Wednesday, December 04, 2024
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जिंदगी की गाड़ी चलाने को बेच रहे बच्चों की हाथ गाड़ी, 90 साल के बुजुर्ग का दुख-दर्द सुन आंखों में आ जाएंगे आंसू

फुटपाथ पर बैठे 90 वर्षीय वृद्ध बताते हैं कि गाड़ी और खिलौने बेचना उनका पेशा नहीं बल्कि मजबूरी है। खिलौनों की बिक्री न होने पर कभी-कभी उन्हें भूखा ही सोना पड़ता है लेकिन इस उम्र में भी उनके अंदर जीने और संघर्ष करने का आत्मविश्वास उन्हें टूटने नहीं देता है।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : Dec 04, 2024 8:55 IST, Updated : Dec 04, 2024 8:59 IST
elderly man kalicharan- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV 90 वर्षीय वृद्ध बाबा कालीचरण

कन्नौज: सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में बच्चों को बुढ़ापे की लाठी (सहारा) का दर्जा दिया जाता है। लेकिन आधुनिकता और विलासिता की चकाचौंध ने संस्कार और परपंराओं को ताक पर रख दिया है। फिर भला अपनों से धोखा खाए वृद्ध कहां जाएं? सरकार भी दो जून की रोटी और जिंदा रहने के लिए भटक रहे वृद्ध की सुध नहीं ले रही। जिस उम्र में वृद्ध को बच्चों के साथ खेल कर समय बिताना चाहिए, मजबूरन उसे उम्र में आराम करने के बजाय बच्चों की हाथ गाड़ी बेचकर जीवन यापन करना पड़ रहा है। इस बेबसी और मजबूरी तक न तो सरकार की योजनाएं पहुंच रही है और न ही दानवीर समाजसेवियों की मदद। वृद्ध सडक़ किनारे जिंदगी के बचे दिन गुजारने को मजबूर है।

पेशा नहीं, मजबूरी है खिलौने बेचना

नगर के मोहल्ला सुभाष नगर में किराये के मकान में गुजर बसर कर रहे 90 वर्षीय वृद्ध बाबा कालीचरण अपनी जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए बच्चों की हाथ गाड़ी और खिलौने बेच रहे हैं। नगर के तिर्वा रोड स्थित नई गल्ला मंडी के सामने फुटपाथ पर बैठे यह वृद्ध बताते हैं कि गाड़ी और खिलौने बेचना उनका पेशा नहीं बल्कि मजबूरी है।

40 साल पहले छूटा पत्नी और बेटे का साथ

अपना दर्द बयां करते हुए कालीचरण की आंखे भर आई। उन्होंने बताया कि लगभग वर्ष 1982 में पत्नी मुन्नी देवी उसके इकलौते बेटे भोलाराम को लेकर बीच रास्ते में ही उसका साथ छोड़ कर दिल्ली चली गई। बेटे ने भी शादी कर ली और दिल्ली में ही रहा है। वृद्ध के दो पोते हैं जिन्हे बुढ़ापे में खिलाने और उनके साथ समय बिताने का मन होता है। लेकिन अपनों का साथ छूटे लगभग 40 वर्ष हो गए। बुड़ापा और अकेलापन अक्सर अपनों की याद दिला देता है।

खिलौने बेचकर पेट पालते हैं कालीचरण

वृद्ध कालीचरण ने बताया कि जवानी के दिनों में वह पशुपालन करते थे। गांव-गांव फेरी लगाकर कबाड़ की खरीद करते थे। जीवन को चलाने के लिए चौकीदारी का कार्य भी किया जिससे परिवार का भरण पोषण होता था। लेकिन अब 90 वर्ष की उम्र में शरीर साथ नहीं देता इसलिए सड़क किनारे बच्चों की हाथ गाड़ी और खिलौने बेचकर दो वक्त की रोटी मिलने का इंतजार रहता है। जीवन में कई उतार-चढ़ाव देख चुके वृद्ध किसी प्रकार का नशा भी नहीं करते। सादा जीवन ही उनकी लंबी उम्र का राज है। भगवान पर अटूट आस्था ने उन्हें कई बार नया जीवन दिया।

सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ

अपनों का साथ छूटने के बाद भी बुजुर्ग कालीचरण ने हिम्मत नहीं हारी। लेकिन उन्हें अफसोस है कि कई बार आवेदन करने के बाद भी सरकार की वृद्धावस्था योजना, राशन कार्ड, आवास या अन्य कोई सुविधा का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है। सरकार की योजनाओं का लाभ लेने से वंचित वृद्ध से समाजसेवियों और दानवीरों ने भी नजरें फेर रखी है। बुजुर्ग का कहना है कि उनकी मदद को कोई समाजसेवी भी नजर नहीं आता है। खिलौनों की बिक्री न होने पर कभी-कभी उन्हें भूखा ही सोना पड़ता है लेकिन इस उम्र में भी उनके अंदर जीने और संघर्ष करने का आत्मविश्वास उन्हें टूटने नहीं देता है।

(रिपोर्ट- सुरजीत कुशवाहा)

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