विश्लेषकों का मानना है कि मुद्रास्फीति के तय लक्ष्य के मुकाबले काफी नीचे होने के बावजूद RBI अप्रैल की मौद्रिक नीति समीक्षा में यथास्थिति बनाए रख सकता है।
दुनिया में किसी भी देश में आर्थिक मंदी के खतरे का अनुमान लगाना अब आसान हो गया है। ब्रिटेन के अनुसंधानकर्ताओं ने नया सिस्टम बनाया है।
अरुण जेटली ने कहा कि मोदी सरकार साहसिक निर्णय कर रही है और अर्थव्यवस्था को साफ सुधरी बनाने पर ध्यान दे रही है। कारोबार के लिए वातावरण सही हो सके।
RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) ने इस साल लगातार दूसरी पॉलिसी में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। रेपो रेट 6.25 फीसदी पर स्थिर रहा है।
एसोचैम ने कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को लोन ग्रोथ सुस्त रहने और कमजोर मांग के बीच ब्याज दरों में 0.5 से 0.75 प्रतिशत की कटौती करनी चाहिए।
RBI को उदार मौद्रिक रुख अपनाने में मदद मिलेगी, लेकिन नीतिगत दरों में कटौती अगले हफ्ते होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा के बजाये अप्रैल में होने की उम्मीद है।
भारतीय रिजर्व बैंक 2017 में नीतिगत दरों में 25 से 50 आधार अंकों की कटौती कर सकता है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगाई दर आगे भी नियंत्रित बनी रहेगी।
RBI ने ब्याज दरों में नहीं किया कोई बदलाव, सेंसेक्स 200 अंक गिरकर 26190 के स्तर पर है। वहीं, NSE का प्रमुख इंडेक्स निफ्टी में 40 अंक की आई गिरावट।
एक व्यक्ति ने एलआईसी से 50 करोड़ रुपए सालाना प्रीमियम की बीमा पॉलिसी खरीदी है। किसी व्यक्ति द्वारा खरीदी गई यह अब तक की सबसे महंगी पॉलिसी है।
रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि के नीचे जाने के जोखिम की आशंका के मद्देनजर अगले सप्ताह अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर में 0.25% की कटौती कर सकता है।
सितंबर महीने में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की वृद्धि में हल्की नरमी आई। PMI सितंबर में घटकर 52.1 पर आ गया जो अगस्त में 52.6 था।
RBI के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति मंगलवार को अपनी पहली मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दरों में यथास्थिति बनाए रख सकती है।
ज्यादातर कंपनियां टर्म प्लान में विभिन्न सोल्यूशन्स का राइडर्स के साथ एडऑन ऑफर करती हैं। जो कि कई परिस्थितियों में महत्वपूर्ण साबित होती हैं।
अक्सर हम पहली बार इंश्योरेंस पॉलिसी लेते वक्त कुछ बातों का ख्याल नहीं रखते और गलत पॉलिसी में पैसा लगा देते हैं। इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है।
हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के खिलाफ शिकायतों का अंबार बढ़ता ही जा रहा है। वित्त वर्ष 2014-15 में शिकायतों की संख्या 25,600 पर पहुंच गईं।
भारतीय कंपनियां खुद को जिम्मेदारी संगठन बनाने और कर्मचारियों को अपने साथ लंबे समय तक जोड़े रखने के लिए तमाम नए प्रयास कर रही हैं।
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