Krishna Janmabhoomi Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह परिसर के प्राथमिक सर्वेक्षण की मांग वाले मामले पर सुनवाई हुई है। हाई कोर्ट ने इस मामले में दलीलें सुन ली हैं। हाई कोर्ट सर्वे के तौर-तरीकों पर जल्द अपना फैसला सुनाएगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसमें अदालत की निगरानी में अधिवक्ता आयुक्तों की तीन सदस्यीय टीम द्वारा शाही ईदगाह परिसर के प्राथमिक सर्वेक्षण की अनुमति दी गई थी।
इस तारीख को फिर होगी सुनवाई
माना जा रहा था कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि- शाही ईदगाह मामले में कोर्ट का फैसला सोमवार को आ सकता है। हालांकि, ताजा अपडेट है कि इस मामले की सुनवाई 11 जनवरी को की जाएगी। बता दें कि स मामले में सुप्रीम कोर्ट में SLP की सुनवाई 9 जनवरी को होने वाली है। इसके बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि- शाही ईदगाह मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट फैसला देगा।
हिंदू पक्ष के वकील ने कही ये बात
शीर्ष अदालत ने शाही ईदगाह के सर्वेक्षण के लिए आयोग की नियुक्ति के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि वह कुछ भी रोक नहीं लगाएगी। इस मामले पर हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और जहां तक स्थानांतरण आदेश को चुनौती देने का सवाल है, मामले की तारीख 9 जनवरी तय की है।
याचिका में हिंदू मंदिर होने का किया गया था दावा
बता दें कि शाही मस्जिद ईदगाह परिसर के बारे में याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ऐसे संकेत मिले हैं जो बताते हैं कि यह कभी एक हिंदू मंदिर था। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत ने कहा था कि 18 दिसंबर को अगली सुनवाई में सर्वेक्षण के तौर-तरीकों पर चर्चा की जाएगी।
ओवैसी ने साथा था निशाना
एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बृहस्पतिवार को ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में किसी का नाम लिए बिना कहा था कि एक नया समूह इन विवादों को उठा रहा है। चाहे वह काशी हो, मथुरा हो या लखनऊ की टीले वाली मस्जिद, यह एक ही समूह है। उपासना स्थल अधिनियम अब भी लागू कानून है। लेकिन इस समूह ने कानून और न्यायिक प्रक्रिया का मजाक बना दिया है। हाई कोर्ट को इस मामले पर नौ जनवरी को सुनवाई करनी थी, तो ऐसी क्या जल्दी थी कि सर्वेक्षण का आदेश देना पड़ा। उन्होंने कहा कि मथुरा मंदिर-मस्जिद विवाद दशकों पहले मस्जिद समिति और मंदिर के ट्रस्ट के बीच आपसी सहमति से सुलझा लिया गया था।