सर्वे में शामिल 39 प्रतिशत लोगों ने माना कि वो अपनी संवेदनशील जानकारियां पेपर पर लिखकर रखते हैं। वहीं 29 प्रतिशत अपने डेबिट कार्ड के पिन को परिवार के सदस्यों के साथ शेयर करते हैं।
बच्चों पर प्रदूषण के व्यापक प्रभाव को दूर करने के लिए, सेसमे वर्कशॉप इंडिया ने एक्शन इंडिया, चाइल्ड सर्वाइवल इंडिया और चिंतन एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप जैसे गैर-लाभकारी संगठनों के साथ भागीदारी की, जिन्होंने दिल्ली में कम संसाधन वाले समुदायों के लगभग 10,000 बच्चों से प्रतिक्रियाओं को जानने में उनकी मदद की।
यूपी समेत देश के पांच राज्यों में चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है.हर पार्टी चुनाव को लेकर सर्वे करा रही है.आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि एक सर्वे पीएम मोदी भी खुद कर रहे हैं.इसके लिए उन्होंने नमो ऐप को चुना है नमो ऐप पर वो जनता से सीधा सवाल पूछ रहे हैं,केंद्र और राज्य में किसका काम अच्छा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मोबाइल एप्लिकेशन 'Namo App' पर एक सर्वेक्षण के माध्यम से लोगों की प्रतिक्रिया मांगी है।
कोविड-19 की प्राणघातक लहर से बुरी तरह से प्रभावित रहने के बावजूद भारत में मास्क पहने के नियम का अनुपालन करने वालों की संख्या कम है।
एक कड़वा सच ये है कि जब महामारी पीक पर थी उस दौरान लोगों ने इतना बुरा वक्त देखा कि उनके मन में आज भी कोरोना को लेकर खौफ़ है।
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर सीबीएसई और सीआईसीएसई की बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले को 56.4 प्रतिशत लोगों ने सही ठहराया है।
इन ग्राहकों से ग्राहक सेवाओं और शिकायतों के समाधान को लेकर उनके अनुभवों के बारे में पूछा जाएगा।
श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार के मुताबिक ये सर्वे काफी उपयोगी होंगे और सरकार को प्रवासी श्रमिकों तथा संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगार की स्थिति के बारे में आंकड़े उपलब्ध कराने की दृष्टि से काफी अहम साबित होंगे।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 2021 को है और इसे ध्यान में रखते हुए भारत के अग्रणी इन्वेस्टमेंट प्लेटफॉर्म ग्रो (Groww) ने हाल ही में भारतीय महिला निवेशकों की निवेश की आदतों को समझने के लिए एक सर्वेक्षण किया।
भारत में कंपनियां कोविड-19 संकट से उत्पन्न आर्थिक परेशानियों का सामना कर रही हैं बावजूद इसके बिजनेस रिकवरी को लेकर सकारात्मकता बढ़ रही है और इसका असर सैलरी इन्क्रीमेंट बजट पर दिखना अभी बाकी है।
कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए देश भर में लगाए गए लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से ही देश में लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आई है।
सर्वे मार्च 2020 से शुरू किया जाएगा और इनके नतीजे अक्टूबर 2021 तक उपलब्ध होंगे। श्रम मंत्री ने कहा कि इन श्रमिकों के बारे में साक्ष्य-आधारित नीति बनाने के लिए संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगार के प्रामाणिक आंकड़े बेहद जरूरी हैं।
सर्वेक्षण के मुताबिक 87 प्रतिशत भारतीय कंपनियों को 2022 के अंत तक कोविड-19 से पूर्व के लाभ स्तर को प्राप्त करने का अनुमान है। जबकि इसका वैश्विक औसत 73 प्रतिशत है। लगभग 45 प्रतिशत भारतीय इकाइयां कारोबार वृद्धि को लेकर आशान्वित हैं। जबकि वैश्विक औसत 29 प्रतिशत ही है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि 29 प्रतिशत अनुबंध पर नौकरियों के ऑफर बेंगलुरू और दावणगेरे से दिए गए। इस तरह कर्नाटक इस श्रेणी में शीर्ष पर रहा। वहीं हैदराबाद और वारंगल ने अनुबंध पर नौकरी के कुल ऑफर्स में 24 प्रतिशत ऑफर दिए और इस तरह तेलंगाना इस सूची में दूसरे स्थान पर है।
कंपनियों ने इस साल कर्मचारियों के वेतन में औसत 6.1 प्रतिशत की वृद्धि की। यह पिछले एक दशक में सबसे निचला स्तर है। महामारी की वजह से कई कंपनियों को वेतन में कटौती भी करनी पड़ी जिसे अब वो वापस ले रही हैं। लॉकडाउन की वजह से वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कारोबार पर बुरा असर पड़ा, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड गिरावट भी दर्ज हुई। ऐसी स्थिति में कंपनियों ने इस साल लागत बचाने के कई उपाय किए जिसका असर वेतन बढोतरी पर पड़ा।
आयकर सर्वे के लिए अधिकारी करदाताओं के ठिकानों पर जा कर उनके लेखा खातों, इलेक्ट्रानिक साधनों में रखी गई सूचनाओं को खंगालते हैं। सीबीडीटी के अनुसार यह कदम तभी उठाया जाना चाहिये जब ब्योरा हासिल करने, आनलाइन रिकवरी जैसे अन्य सभी तरीके अपनाये जा चुके हों और उनसे कुछ हासिल नहीं हो सका।
76 प्रतिशत भारतीय प्रतिभागी यह महसूस करते हैं कि महामारी ने उन्हें अपने खर्चों के बारे में सोचने को मजबूर किया है। वहीं वैश्विक स्तर पर ऐसा सोचने वाले लोगों का प्रतिशत 62 के स्तर पर है।
लिंक्डइन द्वारा जारी वक्तव्य में कहा गया है कि सर्वे में यह सामने आया है कि परिवहन एवं लॉजिस्टिक्स और मीडिया तथा दूरसंचार क्षेत्र के पेशेवर अपने कार्यस्थल पर लौटने को लेकर ज्यादा सहज नहीं दिखते हैं।
कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान अपने घरों को चले गए प्रवासी कामगारों में से करीब दो-तिहाई गांवों में कौशल आधारित रोजगार के अभाव में या तो शहरों को लौट चुके हैं अथवा लौटना चाहते हैं।
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