सुप्रीम कोर्ट ने आज जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए NCPCR की सिफारिशों पर रोक लगा दी है, जिसमें संस्था ने कहा था कि मदरसों के बच्चों को फॉर्मल एजुकेशन नहीं मिलता, लिहाजा बच्चों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर किया जाए।
NCPCR ने केंद्र व राज्य सरकारों से सिफारिश की है कि वह मदरसों का फंड रोक दें क्योंकि वे मुस्लिम बच्चों को फॉर्मल एजुकेशन नहीं दे पा रहे हैं।
NCPCR ने एक याचिका में सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील दी है कि मदरसों में बच्चों को जरूरी शिक्षा से वंचित रखा जा रहा है। NCPCR मदरसों की शिक्षा का कड़ा विरोध भी किया है।
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने दावा किया है कि उत्तराखंड में 400 से ज्यादा मदरसे अवैध रूप से चल रहे हैं। इसके साथ ही कई मदरसे ऐसे भी हैं जहां हिंदू बच्चों को इस्लाम धर्म की शिक्षा प्रदान की जा रही है।
अयोध्या से 95 बच्चों को बचाया गया है। ये बच्चे बिहार से यूपी लाए गए थे। बच्चों की उम्र 4-12 साल के बीच बताई जा रही है। बच्चों के परिजनों से संपर्क किया जा रहा है।
संदेशखाली हिंसा में NCPCR की एंट्री हो गई है। अब NCPCR ने पश्चिम बंगाल पुलिस को एक नोटिस जारी किया है। ये नोटिस एक नवजात शिशु से जुड़ा हुआ है।
छात्र की पिटाई मामले में एनसीपीसीआर ने मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी और एसएसपी को नोटिस जारी किया है। इस बीच ओवैसी ने भी पीड़ित बच्चे के पिता से बात की है।
NCPCR के अधिकारियों के साथ एक बैठक में बायजू के प्रतिनिधियों ने कहा कि आयोग ने एक रिपोर्ट के आधार पर एक समन जारी किया है।
Byju's पर आरोप लगे है कि बायजू छात्रों व उनके माता-पिता को धमकाता है। इसे लेकर एनसीपीसीआर प्रमुख ने कहा कि हम कार्रवाई शुरू करेंगे और जरूरत पड़ी तो रिपोर्ट बनाएंगे और सरकार को लिखेंगे।
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के द्वारा दिए एक बयान को लेकर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) ने आपत्ति जाहिर की है। दरअसल दिल्ली विधानसभा में सीएम केजरीवाल ने एक बयान में कहा थी कि दिल्ली के बालगृहों में बच्चों का ख्याल नहीं रखा जाता है और इस वजह से वो भागने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने अपनी निरीक्षण टीमों के अनुभव का हवाला देते हुए सभी राज्य सरकारों से कहा है कि वे बाल गृह में यह सुनिश्चित करें कि सभी बच्चों पर एक धर्म विशेष में आस्था रखने पर जोर नहीं दिया जाए।
एनसीपीसीआर ने आज एक बयान में कहा, ‘‘यह बात संज्ञान में आई है कि हाल के समय में स्कूली बसों एवं कैब के दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं बढ़ी हैं। यह भी पाया गया है कि ज्यादातर हादसे चालकों की लापरवाही और मोटर वाहन कानून-1988 के संबंधित प्रावधानों का पालन नहीं किए जाने की वजह से होते हैं।’’
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