Thursday, November 21, 2024
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Lok Sabha Elections 2024: न वोटर कार्ड न ही कोई मतदाता पहचान पत्र... वृंदावन में गुमनामी में जी रही ऐसी कितनी ही विधवाएं; नेताओं ने मूंद ली आंखें

चुनावी महाकुंभ में इन विधवाओं के लिए किसी के पास कोई वादा नहीं है और ना ही भविष्य में कुछ बदलने का किसी ने सपना दिखाया है। परिवार के साथ समाज और सियासत ने भी इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया है और इन्होंने भी मान लिया है कि बृजभूमि की गलियों में गुमनाम मौत के अलावा इनके मुस्तकबिल में कुछ और है ही नहीं।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Updated on: April 10, 2024 14:39 IST
vrindavan widows- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO वृंदावन की विधवाएं

‘‘मेरी उम्र अब 80 साल हो गई है। इतने साल बहुत कोशिश की लेकिन अब इस उम्र में मतदाता के रूप में पहचान पाकर भी क्या करूंगी? दर-दर भटकने से अच्छा है कि आखिरी समय शांति से प्रभु के भजन में बिता दूं।’’ यह कहना है वृंदावन में एक मंदिर में भजन के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही अनिता दास का। कोलकाता से 17 साल पहले पति के निधन के बाद वृंदावन आई दास की तरह की हजारों विधवायें ऐसी हैं जिन्हें परिवार ने ठुकरा दिया, समाज ने भी जगह नहीं दी और मतदाता पहचान पत्र नहीं होने के कारण अब लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव में भी उनकी सहभागिता नहीं है।

10 रुपये के लिए चार घंटे इंतजार करती हैं विधवाएं

मथुरा लोकसभा क्षेत्र में वृंदावन, राधाकुंड और गोवर्धन की तंग गलियों में कहीं भीख मांगती, कहीं तपती धूप में भंडारे की कतार में खड़ी तो कहीं मात्र 10 रुपये के लिये चार घंटे भजन गाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करती सफेद साड़ी में लिपटी ये महिलायें किसी राजनीतिक दल का वोट बैंक नहीं हैं। लिहाजा राजनीतिक उदासीनता ही इनकी नियति है। मथुरा के 18 लाख से अधिक मतदाताओं में इनकी संख्या एक प्रतिशत भी नहीं है। परिवार छोड़ा तो पहचान भी ये वहीं छोड़ आईं। आश्रमों में रहने वाली इन महिलाओं में से नाममात्र के पास मतदाता के रूप में पहचान पत्र है लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव पर खड़ी इन अधिकांश महिलाओं का नाम किसी मतदाता सूची में दर्ज नहीं है। दास ने कहा,‘‘मुझे पता है कि चुनाव हो रहे हैं। बंगाल की हालत भी गंभीर है लेकिन मैं यहां शांति से रहना चाहती हूं। ना तो वोट डालने में रूचि रह गई है और ना ही वोटर आईडी बनवाने में।’’

देश की नागरिक तो हैं लेकिन मतदाता नहीं

वहीं पति के निधन के बाद बहू की कथित प्रताड़ना से तंग आकर 15 साल पहले यहां आई महानंदा अपनी स्मृति पर जोर डालने की कोशिश करते हुए कहती हैं, ‘‘शायद दस साल पहले वोट डाला था। मेरे पास आधार कार्ड है लेकिन वोटर आई डी नहीं है और बनवाने के लिए अब इधर किसको बोलूं?’’ लेकिन 67 साल की गायत्री मुखर्जी को इसका मलाल है कि वह देश की नागरिक तो हैं लेकिन मतदाता नहीं। पति के न रहने के बाद इकलौती बेटी को कैंसर से खोने के कारण बेसहारा हुई मुखर्जी इलाज के लिए लिया गया कर्जा चुकाकर वृंदावन आई थीं। उन्होंने कहा, ‘‘पहले मैं किराये से रहती थी लेकिन हमेशा डर रहता था कि पास में थोड़ा बहुत जो भी सामान है, चोरी न हो जाये। इसके अलावा कदम-कदम पर अपमान होता था सो अलग। मेरी किस्मत अच्छी थी कि आश्रम में जगह मिल गई।’’ राजनीतिक रूप से काफी जागरूक मुखर्जी ने कहा, ‘‘कोलकाता में मैंने हर चुनाव में मतदान किया। मैं इस देश की नागरिक हूं और मुझे लगता है कि सरकार बनाने में मेरा भी योगदान होना चाहिए। शायद अब यह संभव नहीं तो दुख मनाने से क्या होगा।’’

