स्वतंत्रता दिवस अब करीब आ गया है और भारतवासी इस खास मौके पर देश के लिए कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को याद करेंगे। इन स्वतंत्रता सेनानियों पर बॉलीवुड में कई फिल्में बनी हैं। 'गांधी' से लेकर 'मंगल पांडे' तक ऐसी फिल्मों की लिस्ट हम आपके लिए लाए हैं।
बलिया के छोटे से गांव में जन्में मंगल पांडे को कौन नहीं जानता है। आजादी के लिए ल़ी जाने वाली पहली लड़ाई 1857 की क्रांति ही थी, जिसमें मंगल पांडे ने अहम भूमिका निभाई और मंगल पांडे से नाराज अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी।
अविभाजित भारत के स्वंतंत्रता संग्राम के दौरान आजादी के नायक रहे सरदार भगत सिंह की फांसी को गलत बताते हुए पाकिस्तान में कुछ संगठनों ने इस मामले की फिर से सुनवाई करने की मांग की है। पाकिस्तान कोर्ट से मामले की उसी तरह दोबारा सुनवाई कर न्याय देने की मांग की है, जैसा पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो के केस में हुआ।
पाकिस्तान की अदालत में एक याचिका दायर कर शहीद भगत सिंह को सजा से बरी करने की मांग की गई है। साथ ही मरणोपरांत उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करने की मांग की गई है। ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या में दोषी मानकर भगत सिंह को फांसी दी गई थी। मगर याचिका के अनुसार बिना गवाहों को सुने भगत सिंह को सजा दी गई।
वीर सावरकर जयंती: वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक गांव में हुआ था। आज उनकी जयंती के अवसर पर पढ़ें उनके जीवन के बारे में कुछ बातें।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा की बिशनी देवी साह उत्तराखंड की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं। आजादी की लड़ाई में जेल जाने वालीं वो पहली महिला भी रही।
राज्य सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन को दोगुना कर दिया है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की साप्ताहिक बैठक में इस मामले में फैसला लिया गया।
Independence Day 2022: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के घर पहुंचे और उन्हें कच्चे सूत की माला पहनाकर, शॉल ओढ़ाकर व श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया।
75 years of independence: आजादी के 75 साल जल्द ही पूरे होने वाले हैं। इसी मौके पर देश 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है। जब हमारा देश आजाद हुआ था, तब हर मामले में हमारा देश पिछड़ा था। अंग्रेजों ने जितना भारत को आधुनिक बनाया था, उससे कई गुना भारत को लूट लिया था।
75 years of independence: 'जय हिंद!' हो या 'वंदे मातरम!', आज बोले जाने वाले अधिकांश लोकप्रिय देशभक्ति के नारों की उत्पत्ति भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन से हुई है। वर्तमान समय में भी इन नारों को खुब बोला जाता है।
Subhash Chandra Bose: पूरी दुनिया दूसरे विश्वयुद्ध की आग में जल रही थी। उस समय भारत में भी स्वतंत्रता के लिए अहिंसक और सशस्त्र आंदोलन गति पकड़ रहा था। महात्मा गांधी अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि सशस्त्र आंदोलन की बागडोर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हाथों में थी।
भारत में जरूरत और मांग के हिसाब से वक्त-वक्त पर नए राज्यों का गठन होता रहा है। 2019 में ही जम्मू कश्मीर और लद्दाख को अलग करते हुए दो केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर मान्यता दी गई थी।
शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी गाथाएं देश के लिए दिन रात मेहनत करने के लिए देशवासियों को प्रेरित करती हैं।
मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘पंजाब केसरी लाला लाजपत राय को उनकी जयंती पर सादर नमन। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके साहस, संघर्ष और समर्पण की कहानी देशवासियों के लिए सदैव स्मरणीय रहेगी।’
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन पर महात्मा गांधी के विचारों का भी प्रभाव था, भले ही आजादी की जंग में गांधीजी से उनके मतभेद रहे हों, लेकिन बोस ने ही गांधीजी सबसे पहले राष्ट्रपिता की उपाधि दी थी। 1938 और 1939 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष भी बने। हालांकि, 1939 में महात्मा गांधी और कांग्रेस आलाकमान के साथ मतभेदों के बाद उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया औऱ पार्टी से अलग हो गए।
देश की आजादी के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अथक प्रयास किए। उन्होंने ब्रिटेन के विरोधी देशों को जो विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के विरोध में लड़ रहे थे, उन्हें साधने की कोशिश की, ताकि वे अपनी ऐसी फौज बना सकें, जिससे वे अंग्रेजों से लड़ सकें। इसके लिए वे जर्मनी गए और हिटलर से मिले, जापान भी गए। उन्हें यहां से सहयोग भी मिला।
देश भारतमाता के वीर सपूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है। उनके जन्मदिन को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पराक्रम दिवस के रूप में मना रही है। अब गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत उनके जन्मदिन से प्रारंभ होगी। जानिए नेताजी कैसे राजनीति में आए, क्यों आईसीएस की परीक्षा से त्यागपत्र दे डाला और भी बहुत कुछ।
देश की आजादी की लड़ाई में कुछ नौजवानों का बलिदान इतना उद्वेलित करने वाला था कि उसने पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम का रूख बदलकर रख दिया इनमें एक नाम खुदीराम बोस का है, जिन्हें 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई।
चीनी सेना के एक वरिष्ठ जनरल ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक संयुक्त मोर्चा आगे बढ़ाने की कोशिशें जटिल हो गयी हैं क्योंकि कुछ देशों ने आतंकवादियों का चित्रण ‘‘स्वतंत्रता सेनानियों’’ के तौर पर करके आतंकवाद की परिभाषा का ‘‘दुरुपयोग’’ किया है।
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन के बाद नेताजी ने 1939 में कांग्रेस को जनता की स्वतंत्र होने की इच्छा, लोकतंत्र और क्रांति का प्रतीक बनाने के लिए कांग्रेस के भीतर ही फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना की थी।
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