चुनावी महाकुंभ में इन विधवाओं के लिए किसी के पास कोई वादा नहीं है और ना ही भविष्य में कुछ बदलने का किसी ने सपना दिखाया है। परिवार के साथ समाज और सियासत ने भी इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया है और इन्होंने भी मान लिया है कि बृजभूमि की गलियों में गुमनाम मौत के अलावा इनके मुस्तकबिल में कुछ और है ही नहीं।
कुछ परम्पराओं के अनुसार विधवा होने के पश्चात महिलाओं को परिवार की हर सामाजिक-धार्मिक गतिविधि से अलग कर दिया जाता है। इसीलिए बंगाल, बिहार, उड़ीसा और कई राज्यों की विधवाएं वृन्दावन अथवा वाराणसी आकर अपना शेष जीवन ईश वंदना में बिताती हैं।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ‘स्वाधार गृह’ योजना के तहत बनाए गए ‘कृष्णा कुटीर’ में करीब एक हजार विधवाएं रह सकेंगी।
वृंदावन में रहने वाली पांच विधवा महिलाएं अपने ‘भाई’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिये होली की सौगात के तौर पर रंग और मिठाई लेकर कल दिल्ली पहुंचेंगी...
वृन्दावन एवं वाराणसी के आश्रमों में विधवा एवं परित्यक्त जीवन बिता रहीं महिलाओं ने रक्षाबंधन के पावन पर्व पर एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अपने हाथों से बनाकर 1500 राखियां भेजी हैं। इसके लिए वृन्दावन के तकरीबन पांच सदी पुराने ठा. गोपीनाथ
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