वृंदावन में हैं 10-12 हजार विधवाएं

वैसे तो कभी भी इन महिलाओं की आधिकारिक तौर पर गिनती नहीं की गई लेकिन एक अनुमान के अनुसार करीब 10 हजार से 12 हजार विधवायें वृंदावन में हैं। पिछले चौदह साल से इन महिलाओं के कल्याण के लिए कार्यरत ‘मैत्री’ विधवा आश्रम की सह संस्थापक और कार्यकारी निदेशक विन्नी सिंह ने कहा,‘‘आखिरी बार 2007 में इनकी गणना हुई थी जिसके बाद से कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है लेकिन करीब 10 से 12 हजार विधवायें वृंदावन में हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इनमें अब सिर्फ बंगाल ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश से भी महिलाएं आ रही हैं। मुझे रोज 25 से 30 फोन आते हैं। हम 400 महिलाओं की देखभाल कर रहे हैं लेकिन इससे कहीं बड़ा आंकड़ा उनका है जिनके पास छत नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इनमें से पांच से सात प्रतिशत के पास ही वोटर आईडी होगा। हमने आधार कार्ड बनवाये, बैंक खाते भी कइयों के खुल गए लेकिन वोटर आईडी के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटकर अब थक गए हैं। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये वोट देती हैं या नहीं।’’

तंग और किराये के गंदे कमरों में रहने को हैं मजबूर 

अभिनेता आमिर खान के काफी लोकप्रिय रहे शो ‘सत्यमेव जयते’ में विधवाओं की व्यथा रखने वाली सिंह ने कहा, ‘‘अधिकांश को विधवा पेंशन जैसी सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा है। सिर्फ 300 रुपये महीना पेंशन का प्रावधान है लेकिन दुखद है कि वह भी सभी को मयस्सर नहीं है।’’ कुछ को निजी या सरकारी आश्रमों में जगह मिल गई लेकिन अधिकांश तंग और किराये के गंदे कमरों में रहने को मजबूर हैं। मंदिरों के शहर वृंदावन में भजन गाने के लिये इन्हें टोकन मिलता है और चार घंटे भजन गाकर दस रूपये के साथ चाय और एक समय का खाना। अपनी बारी आने के लिये इन्हें लंबा इंतजार भी करना पड़ता है।

सांसद हेमा मालिनी ने क्या कहा?

वृंदावन के बीचों बीच चैतन्य विहार स्थित सरकारी आश्रय सदन को बंद करके इन्हें शहर के बाहरी इलाके में साढे़ तीन एकड़ में फैले एक हजार बिस्तरों वाले कृष्ण कुटीर में भेजा गया लेकिन वहां मुश्किल से 250 महिलाएं रहती हैं। अधिकांश महिलाएं इसलिए नहीं जाना चाहती कि वे भगवान कृष्ण और वृंदावन से दूर हो जाएंगी। मथुरा से तीसरी बार चुनाव लड़ रही सांसद हेमा मालिनी ने कहा, ‘‘2018 में इनके लिए कृष्ण कुटीर बनाया गया जहां सारी अत्याधुनिक सुविधायें हैं। लेकिन ये वहां जाना ही नहीं चाहतीं। शायद ये जहां रहती हैं, वहीं खुश हैं। हम भी क्या कर सकते हैं।’’ (भाषा)

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