भारत में कंपनियां कोविड-19 संकट से उत्पन्न आर्थिक परेशानियों का सामना कर रही हैं बावजूद इसके बिजनेस रिकवरी को लेकर सकारात्मकता बढ़ रही है और इसका असर सैलरी इन्क्रीमेंट बजट पर दिखना अभी बाकी है।
कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए देश भर में लगाए गए लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से ही देश में लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आई है।
सर्वे मार्च 2020 से शुरू किया जाएगा और इनके नतीजे अक्टूबर 2021 तक उपलब्ध होंगे। श्रम मंत्री ने कहा कि इन श्रमिकों के बारे में साक्ष्य-आधारित नीति बनाने के लिए संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगार के प्रामाणिक आंकड़े बेहद जरूरी हैं।
सर्वेक्षण के मुताबिक 87 प्रतिशत भारतीय कंपनियों को 2022 के अंत तक कोविड-19 से पूर्व के लाभ स्तर को प्राप्त करने का अनुमान है। जबकि इसका वैश्विक औसत 73 प्रतिशत है। लगभग 45 प्रतिशत भारतीय इकाइयां कारोबार वृद्धि को लेकर आशान्वित हैं। जबकि वैश्विक औसत 29 प्रतिशत ही है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि 29 प्रतिशत अनुबंध पर नौकरियों के ऑफर बेंगलुरू और दावणगेरे से दिए गए। इस तरह कर्नाटक इस श्रेणी में शीर्ष पर रहा। वहीं हैदराबाद और वारंगल ने अनुबंध पर नौकरी के कुल ऑफर्स में 24 प्रतिशत ऑफर दिए और इस तरह तेलंगाना इस सूची में दूसरे स्थान पर है।
कंपनियों ने इस साल कर्मचारियों के वेतन में औसत 6.1 प्रतिशत की वृद्धि की। यह पिछले एक दशक में सबसे निचला स्तर है। महामारी की वजह से कई कंपनियों को वेतन में कटौती भी करनी पड़ी जिसे अब वो वापस ले रही हैं। लॉकडाउन की वजह से वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कारोबार पर बुरा असर पड़ा, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड गिरावट भी दर्ज हुई। ऐसी स्थिति में कंपनियों ने इस साल लागत बचाने के कई उपाय किए जिसका असर वेतन बढोतरी पर पड़ा।
आयकर सर्वे के लिए अधिकारी करदाताओं के ठिकानों पर जा कर उनके लेखा खातों, इलेक्ट्रानिक साधनों में रखी गई सूचनाओं को खंगालते हैं। सीबीडीटी के अनुसार यह कदम तभी उठाया जाना चाहिये जब ब्योरा हासिल करने, आनलाइन रिकवरी जैसे अन्य सभी तरीके अपनाये जा चुके हों और उनसे कुछ हासिल नहीं हो सका।
76 प्रतिशत भारतीय प्रतिभागी यह महसूस करते हैं कि महामारी ने उन्हें अपने खर्चों के बारे में सोचने को मजबूर किया है। वहीं वैश्विक स्तर पर ऐसा सोचने वाले लोगों का प्रतिशत 62 के स्तर पर है।
लिंक्डइन द्वारा जारी वक्तव्य में कहा गया है कि सर्वे में यह सामने आया है कि परिवहन एवं लॉजिस्टिक्स और मीडिया तथा दूरसंचार क्षेत्र के पेशेवर अपने कार्यस्थल पर लौटने को लेकर ज्यादा सहज नहीं दिखते हैं।
कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान अपने घरों को चले गए प्रवासी कामगारों में से करीब दो-तिहाई गांवों में कौशल आधारित रोजगार के अभाव में या तो शहरों को लौट चुके हैं अथवा लौटना चाहते हैं।
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए कल (2 जुलाई, गुरुवार) से 12 जुलाई (रविवार) तक मेरठ, बुलंदशहर, गाजियाबाद, हापुड़, गौतमबुद्धनगर और बागपत में घर-घर सर्वे होगा।
इसमें लोगों की सामान्य जानकारी जैसे नाम, उम्र, पता और मोबाइल नंबर हासिल करने के साथ ही एसएस कोरोना एप पर प्रत्येक व्यक्ति की यात्रा का विवरण और वे आरोग्य सेतु इस्तेमाल करते हैं या नहीं, संक्रमण के लक्षण हैं या नहीं आदि जानकारी डाली जाएगी।
सर्वे के मुताबिक 64 प्रतिशत उपभोक्ता आनलाइन खरीदारी को प्राथमिकता देंगे
सर्वे में उम्मीद जताई गई है कि सरकार के तेज फैसलों से रिकवरी भी तेज हो सकती है
सर्वे के मुताबिक सोशल डिस्टेंसिंग और बेहतर सेवा की वजह से लोगों की शॉपिंग की आदतें बदली
कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन को बढ़ाए जाने की चल रही चर्चाओं के बीच पता चल है कि पूर्वी भारत के 74.9 प्रतिशत लोगों के घरों में आवश्यक वस्तुएं देश के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कम है।
covid-19 को लेकर इस तरह की आशा और उम्मीद रखने वालों में वियतनाम (92%), ब्राजील (85%) और मैक्सिको (84 प्रतिशत) का स्थान ऊपर है।
देश में करीब 22 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें इस बात की आशंका है कि वह या फिर उनके परिजन कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। आईएएनएस/सी-वोटर द्वारा इस बाबत कराए गए दूसरे सर्वे में यह बात सामने आई है।
उद्योग जगत इस साल के पहले 6 महीने में जमकर नौकरियां बांटने जा रहा है
करीब 33 प्रतिशत लोगों का मानना है कि नोटबंदी का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था की सुस्ती के रूप में सामने आया है।
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