इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि कानून विशेष विवाह अधिनियम के तहत अंतरधार्मिक जोड़ों को धर्म परिवर्तन के बिना शादी करने का अधिकार देता है। हाई कोर्ट ने कहा है कि जो अंतरधार्मिक जोड़े विवाह के लिए अपना धर्म नहीं बदलना चाहते, वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह का रेजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने धमकियों का सामना कर रहे एक अंतरधार्मिक लिव-इन जोड़े को सुरक्षा भी प्रदान की है।
कोर्ट ने खारिज किया राज्य का तर्क
दरअसल, राज्य सरकार ने इस याचिका का विरोध किया था और कहा था कि संबंधित व्यक्ति पहले ही एक समझौते के अनुसार शादी कर चुके हैं। इस तरह के विवाह को कानून में मान्यता नहीं दी जाती है और इसी कारण उन्हें कोई सुरक्षा भी नहीं दी जा सकती है। हालांकि, न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने इस तर्क को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता धर्म परिवर्तन का प्रस्ताव नहीं
मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने तर्क दिया कि समझौते के माध्यम से विवाह कानून में अमान्य तो है लेकिन ये पक्षों को बिना धर्म परिवर्तन किए विशेष विवाह समिति के तहत अदालत में विवाह के लिए आवेदन करने से नहीं रोकता है। कोर्ट ने कहा कि जोड़े द्वारा एक पूरक हलफनामा प्रस्तुत किया गया है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे अपने विश्वास/धर्म का पालन करना जारी रखेंगे और धर्म परिवर्तन का प्रस्ताव नहीं करेंगे।
शादी को संपन्न करने का निर्देश
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुरक्षा प्रदान किया और विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपनी शादी को संपन्न करने का निर्देश दिया। इस मामले की अगली सुनवाई 10 जुलाई को होगी। आपको बता दें कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 विभिन्न धर्मों के लोगों के विवाह के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इस कानून के तहत कोई भी अपना धर्म बदले बिना दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी कर सकता है।
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