Sunday, November 03, 2024
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जहां भगवान राम ने लिया था शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान, बाराबंकी के इस आश्रम का अब होगा पुनरद्धार

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में रामायणकाल के महर्षि वशिष्ठ का सप्तऋषि आश्रम हैं। बताया जाता है कि यहां आज भी भगवान रामलला ने अपने भाइयों के साथ शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान लिया था। राम मंदिर के बाद अब इस आश्रम को भी विकसित और पुनरद्धार किया जाएगा।

Edited By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Updated on: January 06, 2024 17:53 IST
Saptarishi Ashram- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV बाराबंकी में रामायणकाल का सप्तऋषि आश्रम

बाराबंकी: रामायण काल के संदर्भ में बाराबंकी जनपद का अयोध्या धाम के नजदीक होने के चलते बेहद खास महत्व है। अयोध्या राज्य का अंश रहे बाराबंकी जिले का सतरिख इलाका कभी सप्तऋषिधाम और आश्रम के रूप में जाना जाता था। कहा जाता है कि यह महर्षि वशिष्ठ का आश्रम है। सप्तऋषियों ने भी यहीं पर तपस्या की थी। साथ ही भगवान राम ने अपने तीनों भाइयों के साथ यहां शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी। बाद में विदेशी आक्रमणकारियों ने इस आश्रम का विध्वंस किया था। लेकिन अब अयोध्या में श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही सतरिख को भी एक बार फिर से सप्तऋषिधाम के रूप में विकसित करके इसका पुनरद्धार किया जाएगा। जिसको लेकर यहां के लोगों में काफी उत्साह है।

राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न ने ली थी शिक्षा-दीक्षा

बाराबंकी के सतरिख-चिनहट मार्ग पर सप्तऋषि आश्रम स्थित है। सप्तऋषियों के आश्रम में प्राचीन राम, लक्ष्मण और माता सीता की मूर्तियां स्थापित हैं। कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के साथ सप्तऋषियों से शिक्षा-दीक्षा ली थी। अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर इस आश्रम के लोगों में भी खास उत्साह है। सप्तऋषि आश्रम पर मौजूद राम, लक्ष्मण और सीता की प्राचीन मूर्तियों का रोजाना तिलकोत्सव और पूजा अर्चना की जाती है। सतरिख को प्राचीन धरोहर के रूप में माना जाता है। क्योंकि यहां से भगवान श्रीराम का पुराना और काफी खास नाता है।
 

राम के जन्म से पहले गुरुकुल था सप्तऋषि आश्रम

यहां के लोगों ने बताया कि भगवान राम के जन्म से पहले यह सप्तऋषि आश्रम एक गुरुकुल था। ऋषि मुनि यहां निवास करते थे। जानकारी के मुताबिक यहां कई ऐसे राक्षस भी हुआ करते थे, जो ऋषि मुनियों को यज्ञ अनुष्ठान नहीं करने देते थे। जिनसे ऋषि मुनि बहुत परेशान रहते थे। ऐसे में राक्षसों से छुटकारा पाने के लिए गुरु विश्वामित्र खुद अयोध्या गए। उन्होंने वहां देखा कि राम 13 साल की आयु के हो गये हैं। जिसके बाद गुरु विश्वामित्र ने राजा दशरथ से चारों भाइयों को मांगा और सप्तऋषि आश्रम लेकर आए। उन्होंने चारों भाइयों को यहीं पर धनुष विद्या सिखाई। 
 

आज भी मौजूद है राम का चलाया तीर

यहां के महंत नानक शरण दास उदासीन ने बताया कि धनुष विद्या सीखने के बाद प्रभु राम ने सभी राक्षसों का संघार किया। आज भी इस आश्रम में ऐसी कई चीजें हैं जो इन सभी बातों का प्रमाण देती हैं। भगवान राम जब धनुष विद्या सीख रहे थे, तब एक तीर जाकर करीब डेढ़ किलोमीटर दूरी पर गड़ गया था। जो आज भी मौजूद है। वह तीर अब तो पत्थर का है। जिसकी लोग आज भी पूजा अर्चना करते हैं। पास में कुआं और नदी बहती है। महंत नानक शरण दास उदासीन के मुताबिक भगवान राम वहीं स्नान करते थे। इसी कुंआ से आश्रम के सभी विद्यार्थी पानी पीते थे और खाना बनाते थे। उन्होंने बताया कि यह भूमि ऋषि-मुनियों की परंपरा से भरी हुई है।
 

1028 ई. में आक्रमणकारियों ने तोड़ा था आश्रम 

बाराबंकी के निवासी साहित्यकार अजय गुरू जी ने बताया कि रामायण कालखंड के तीन बड़े ऋषि हुए हैं। जिनमें उत्तर भारत के महर्षि वशिष्ठ, दक्षिण भारत में महर्षि अगस्त और मध्य भारत में महर्षि विश्वामित्र शामिल हैं। दुनिया में जहां कहीं भी राम हैं, वहां इन तीनों ऋषियों की चर्चा जरूर होगी। महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम और उनके भाइयों को शास्त्र ज्ञान दिया था। वहीं महर्षि अगस्त ने शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्या सिखाई। जबकि महर्षि विश्वामित्र के निर्देशन में भगवान राम ने अपने जीवन का बहुत बड़ा काल खंड जिया। जिसमें उन्होंने कई राक्षसों का भी विध्वंस किया था। उन्होंने बताया कि 1028 ई. के आसपास जब महमूद गजनवी के बहनोई सैय्यद साहू ने अपने लड़के सालार मसूद के साथ इस क्षेत्र पर आक्रमण किया। तब उन्होंने ही महर्षि वशिष्ठ का आश्रम सप्तऋषि आश्रम और मंदिर विध्वंस किया था।

 (रिपोर्ट- दीपक निर्भय)

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