गाजीपुर: लोकसभा चुनाव के तीन चरणों के लिए मतदान हो चुका है। अभी 4 चरण बकाया हैं, जिसके बाद 4 जून को नतीजे भी आ जाएंगे। यूपी के गाजीपुर में लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प है क्योंकि यहां से समाजवादी पार्टी ने अफजाल अंसारी को मैदान में उतारा है। अफजाल को गाजीपुर का बाहुबली माना जाता है और वह पांच बार विधायक और 2 बार सांसद रह चुके हैं। साल 2019 में वह बीजेपी नेता मनोज सिन्हा को हराकर संसद पहुंचे थे।
कौन हैं अफजाल?
अफजाल ने कम्युनिस्ट पार्टी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर अफजाल संसद पहुंचे थे। 2009 और 2014 में भी उन्होंने चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों बार हार मिली। 2019 में बीजेपी नेता मनोज सिन्हा को हराकर वह फिर संसद पहुंचे।
अफजाल अंसारी पर 7 मुकदमे दर्ज हैं। मुख्तार अंसारी को अफजाल से ही सियासी सरंक्षण मिला। अफजाल की छत्र छाया में अपराध और राजनीति में दबदबा बनाया। अफजाल कम्यूनिस्ट पार्टी, एसपी, बीएसपी में रहे।
मुख्तार के बाहुबल के दम पर अफजाल बैक टू बैक 5 बार विधायक बने। अफजाल अंसारी के लिए नुसरत डोर टू डोर कैम्पेन कर रही हैं। वह महिलाओं को चाची, दीदी बोलकर कनेक्ट करती हैं।
गाजीपुर में अंसारी परिवार का दबदबा कैसा है?
गाजीपुर यूपी के पूर्वांचल का आखिरी छोर है, लेकिन इस वक्त पूरे पूर्वांचल की पॉलिटिकस का यही सेंटर प्वाइंट है। अंसारी परिवार इसकी बड़ी वजह है। गाजीपुर के यूसुफपुर मुहम्मदाबाद की पुश्तैनी हवेली में पूरा अंसारी परिवार रहता है। इसे गाजीपुर में बड़का फाटक के नाम से जाना जाता है। बड़का फाटक एक ऐसा माइलस्टोन है, जिसे किसी पते, पहचान या पिन कोड की जरुरत नहीं है।
मुख्तार अंसारी के बाहुबली बनने की कहानी भी इसी बड़का फाटक से शुरु हुई थी। अंसारी खानदान की इस पुश्तैनी हवेली को बड़का फाटक कहे जाने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। इस हवेली के चारों तरफ दीवारे हैं, जैसे राजा बादशाहों के महल के चारों तरफ होती हैं। इस हवेली में आने-जाने का सिर्फ एक ही रास्ता है, जिस पर बड़ा सा गेट लगा है।
हवेली में दरबार लगाने की रवायत कई दशकों पुरानी है। इसी फाटक पर मुख्तार का दरबार भी लगता था और इसी फाटक पर मुख्तार के दादा का भी दरबार लगता था। लेकिन दोनों के दरबार लगाने का तरीका काफी अलग हुआ करता था। मुख्तार के दादाजी बड़े लोकप्रिय थे। लोग उनसे इंसाफ और मदद मांगने आते थे। कहा जाता है कि तब लोग कोर्ट कचहरी से बचने के लिए विवाद होने पर फाटक आते थे। मुख्तार ने भी इस प्रथा को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन दरबार में आम आदमी से ज्यादा खास और दबंग आने लगे।