कंगना रनौत ने एक बार फिर किसानों से जुड़ा बयान दिया है। उनके बयान से बीजेपी ने किनारा कर लिया है। हालांकि, कंगना के बयान को लेकर अब कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला बोला है।
राज्य की मंडियां एवं राइस मिल बंद कर दी गई हैं और खाद्य वस्तुओं का आयात भी रोक दिया जाएगा। इस हड़ताल का फैसला पिछले हफ्ते आयोजित व्यापारी महासंघ की बैठक में किया गया था।
कृषि क्षेत्र में सुधारों को महत्वपूर्ण बताते हुए नीति आयोग के सदस्य-कृषि रमेश चंद ने रविवार को कहा कि तीन कृषि कानूनों को रद्द करना किसानों को अधिक मूल्य दिलाने के प्रयासों के लिए एक झटका है।
समिति के सदस्यों में से एक अनिल घनवट ने राष्ट्रीय राजधानी में संवाददाता सम्मेलन में रिपोर्ट के निष्कर्ष जारी किए। स्वतंत्र भारत पार्टी के अध्यक्ष घनवट ने कहा, ‘19 मार्च 2021 को हमने सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी। हमने शीर्ष अदालत को तीन बार पत्र लिखकर रिपोर्ट जारी करने का अनुरोध किया। लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला।’
नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले एसकेएम ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर समिति बनाने और किसानों के खिलाफ मामले वापस लेने सहित उनकी शेष मांगें अभी भी अधूरी हैं।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आगे कहा कि मैं भाजपा को याद दिलाना चहाता हूं कि अब जब चुनाव आ गया है तो अपना संकल्प पत्र पढ़ें और देंखें कि जो वादे उन्होंने किए वह पूरे हुए या नहीं। उनका हर वादा जुमला निकला, झूठे विज्ञापन दिए। मुझे उम्मीद है कि इस बार सपा-RLD की जीत होने जा रही है।
किसान नेता राकेश टिकैत ने शनिवार को कहा कि लखीमपुर खीरी में जो घटना हुई थी, हम 21 तारीख से वहां पर 3-4 दिन के लिए जाएंगे। वहां पर पीड़ितों से मुलाक़ात करेंगे। जो किसान जेल में है, हम उनसे भी मिलेंगे।
सत्यपाल मलिक ने कहा कि अन्नदाताओं ने अपने अधिकारों व हकों की लड़ाई जीती है और भविष्य में भी अगर किसानों के खिलाफ कोई सरकार कदम उठाती है तो वह पूरी ईमानदारी से इसका विरोध करेंगे और अगर कोई पद छोड़ने की बात आई तब भी वह पीछे नहीं हटेंगे।
तीनों कानूनों के खिलाफ यूं तो आंदोलन की शुरुआत 2020 में हो गई थी। वर्ष 2021 से पहले ही किसान दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाल चुके थे। सरकार की ओर से भी बातचीत की पहल चल रही थी।
साल 2021 कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं और असाधारण हलचलों का साक्षी रहा है। इस साल में किसानों का आंदोलन और उनकी जीत, दक्षिणी राज्यों में बीजेपी का सफाया और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत जैसे कुछ दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम हुए।
दरअसल, कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद हाल ही में निरस्त किए गए तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लाने की ‘साजिश’ कर रही है
किसानों के परिवारों ने ट्रैक्टरों में आ रहे किसानों को माला पहनाकर; लड्डू, बर्फी और अन्य मिठाइयां खिलाकर उनका स्वागत किया। किसानों के आंदोलन का समर्थन करने वाले गांववासी और अन्य लोग उनका स्वागत करने के लिए राजमार्गों के किनारे एकत्रित हुए और उन्होंने किसानों पर फूल बरसाए।
कुंडली की झुग्गियों में रहने वाले 13 वर्षीय आर्यन ने बताया, हम अपना नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना यहीं लंगर में करते थे।
मुख्यालय के लोहे के जिस द्वार पर SKM के स्वयंसेवक आगंतुकों पर नजर रखते थे, आज सुबह वहां सन्नाटा पसरा दिखा।
सुबह से ही झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोग और कबाड़ी बांस के खंभे, तिरपाल, लकड़ियां, प्लास्टिक और लोहे की छड़े चुनने में लगे रहे।
आखिरकार 378 दिन बाद किसानों का आंदोलन खत्म हो गया है। आज 11 दिसंबर को सभी अपने-अपने घर की ओर रवाना होंगे। किसानों का पहला जत्था अपने घर के लिए रवाना हो गए हैं। राकेश टिकैत ने कहा है कि वो 15 जनवरी के बाद जाएंगे। उन्होंने कहा है कि अगले चार दिनों में अधिकांश किसान चले जाएंगे।
किसानों की मांग थी कि आंदोलन के दौरान देशभर में दर्ज हुए मुकदमे को वापस लिया जाए। एमएसपी पर कानूनी गारंटी दी जाए। केंद्र की सहमति के बाद 15 जनवरी को किसानों की फिर समीक्षा बैठक होगी।
चालीस किसान संघों का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन निलंबित करने का बृहस्पतिवार को निर्णय लिया और घोषणा की कि किसान 11 दिसंबर से अपने घरों की ओर लौटने लगेंगे।
किसानों ने अपना आंदोलन स्थगित कर दिया है। 11 दिसंबर से किसानों की घर वापसी शुरू होगी। किसान 15 जनवरी को समीक्षा बैठक करेंगे।
SKM ने कहा, "सरकार के ताजा प्रस्ताव पर आम सहमति बन गई है। अब सरकार के लेटरहेड पर औपचारिक संवाद का इंतजार है। गुरुवार दोपहर 12 बजे फिर से सिंघू बॉर्डर पर बैठक होगी।"
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