लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। इस चुनाव के लिहाज से उत्तर प्रदेश का अहम स्थान है। यहां लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। यूपी में 19 अप्रैल से 1 जून तक कुल 7 चरणों में चुनाव आयोजित होंगे। इसी में से एक सीट आजमगढ़ भी है। आजमगढ़ पूर्वांचल की सबसे चर्चित क्षेत्रों में से एक है और ऐसी सीट है जहां कांटे की टक्कर होने की संभावना है। बता दें कि भाजपा ने इस सीट से वर्तमान सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ को फिर से टिकट दिया है। वहीं, अखिलेश यादव ने भी अपने परिवार के धर्मेंद्र यादव को एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। आइए समझते हैं इस सीट पर क्या है पूरा समीकरण।
क्या है आजमगढ़ सीट का इतिहास?
आजमगढ़ सीट हमेशा से उत्तर प्रदेश की चर्चित सीट रही है। अगर बीते कुछ चुनावों की बात करें तो इस सीट पर 3 बार सपा, 3 बार बसपा और 2 भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। इस सीट से 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव भी चुनाव जीत चुके हैं। अखिलेश यादव ने 2019 में भाजपा के निरहुआ को करीब 2 लाख 60 हजार वोट के बड़े अंतर से हराया था। हालांकि, अखिलेश यादव ने आगे जाकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था और सांसदी से इस्तीफा दे दिया था। इस कारण 20022 में आजमगढ़ में उपचुनाव हुए जिसमें भाजपा के निरहुआ ने सपा के धर्मेंद्र यादव को हराया।
क्या है इस बार का समीकरण?
भाजपा के निरहुआ ने 2022 में आजमगढ़ सीट पर धर्मेंद्र यादव को करीब 8 हजार वोटों से हराया था। यानी कि मुकाबला तब भी टक्कर का था। तब बसपा ने गुड्डू जमाली को यहां पर अपना उम्मीदवार बनाया था। जमाली भी आजमगढ़ के चर्चित नेता थे और उन्होंने चुनाव में 2 लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। इस बार खास बात ये है कि गुड्डू जमाली अब सपा में शामिल होकर MLC बन चुके हैं। यानी धर्मेंद्र यादव को इस मामले में बढ़त है। इस कारण निरहुआ को सीट बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है।
क्या है आजमगढ़ का जातीय समीकरण?
आजमगढ़ सीट पर लगभग 18 लाख वोटर्स हैं। इनमें से यादव और मुस्लिम वोटर सबसे ज्यादा हैं। मुस्लिम यादव वोटर्स को जोड़कर M+Y का ये आंकड़ा करीब 40 फीसदी से अधिक तक पहुंच जाता है। बता दें कि बीते चुनाव में सपा और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इस बार कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन है। इसके अलावा 50 फीसदी से ऊपर अन्य जातियों के वोटर्स हैं। माना जाता है कि क्षेत्र में दलित वोटर्स की संख्या करीब 3 लाख है।
क्यों आसान नहीं है किसी की जीत?
आजमगढ़ सीट पर निरहुआ या धर्मेंद्र यादव में से सीधे तौर पर किसी को भी आगे दिखाना जल्दबाजी होगी। निरहुआ भी यादव हैं और वह अपने संसदीय क्षेत्र में बीते कुछ समय से काफी एक्टिव रहे हैं। भाजपा लगातार यादव-मुस्लिम वोट को अपनी ओर करने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा भाजपा के साथ इस बार ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान भी हैं। वहीं, अगर बसपा यहां फिर से किसी पॉपुलर उम्मीदवार को टिकट देती है तो आजमगढ़ का मुकाबला एक बार फिर से काफी रोचक हो सकता है।
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