लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिए एक एकीकृत बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए इस पहल की शुरुआत की गई थी।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बड़े बंदरगाहों को महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इसके पूरा होने पर, इससे देश में 12 लाख नौकरियां और लगभग 1 करोड़ अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है।
मंत्रालय की मई, 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,817 परियोजनाओं में से 458 की लागत बढ़ गई है, जबकि 831 अन्य परियोजनाएं देरी से चल रही हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी 1,838 परियोजनाओं में 448 की लागत में बढ़ोतरी हुई है और 792 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इन 1,873 प्रोजेक्ट्स के क्रियान्वयन की मूल लागत 26,87,535.69 करोड़ रुपये थी लेकिन अब इसके बढ़कर 31,88,859.02 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। इससे पता चलता है कि इन प्रोजेक्ट्स की लागत 18.65 प्रतिशत यानी 5,01,323.33 करोड़ रुपये बढ़ गई है।
केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय के मुताबिक बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक के खर्च वाली 448 परियोजनाओं की लागत 5.55 लाख करोड़ रुपये से अधिक बढ़ गई है।
सरकार की सकल बाजार उधारी 14.13 लाख करोड़ रुपये तय की गई है, जबकि शुद्ध बाजार उधारी 1.75 लाख करोड़ रुपये प्रस्तावित है जो 2023-24 के संबंधित आंकड़े से कम है।
500 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश वाली सभी लॉजिस्टिक्स एवं कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को एनपीजी मार्ग से आगे बढ़ाया जाता है। वित्त मंत्रालय के तहत सार्वजनिक निवेश बोर्ड (पीआईबी) या व्यय विभाग द्वारा परियोजना को मंजूरी देने से पहले एनपीजी की मंजूरी आवश्यक है।
देरी से चल रही 837 परियोजनाओं में से 202 में एक महीने से लेकर एक साल तक की विलंब बै जबकि 188 में 13-24 महीने की देरी है। वहीं 324 परियोजनाएं पांच साल तक की देरी से चल रही हैं जबकि 123 परियोजनाओं में पांच साल से भी अधिक विलंब हो चुका है।
मंत्रालय की जुलाई, 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,646 परियोजनाओं में से 388 की लागत बढ़ गई है, जबकि 809 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं।
देरी से चल रही 815 परियोजनाओं में से 193 परियोजनाएं एक महीने से 12 महीने, 192 परियोजनाएं 13 से 24 महीने की, 293 परियोजनाएं 25 से 60 महीने की और 137 परियोजनाएं 60 महीने से अधिक की देरी से चल रही हैं।
Infra Industries: भारत आर्थिक मोर्चे पर विकास के लिए दुनिया के हर छोटे-बड़े देशों के साथ बिजनेस करने के लिए रणनीतिक साझेदारी कर रहा है। इसी बीच इंफ्रा इंडस्ट्रीज को बल देने के लिए ये समझौता किया गया है।
देश में प्रोजेक्ट की लेटलतीफी कोई नई बात नहीं है। करदाताओं का पैसा लंबे अरसे से इन सरकारी हीलाहवाली के चलते पानी की तरह बह रहा है, अब ये घाट 4.66 लाख करोड़ हो गया है
कुल 821 प्रोजेक्ट अपनी मूल निर्धारित समयसीमा से पीछे हैं और 165 प्रोजेक्ट ऐसी हैं जिनमें पिछले माह की तुलना में विलंब और बढ़ा है। इन 165 परियोजनाओं में से 52 बड़ी यानी 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की प्रोजेक्ट हैं।
अवसंरचना एवं परियोजना निगरानी प्रभाग (आईपीएमडी) 150 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली केंद्रीय क्षेत्र की परियोजनाओं की निगरानी करता है।
देरी से चल रही 871 प्रोजेक्ट्स में से 169 प्रोजेक्ट एक महीने से 12 महीने, 157 प्रोजेक्ट्स 13 से 24 महीने की, 414 प्रोजेक्ट्स 25 से 60 महीने की और 131 प्रोजेक्ट 61 महीने या अधिक की देरी से चल रही हैं।
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक की लागत वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निगरानी करता है।
इन परियोजनाओं में देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी और बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख है।
देर से चल रही परियोजनाओं की संख्या 662 रही है। एक से 12 महीने की देरी से चल रही परियोजनाओं की संख्या 133 है।
Infra Projects: परियोजनाओं में देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी और बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख है।
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