Friday, November 22, 2024
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ज्ञानवापी विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका, याचिका खारिज

ज्ञानवापी विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष को तगड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने सिविल वाद की पोषणीयता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दी है।

Reported By : Imran Laeek Edited By : Mangal Yadav Updated on: December 19, 2023 10:34 IST
ज्ञानवापी मस्जिद - India TV Hindi
Image Source : ANI ज्ञानवापी मस्जिद

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी और अन्य सभी पांच याचिकाओं को खारिज कर दिया है। वाराणसी कोर्ट में हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल सिविल वाद को हाईकोर्ट ने सुनवाई योग्य माना है। हाईकोर्ट ने मस्जिद कमेटी और वक्फ बोर्ड की दलीलों को खारिज कर दिया।  याचिका में वाराणसी की अदालत के आठ अप्रैल 2021 के उस निर्देश को भी चुनौती दी गई है जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद का समग्र सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया गया था।  

हाई कोर्ट सुन चुका है दोनों पक्षों की दलीलें

इससे पहले आठ दिसंबर को न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने याचिकाकर्ता अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और प्रतिवादी मंदिर पक्ष की दलीलें सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी की अदालत में लंबित वाद की पोषणीयता को चुनौती दी थी। 

हिंदू पक्ष ने की है ये मांग

वहीं, हिंदू पक्ष ने उस जगह पर मंदिर बहाल करने की मांग की है जहां मौजूदा समय में ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है। हिंदू पक्ष के मुताबिक, ज्ञानवापी मस्जिद, मंदिर का हिस्सा है। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की दलील है कि इस मुकदमे की पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) 1991 के तहत सुनवाई नहीं हो सकती है। इस कानून में कहा गया है कि किसी भी धर्म के पूजा स्थल का जो अस्तित्व 15 अगस्त 1947 के दिन था, वही बाद में भी रहेगा। 

 हिंदू पक्ष के मुताबिक मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी विशेश्वर नाथ मंदिर को खंडित करके मस्जिद का निर्माण कराया था। विवादित परिसर में आज भी मंदिर के अवशेष मौजूद हैं। मस्जिद कमेटी के वकीलों का तर्क है कि 1991 के एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 के बाद के किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता है।

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