बहरहाल, हेमंत सोरेन के सारे दांवपेंच फेल हो गए। दो महीने तक भागने के बाद वो ED के शिंकजे में आ गए। अब उनसे ED की हिरासत में पूछताछ की जाएगी।
अब हेमंत सोरेन सहयोगी दलों को इस बात के लिए तैयार कर रहे हैं कि अगर उनको गिरफ्तार किया जाता है, तो उनकी पत्नी को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करें। लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा क्योंकि इस मामले में गठबंधन तो दूर की बात, परिवार में भी एक राय नहीं हैं।
हेमंत सोरेन की पार्टी के लोग कहेंगे कि ये सब चुनाव को देखते हुए हो रहा है। उन्हें परेशान करने की कोशिश की जा रही है लेकिन ये सब कहने से काम नहीं चलेगा, जवाब देना पड़ेगा, हेमंत सोरेन को इस मामले में लालू यादव से सीखना चाहिए। लालू को ED ने बुलाया और लालू पहुंच गए।
राजनीति बड़ी निष्ठुर होती है। ज़रूरत के हिसाब से बदलने को विवश कर देती है। लेकिन बिहार में जो बदलाव होगा, उसकी गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ेगी। सबसे बड़ा कुठाराघात राहुल गांधी के सपनों पर होगा। INDI अलायन्स का अब कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
चूंकि नीतीश ये जानते हैं कि इस वक्त बीजेपी और लालू दोनों को उनकी जरूरत है, वो जिसके साथ जाएंगे उसे फायदा होगा, इसीलिए नीतीश चाहेंगे कि बीजेपी ठोस वादा करे। उसके बाद बात आगे बढ़े। बीजेपी नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए रखेगी इसमें फिलहाल कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन सवाल ये है कि फिर रुकावट कहां है?
भगवंत मान ने कहा कि बंगाल में हो सकता है ममता बनर्जी तो शायद मान भी जाएं लेकिन पंजाब में ये तय है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं होगा।
रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के दूसरे दिन ही उनके दर्शन के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा जिसे नियंत्रित करने में प्रशासन को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। इसका पता चलते ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद निरीक्षण करने पहुंच गए और लोगों से संयम बरतने की अपील की।
मुझे कोई संदेह नहीं कि आज राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा ने बीजेपी में भी नए प्राण फूंक दिए। राम का विरोध करने वाले नेताओं को अपने राजनीतिक प्राण को बचाना मुश्किल हो रहा है। और इसका सबसे ज्यादा नुकसान राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को होगा क्योंकि उन्होंने मोदी विरोध के चक्कर में राममंदिर का विरोध कर दिया।
'आप की अदालत' में साध्वी ऋतंभरा ने बताया कि कैसे उन्हें प्रताड़ित किया जाता था,पूरे हिंदू समाज का मज़ाक उड़ाया जाता था, कैसे पुलिस हमेशा उनके पीछे पड़ी रहती थी और उन्हें भेष बदल-बदलकर जन जागरण की सभाओं में जाना पड़ता था।
कभी मंदिर को अधूरा बताना, कभी विधि-विधान पर सवाल खड़े करना, कभी ये कहना है कि गर्भ गृह असली जगह से दूर बनाया गया है, कभी कहना कि सारा श्रेय मोदी ले रहे हैं, इन सब बातों की मीनमेख निकालना आज की तारीख में कोई मतलब नहीं है। 22 जनवरी को जो हो रहा है, ये एक ऐतिहासिक घटना है।
अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान शुरू हो चुका है। एक तरफ पूरा देश राममय नजर आ रहा तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने इस वृहद आयोजन से दूरी बना रखी है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने देश के मूड की उपेक्षा की है।
मुझे लगता है कांग्रेस और दूसरे मोदी विरोधी दलों ने रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न जाने का फैसला करके गलती की है। खासतौर पर 52 सीटों वाली कांग्रेस ने एक बड़ा अवसर अपने हाथ से गंवा दिया है। कांग्रेस को तो ये समझना चाहिए था कि देश के जो करोड़ों लोग हैं, वो रामलला का मंदिर बनने से उत्साहित हैं।
कांग्रेस में कई पुराने अनुभवी नेता हैं जो ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस राम मंदिर का विरोध करेगी, प्राण प्रतिष्ठा का बॉयकॉट करेगी तो इससे और अधिक नुकसान होगा लेकिन कांग्रेस चलाने वाले मोदी विरोध में इतना गुम हो गए हैं कि वो लोगों को भावनाओं को समझ नहीं पा रहे ।
कांग्रेस अयोध्या में होने वाले भव्य समारोह का बॉयकॉट करे, समझ में आता है। लेकिन शंकराचार्य जैसे बड़े धार्मिक पद पर बिराजे संत प्राण प्रतिष्ठा के समारोह पर सवाल उठाएं, ये दुख और दुर्भाग्य की बात है। आदि शंकराचार्य ने सिर्फ 32 साल की आयु में पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने वाले चार मठों को स्थापना की, देश के चार अलग अलग
असल में शुरुआत उद्धव ठाकरे ने की थी ,पहली गलती उद्धव की थी, उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, 56 सीटें जीतीं और इतनी सीटों के दम पर ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग पर अड़ गये, ये धोखा था। यहीं से ये सारा किस्सा शुरू हुआ।
अगर नरेंद्र मोदी राम मंदिर के निर्माण में इतनी तत्परता नहीं दिखाते, इस काम की लगातार निगरानी न करते, तो राम मंदिर इतनी जल्दी और इतना शानदार न बन पाता। रामलला को उनका घर दिलाने के अवसर को, प्राण प्रतिष्ठा को भी नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रुचि लेकर, भव्य और दिव्य बनाने के लिए पूरी ताकत लगा दी है ।
मालदीव की सरकार के पास जो टैक्स रेवेन्यू आता है, उसमें से 90 प्रतिशत टूरिज्म के टैक्सेस से मिलता है। पिछले साल जितने विदेशी सैलानी मालदीव गए थे उनमें से 11 परसेंट भारतीय थे। इसलिए अगर भारत के सैलानियों ने मालदीव का बॉयकॉट किया तो इस पर्यटन प्रधान देश का बहुत नुकसान हो सकता है।
मुझे लगता है कि जांच एजेंसियों के अफसरों पर इस तरह के हमले देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं हैं, राज्य और केन्द्र के रिश्तों के लिए अच्छे नहीं हैं। बंगाल में तेरह साल पहले लेफ्ट फ्रंट की सरकार को ममता ने इसी आधार पर चुनौती दी थी, उसे उखाड़ फेंका था।
RJD, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के बयानों से ये तो साफ है कि विरोधी दलों के गठबंधन में शामिल पार्टियां अयोध्या के मुद्दे पर कन्फ्यूज़्ड हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि बीजेपी के आक्रामक रुख़ को कैसे काउंटर करें। इसी कन्फ्यूजन में गलतियां हो रही हैं, बेतुके बयान आ रहे हैं।
राहुल गांधी ने अडानी के नाम को मोदी पर हमले का हथियार बना लिया लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने अडानी को क्लीन चिट दे दी, तो राहुल कहीं दिखाई नहीं दिए। उन्होंने कोई ट्वीट नहीं किया।
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