आज कश्मीर घाटी में भारत का झंडा लेकर घूमने में किसी को कोई डर नहीं है, जिन घरों के नौजवान भटक कर आतंकवादी बन गए थे, उनके घरों में भी तिरंगा लहराता दिखाई दिया. ये जवाब है उन दुश्मनों को जिन्होंने कश्मीर को अलगाववाद के रास्ते में धकेला था.
ये काम कितना बड़ा है इसका अंदाजा आपको इस बात से होगा कि अमित शाह ने पिछले 4 साल में 158 ऐसी बैठकें की जहां सीआरपीसी, आईपीसी और एविडेंस एक्ट को नया रूप देने के लिए मशविरे हुए।
अमित शाह ने बिना किसी लाग लपेट के, साफ-साफ शब्दों में कहा कि मणिपुर में जो हुआ वो शर्मानक है, वह सभ्य समाज पर कलंक है, लेकिन सरकार खामोशी से नहीं बैठी।
उत्तर प्रदेश में पिछले 4 दशकों में जितनी भी सरकारें आईं, सभी ने इस रिपोर्ट को अब तक दबाए रखा, सिर्फ इसीलिए कि इन दंगों में मुस्लिम लीग के नेताओं का हाथ पाया गया था।
चीन भारत में यूट्यूब चैनल्स, वेबसाइट्स और पत्रकारों को फंड करके भारत की राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, ये चिंता में डालने वाला है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये कहा है कि राहुल गांधी को इस तरह का कमेंट नहीं करना चाहिए था। उन्हें बोलने से पहले सोचना चाहिए था।
जहां तक पुलिस एक्शन पर उठे सवालों की बात है, उस दिन नूंह में ड्यूटी पर तैनात सेक्टर मजिस्ट्रेट आबिद हुसैन की तरफ से दर्ज FIR की कॉपी है जिसमें लिखा है कि दंगाइयों की भीड़ ने अचानक हमला किया।
पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर नूंह में मोनू मानेसर का नाम लेकर विश्व हिन्दू परिषद की शोभायात्रा में शामिल लोगों को सबक सिखाने की बात हो रही थी।
महिला के साथ वहशीपन, मणिपुर में हो या बंगाल में, शर्मनाक तो दोनों हैं. मणिपुर में जो हुआ उसकी निंदा सबने की है, करनी भी चाहिए. वहां टकराव दो समुदायों के बीच है, लेकिन बंगाल में जो हुआ, वो राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच हुई जंग का नतीजा है.
मणिपुर की दुखदायी घटना पूरे सिस्टम की विवशता पर सवाल उठाती है. अगर मोबाइल कैमरे में ये घटना क़ैद न हुई होती, तो ये भयानक सच इतिहास के किसी पन्ने में दफ़न हो जाता.
देवेन्द्र फणनवीस ने ऐतराज़ जताया और कहा, वंदेमातरम् तो मातृभूमि के सामने सिर झुकाना है, कोई मजहब ऐसा नहीं है जो मां के सामने सिर झुकाने की इजाज़त न देता हो. यह एक धार्मिक गीत नहीं, राष्ट्र गान है।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि विपक्षी गठबंधन मोदी के खिलाफ किसका चेहरा आगे करेगा? कौन प्रधानमंत्री पद का दावेदार होगा? क्योंकि जैसे ही इस पर बात आएगी तो एकता तार-तार होगी क्योंकि दावेदार कई हैं और समझौते के लिए कोई तैयार नहीं हैं.
विरोधी दलों वाले मोर्चे में बड़े-बड़े नेता दिखाई दिये, लेकिन ममता बनर्जी, स्टालिन और केजरीवाल को छोड़ कर जो लोग दिखे, उनमें से ज़्यादातर का जनाधार खिसक चुका है.
दिल्ली में जो ड्रेनेज सिस्टम है, वो अंग्रेजों के ज़माने का है, खासतौर पर पुरानी दिल्ली का तो ड्रैनेज सिस्टम इस तरह के हालात का सामना करने के लिए बिल्कुल नहीं हैं. जो नाले हैं, उनकी कभी ठीक से सफाई नहीं होती.
सवाल ये है कि देश की राजधानी में ऐसे हालात कैसे बने? क्या सिर्फ हथिनीकुंड बैराज से छोड़ा गया पानी इसके लिए जिम्मेदार है? या फिर सिस्टम की कमियों का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है?
भारत में सड़क दुर्घटनाएं बहुत होती हैं, इसका कारण लापरवाही है। सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए अब देश में कड़े कानून बनाए जाने की जरूरत है।
खतरा बड़ा है, इससे बचाने का काम सिर्फ सरकारें नहीं कर सकती, हम सबको इस खतरे को समझना होगा और ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए अपना योगदान करना होगा.
राहुल जिद पर अड़े रहे. कह दिया, जेल चला जाऊंगा, पर न बयान वापस लूंगा, न माफी मांगूंगा, और फिर जब सेशन्स कोर्ट का फैसला आया, सजा हो गई तो कहा कि वो सावरकर नहीं हैं जो माफी मांग लें, वो गांधी हैं, गांधी कभी माफी नहीं मांगता.
शिवराज सिंह चौहान ने जो किया, वो बड़ी बात है. दो दिन पहले मैंने जब इस घटना का वीडियो देखा था, तो तस्वीरें देखकर गुस्सा आया, दुख हुआ, ये सोच कर ग्लानि हुई कि हम कैसे समाज में रहते हैं, लेकिन गुरुवार को जब शिवराज सिंह के साथ दशमत की तस्वीरें देखीं तो सुकून मिला.
मैं शरद पवार की इस हिम्मत की दाद दूंगा कि स्वास्थ्य उनका साथ नहीं देता, उम्र भी उनकी तरफ़ नहीं है, वो सारे नेता जिन्हें उन्होंने बनाया था साथ छोड़ गए, तो भी वो युद्ध के मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं.
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