ऐतिहासिक जीएसटी व्यवस्था को बहुत सारे केंद्रीय और राज्य करों को समाप्त करने के उद्देश्य के साथ 1 जुलाई, 2017 को लागू किया गया।
सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) रिटर्न दाखिल करने की समयसीमा में राहत दी है। जून 2020 के दौरान अप्रैल, मार्च और यहां तक कि फरवरी के रिटर्न भी दाखिल किए गए।
कोरोना वायरस महामारी के कारण बिक्री गिरने से रियल्टी कंपनियों को कर्मचारियों की छंटनी और वेतन में कटौती करना पड़ रहा है।
रियल एस्टेट क्षेत्र को देनदारी की समयसीमा में विस्तार की उम्मीद
विकसित प्लांट की कीमत को लेकर गुजरात पीठ ने दिया फैसला
गुजरात एएआर के निर्णय को सीजीएसटी कानून के अनुसूची-तीन के प्रावधानों के तहत गौर करने की जरूरत है। ऐसा नहीं होने से उद्योग के लिए समस्या होगी।
बेंग्लुरू की रेडी-टू-ईट फूड बनाने वाली कंपनी के मामले पर दिया गया फैसला
रिटर्न भरने में देरी पर लगने वाले ब्याज पर भी मिली राहत
निदेशकों को मिलने वाले वेतन पर कोई जीएसटी नहीं लगेगा
जीएसटी रिटर्न दाखिल नहीं करने पर विलंब शुल्क को माफ करने पर भी विचार
केंद्रीय जीएसटी कानून 2017 की अनुसूची- तीन के तहत एक कर्मचारी द्वारा अपने नियोक्ता के लिए दी गई सेवाओं के तौर पर कर योग्य नहीं माना जा सकता है।
डीजीएपी ने पाया कि फूड प्रोसेसर का विदेश से आयात किया जाता था और इस पर फिलिप्स एमआरपी पर मूल्य वर्धित कर (12.50 से लेकर 15.95 प्रतिशत) के दायरे के अलावा 12.50 प्रतिशत की दर से प्रतिपूर्ति शुल्क का भुगतान कर रही थी।
सीबीआईसी ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए विलंब शुल्क लगाया जाता है कि करदाता समय पर रिटर्न दाखिल करें।
जीएसटी लेट फीस पर राहत के अनुरोधों के बाद वित्त मंत्री का बयान
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीआईसी) ने कहा कि इस कठिन समय में करदाताओं को राहत देने के लिए तेजी से लंबित कर वापसी का निर्णय किया गया है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी किसी भी देश ने इस महामारी समय के दौरान इस तरह का प्रयोग नहीं किया है।
मारुति के मुताबिक उत्पादन अभी निचले स्तर पर है ऐसे में कटौती का फायदा नहीं होगा
ईवाई के कर भागीदारी अभिषेक जैन ने कहा कि देश का बड़ा हिस्सा पूरी तरह से लॉकडाउन में है या फिर आंशिक लॉकडाउन के तहत है ऐसे में उद्योगों के लिए जून अंत की समय सीमा के भीतर यह काम करना मुश्किल होता।
विज्ञापन एजेंसियां भुगतान के लिए ज्यादा समय मांग रही है और उधार की अवधि 60 दिन से और अधिक बढ़ाने का दबाव बना रही हैं।
करों और सीमा-शुल्क वापसी योजनाओं के तहत इकाइयों के 18,000 करोड़ रुपए के दावे लंबित हैं
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