रिपोर्ट के अनुसार, इन 1,568 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 21,59,802.67 करोड़ रुपये थी, जिसके बढ़कर 26,54,818.05 करोड़ रुपये पर पहुंचने का अनुमान है।
इन परियोजनाओं की देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण व वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी तथा बुनियादी संरचना की कमी आदि शामिल हैं।
मंत्रालय की जून-2021 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,770 परियोजनाओं में से 479 की लागत बढ़ी है, जबकि 541 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं।
कंपनी का वर्ष 2021-22 में 23,000 करोड़ रुपये से अधिक की ऋण मंजूरी और 14,000 करोड़ रुपये के ऋण वितरण का है।
परियोजनाओं को पूरा करने के लिये नई समयसीमा के आधार पर देरी वाली परियोजनाओं की संख्या घटकर 375 रह गयी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निजीकरण का जोरदार शब्दों में समर्थन करते हुए कहा था कि सरकार का काम व्यवसाय करना नहीं है। वहीं इंडस्ट्री ने कहा है कि इस बयान से सरकार की सोच में बदलाव का पता चलता है।
539 में से 106 प्रोजेक्ट में 1 से 12 महीने की देरी चल रही है, 131 प्रोजेक्ट में 13 से 24 महीने की देरी चल रही है। 187 प्रोजेक्ट में 25 से 60 महीने की देरी चल रही है।
अनुमान के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र में 3.4 फीसदी की बढ़त देखने को मिल सकती है। वहीं खनन क्षेत्र में वित्त वर्ष के दौरान 12.4 फीसदी की गिरावट संभव है। पिछले वित्त वर्ष में खनन क्षेत्र में 3.1 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई थी। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में इस दौरान 9.4 फीसदी की गिरावट संभव है।
एनआईपी की शुरूआत 6,835 परियोजनाओं के साथ की गयी थी। इसे अब बढ़ाकर 7,300 परियोजनाएं कर दी गयी हैं। इन परियोजनाओं के लिये 2020 से 2025 के दौरान 111 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत का अनुमान लगाया गया है।
ढांचागत क्षेत्र की 150 करोड़ रुपये मूल्य या उससे अधिक की 442 परियोजनाओं की लागत में 4.34 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है।
इस योजना को बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं को वित्तीय समर्थन योजना के नाम से जाना जायेगा। यह केन्द्रीय क्षेत्र की योजना होगी जिसे वित्त मंत्रालय द्वारा देखा जायेगा। योजना तुरंत प्रभाव से अमल में आ जायेगी।
मंत्री ने कहा कि एनएचएआई अक्षम अधिकारियों का ‘स्थल’ बना हुआ है, जो अड़चनें पैदा कर रहे हैं। ये अधिकारी प्रत्येक मामले को समिति के पास भेज देते हैं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि जबकि ऐसे अधिकारियों को ‘निलंबित’ और बर्खास्त किया जाना चाहिए।
150 करोड़ रुपये या इससे अधिक के खर्च वाली 1,661 परियोजनाओं में से 441 की लागत बढ़ी है जबकि 539 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं। परियोजनाओं की देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण व वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी तथा बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख हैं।
रिजर्व बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में 9.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान दिया है। वहीं आईएमएफ ने 10.3 फीसदी और वर्ल्ड बैंक ने 9.6 फीसदी की गिरावट का अनुमान दिया है। हालांकि लगभग सभी अनुमानों में अगले साल तेज रिकवरी की भी बात कही गई है। वहीं नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने सलाह दी है कि अगले राहत पैकेज में खास इंफ्रा प्रोजेक्ट पर सरकार का ध्यान होना चाहिए
ढांचागत परियोजनाओं का विस्तार करने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए एक सरकारी कार्यबल ने पांच साल की अवधि में ऐसी परियोजनाओं में कुल मिलाकर 111 लाख करोड़ रुपए के निवेश का अनुमान लगाया है।
लागत में बढ़ोतरी के बाद परियोजना की कुल लागत 25 लाख करोड़ रुपये के करीब पहुंची
दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल कॉरिडोर, हरियाणा बाईपास लिंक रेलवे, मुंबई मेट्रो के प्रोजेक्ट के लिए कर्ज
रेलवे को महामारी से इस साल अभी तक यात्री खंड में 35,000 से 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान
अगले दो साल में 15 लाख करोड़ रुपये मूल्य के राजमार्ग के निर्माण का लक्ष्य
करीब 1700 परियोजनाओं की लागत 20.75 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 24.78 लाख करोड़ रुपये हुई
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