीं है।
हमने किसी मस्जिद में शिवलिंग नहीं खोजा
वहीं ज्ञानवापी के सवाल पर उन्होंने कहा कि अपने अधिकार प्राप्ति के लिए लड़ाई होती है वो ठीक है। हमने किसी मस्जिद में शिवलिंग नहीं खोजा.. जहां हमारे मंदिर हैं वहीं हम उसे खोज रहे हैं। संभल के सवाल पर उन्होंने कहा कि जहां-जहां उल्लेख है और प्रमाण उपलब्ध हो रहे हैं वहां के अधिकार प्राप्ति का हक मिलना चाहिए।
भारत को किसी बाहरी से कभी खतरा नहीं
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि भारत को किसी बाहरी से कभी खतरा नहीं रहा.. जो लोग भारत में रहते हैं और बाहर की बात करते हैं उनसे खतरा है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य आत्म कल्याण के साथ ही हर शख्स के आत्म उत्थान की बात करते हैं। वहीं सबसे बड़े धार्मिक ग्रंथ के सवाल पर उन्होंने कहा कि कोई भी ग्रंथ उठा लीजिए उसमें सबकुछ मिल जाएगाा। शंकराचार्य ने कहा कि हम जो हैं उसी में कुछ ऐसा करें कि गौरव की अनुभूति हो।
एक व्य़क्ति के होते हैं अनंत जन्म
वहीं पुनर्जन्म से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा कि एक व्य़क्ति के अनंत जन्म होते हैं। जब तक ज्ञान को प्राप्त नहीं करता है तब तक आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में भ्रमण करती हैं। वहीं गुरु के महत्व के बारे में उन्होंने कि बिना गुरु के ईश्वर मिल भी जाएं तो पता नहीं चलेगा। हर व्यक्ति को ईश्वर उपलब्ध है लेकिन उसे पता नहीं चलता है। कोई बताने वाला आ जाता है तो वह ईश्वर को जान जाता है।