कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर 26 नवंबर से डटे हजारों किसानों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि आठ दिसंबर को पूरी ताकत के साथ ‘भारत बंद’ किया जाएगा।
किसान नेताओं ने कहा कि 8 दिसंबर को सुबह से शाम तक बंद होगा। चक्का जाम 3 बजे तक होगा। एम्बुलेंस और शादियों के लिए रास्ता खुला रहेगा, शांतिपूर्ण प्रदर्शन रहेगा।
कृषि मंत्री ने किसानों से शनिवार को भावुक अपील की। किसान दिल्ली के बॉर्डर पर कड़ाके की ठंड में कृषि बिल को वापस लेने की मांग पर डटे हुए है। किसानों के साथ इसमें बच्चे और बुढ़े भी शामिल है। ऐसे में ठंड काफी बढती जा रही है।
नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच विज्ञान भवन में पांचवें दौर की लगभग 5 घंटे चली बातचीत भी बेनतीजा रही। अब 9 दिसंबर को छठे दौर की बाचतीच दोपहर 12 बजे होगी।
सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि नए कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध के बीच आंदोलित किसानों और सरकार के बीच समाधान निकलने के आसार कम नजर आ रहे हैं।
केंद्र सरकार से हाल के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की किसानों की मांग स्वीकार करने की मांग करते हुए इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) ने शुक्रवार को कृषकों के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के शिरोमणि अकाली दल (SAD) द्वारा बनाये जाने वाले किसी भी मोर्चे में शामिल होने की इच्छा प्रकट की।
नये कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से दिल्ली से लगती हरियाणा और उत्तर प्रदेश की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन जारी है। इस बीच दिल्ली के एक निवासी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए किसानों को सड़कों से हटाने का निर्देश देने की मांग की है।
किसानों को अपनी नाराजगी दिखाने का लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन उन्हें किसी भी कीमत पर राष्ट्रविरोधी तत्वों को अपने मंच का इस्तेमाल करने और अशांति फैलाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए।
सिंघु बॉर्डर पर किसान संगठनों ने शुक्रवार शाम को प्रेस वार्ता करते हुए कहा कि यदि सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानीं तो 5 दिसंबर यानि कल शनिवार को देशभर में पीएम मोदी के पुतले जलाएंगे और 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया जाएगा।
भारत ने किसानों के विरोध प्रदर्शन पर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और अन्य नेताओं की टिप्पणी को लेकर कनाडा के उच्चायुक्त को तलब किया। भारत ने उच्चायुक्त को कहा कि किसानों के आंदोलन के संबंध में कनाडाई प्रधानमंत्री की टिप्पणी देश के आंतरिक मामलों में एक अस्वीकार्य हस्तक्षेप के समान है।
किसान आंदोलन को सुलझाने के लिए विज्ञान भवन में गुरुवार को हुई चौथे दौर की बैठक भले किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी, लेकिन मांगों को लेकर सरकार का रुख पहले से नरम हुआ है।
3 केंद्रीय मंत्रियों के साथ आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधिमंडल की बैठक गुरुवार को बेनतीजा रही। लगभग आठ घंटे चली इस बैठक में किसान नेता नए कृषि कानूनों को रद्द करने पर जोर देते रहे। अगली बैठक 5 दिसंबर (शनिवार) को होगी।
नए कानून के नाम पर आंदोलन कर रहे किसानों को अपने इन साथी किसानों की ये सक्सेज स्टोरीज जरूर पढ़नी चाहिए।
कृषि कानून के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज आठवां दिन है। एक तरफ किसान नेता सरकार के साथ विज्ञान भवन में मीटिंग कर रहे हैं और दूसरी तरफ पूरी दिल्ली में अलग अलग बॉर्डर पर किसानों का घमासान जारी है।
बिहार में भी कृषि कानूनों के विरोध में विपक्षी राजनीतिक दल एक जुट होकर सत्ता पक्ष पर दबाव बनाने की जुगत में हैं। वैसे, बिहार में इसका विरोध किसानों के बीच वैसा देखने को नहीं मिल रहा है, लेकिन वामपंथी दल इसे लेकर अब गांवों में जाने की योजना बना रहे हैं।
1 दिसंबर को हुई मीटिंग के बाद आज एक बार फिर सरकार और किसान नेता डायलॉग टेबल पर है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की कृषि कानूनों पर किसान नेताओं के साथ बैठक शुरू हो गई है।
शिरोमणि काली दल (शिअद) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने बुधवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर कृषि कानूनों को लागू करके किसानों की पीठ में छूरा घोंपने का आरोप लगाया।
कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के मुद्दे पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह 3 दिसंबर यानि गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करेंगे।
महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड के किसान कह रहे हैं कि नए कानूनों से उन्हें फायदा मिला और वो फायदा उठा रहे हैं, इससे ये बात तो साफ हो गई कि कम से कम देश के सभी किसान ना तो नए कानूनों से नाराज हैं और ना नए कृषि कानूनों को किसानों के खिलाफ बता रहे हैं।
खेती से जुड़े 3 कानूनों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इन तीनों कानूनों से पंजाब, हरियाणा समेत कुछ राज्यों के किसान नाराज हैं। उन्हें चिंता है कि नए कानून से उपज पर मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो सकता है लेकिन क्या नए कानून से सारे किसानों का नुकसान हुआ?
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