बीजेपी की दसवीं सूची में पूर्वांचल के गाजीपुर को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता और चर्चाएं थी। इस हाई-प्रोफाइल और बहुचर्चित सीट पर बीजेपी किसे उम्मीदवार बनाएगी, इसे लेकर बहुत सारे कयास लगाए जा रहे थे। असल में यह सिर्फ एक सीट का मसला नहीं था, बल्कि पूर्वांचल की सियासत के एक प्रमुख नैरेटिव केंद्र के तौर पर यह लोकसभा सीट सुर्खियां बटोरती है। बीजेपी ने इस सीट पर जिस उम्मीदवार का चयन किया है, उनका नाम पारस नाथ राय है। पूर्वांचल में ये नाम चौंकाने वाला था। अब ये चर्चाएं खूब चल रही हैं कि आखिर किस आधार पर पारसनाथ के नाम पर मुहर लगी?
चयन के पीछे ये है इनसाइड स्टोरी
इंडिया टीवी पर हम आपको गाजीपुर में बीजेपी उम्मीदवार के चयन के पीछे की पूरी कहानी बता देते हैं। दरअसल, पूर्वांचल में बीजेपी को एक भूमिहार उम्मीदवार देना ही था। यूपी, बिहार में भूमिहार के सबसे बड़े नेता के तौर पर ख्यातिप्राप्त मनोज सिन्हा की सीट गाजीपुर रही है। पार्टी के आंतरिक सर्वे में गाजीपुर से दो नाम ही आए थे - पहला मनोज सिन्हा और दूसरा नाम उनके बेटे अभिनव सिन्हा का था। अभिनव ईंजिनियर हैं और मनोज सिन्हा के जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल बनने के बाद राजनीतिक, सामाजिक कार्यक्रमों की कमान बेटे अभिनव ने ही संभाल रखी है। अपने सहज मिलनसार व्यवहार और सक्रियता से कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच बहुत जल्द अपनी स्वीकार्यता बनाने में अभिनव सफल रहे हैं।
लेकिन पीएम मोदी के लिए जम्मू कश्मीर बड़ी प्राथमिकता है और मनोज सिन्हा के उपराज्यपाल बनने के बाद लगातार अच्छी सुर्खियां बटोर रहे कश्मीर में किसी तरह का प्रयोग किए जाने के बजाय यह तय किया गया कि मनोज सिन्हा वहीं की जिम्मेदारी संभालें। अब इसके बाद सर्वे में आए दूसरे नाम यानी मनोज सिन्हा के बेटे अभिनव को टिकट देने में सबसे बड़ा रोड़ा 'परिवारवाद' का आरोप था। इसलिए बीजेपी ने इस नाम से भी परहेज किया।
भूमिहार उम्मीदवार की थी दरकार
बलिया और गाजीपुर ही ऐसी सीट है जहां से किसी भूमिहार उम्मीदवार को उतारा जा सकता था। बलिया में ठाकुर उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह का टिकट काटकर किसी भूमिहार को टिकट देना रिएक्शनरी कदम हो सकता था। दूसरी समस्या ये थी कि बलिया में कोई सक्षम भूमिहार उम्मीदवार नहीं था। जो नाम था, उसकी बलिया में भी पहचान नहीं थी जबकि बीजेपी एक भूमिहार उम्मीदवार के मार्फत गाजीपुर, बलिया, घोसी, आजमगढ़, बनारस जैसे सारे क्षेत्रों के भूमिहार को मैसेज देना चाहती थी। इसलिए बलिया से ठाकुर नीरज शेखर की उम्मीदवारी तय की गयी और गाजीपुर में भूमिहार देना तय हुआ।
ऐसे तय हुआ पारस नाथ का नाम
इसके बाद गाजीपुर में एक और नाम कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय का आया लेकिन वो पिछला विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं। इसके बाद संघ ने अपने स्वयंसेवक और विभाग संपर्क प्रमुख रिटायर्ड प्रिंसिपल पारस नाथ राय के नाम को आगे बढ़ाया। 68 वर्षीय पारसनाथ राय की छवि क्लीन रही है और गाजीपुर में "अंसारी के बाहुबल बनाम संघ की स्वच्छ छवि" का नैरेटिव बनाने का अवसर दे रही थी। संघ कार्यकर्ता के तौर पर मनोज सिन्हा के चुनावी प्रबंधन में इनकी सक्रिय भूमिका हर चुनाव में रही है। पारस नाथ की छवि के साथ कोई नकारात्मक बैगेज नहीं है। इसलिए बीजेपी आलाकमान ने संघ की पसंद पर मुहर लगा दी और पारस नाथ को अफजाल अंसारी के सामने उतार दिया। अब नतीजे बताएंगे कि आरएसएस का ये दांव सीधा पड़ा या उल्टा!
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