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समलैंगिक विवाह पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी बोले- ये एक विकृति, समाज के लिए भद्दा मजाक

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने भी सुप्रीम कोर्ट के समलैंगिक विवाह पर दिए फैसले पर कहा है कि इसे कानूना मान्यता नहीं दिए जाने के फैसले का स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि ये एक विकृति है।

Edited By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Published : Oct 18, 2023 10:05 IST, Updated : Oct 18, 2023 10:06 IST
Akhara Parishad
Image Source : INDIA TV अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने समलैंगिक विवाह पर दिया बयान

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को अमान्य करार दिया है। इसके बाद कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। हरिद्वार में भी संत अदालत के फैसले की सराहना कर रहे हैं। इस मामले पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि समलैंगिकता एक विकृति है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इस पर रोक लग सकेगी। उन्होंने कहा कि अगर समाज में समलैंगिक शादियां होंगी तो संतान उत्पन्न नहीं होगी और पीढियां आगे नहीं बढ़ सकेंगी। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। 

"सेम सेक्स मैरिज हमारे समाज के लिए भद्दा मजाक"

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज हमारे समाज के लिए भद्दा मजाक है। जो हम जैसे आध्यात्मिक लोग हैं वो इसको गाली मानते हैं। कैसे शादी हो, किसके साथ शादी हो, पुरुष और स्त्री, ये तो भगवान ने बनाया है। पुरुष की शादी स्त्री से हो, स्त्री की पुरुष से हो, आजतक यही रीति है, यही रिवाज है। अब आदमी ही आदमी के साथ शादी करले ये कैसे हो सकता है। एक स्त्री भी स्त्री से शादी करे ये अच्छी बात नहीं है। अगर ये सब होने लगा तो बच्चे कहां से पैदा होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी मान्यता देने से किया इनकार
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर शादी का "कोई असीमित अधिकार" नहीं है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग वाली 21 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चार अलग-अलग फैसले दिए। पीठ ने सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला देते हुए समलैंगिक विवाह को विशेष विवाह कानून के तहत कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि इस बारे में कानून बनाने का काम संसद का है। 

अदालत ने संवेदनशील होने का आह्वान भी किया
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि, समलैंगिक लोगों के लिए समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा को मान्यता दी और आम जनता को इस संबंध में संवेदनशील होने का आह्वान किया ताकि उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े। प्रधान न्यायाधीश ने 247 पन्नों का अलग फैसला लिखा। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने 17 पन्नों का फैसला लिखा, जिसमें वह मोटे तौर पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के विचारों से सहमत थे। न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट ने अपने और न्यायमूर्ति हिमा कोहली के लिए 89 पन्नों का फैसला लिखा। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने अपने 13 पन्नों के फैसले में कहा कि वह न्यायमूर्ति भट्ट द्वारा दिए गए तर्क और उनके निष्कर्ष से पूरी तरह सहमत हैं।

(रिपोर्ट- सुनील दत्त पांडे)

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