वित्त वर्ष में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में 22 प्रतिशत घटकर 4.95 लाख करोड़ रुपये रहा। इस दौरान कॉरपोरेट कर संग्रह 26 प्रतिशत घटकर 2.65 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि व्यक्तिगत आयकर संग्रह 16 प्रतिशत घटकर 2.34 लाख करोड़ रुपये रह गया।
कोरोना संकट से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को 8 महीने बाद खुशी मिली है। वित्त मंत्रालय ने रविवार को बताया कि अक्टूबर में जीएसटी संग्रह 1.05 लाख करोड़ रुपये से अधिक था।
रिजर्व बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में 9.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान दिया है। वहीं आईएमएफ ने 10.3 फीसदी और वर्ल्ड बैंक ने 9.6 फीसदी की गिरावट का अनुमान दिया है। हालांकि लगभग सभी अनुमानों में अगले साल तेज रिकवरी की भी बात कही गई है।
उद्योग मंडल के मुताबिक 25 प्रमुख आर्थिक संकेतकों से संकेत मिलता है कि कारोबारी गतिविधियों अब सामान्य हो रही हैं। उद्योग मंडल ने हालांकि कहा कि सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बेरोजगारी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी की दर अब भी चिंता का विषय है। अगस्त में यह बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गई, जो जुलाई में 7.4 प्रतिशत थी।
रिजर्व बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में 9.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान दिया है। वहीं आईएमएफ ने 10.3 फीसदी और वर्ल्ड बैंक ने 9.6 फीसदी की गिरावट का अनुमान दिया है। हालांकि लगभग सभी अनुमानों में अगले साल तेज रिकवरी की भी बात कही गई है। वहीं नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने सलाह दी है कि अगले राहत पैकेज में खास इंफ्रा प्रोजेक्ट पर सरकार का ध्यान होना चाहिए
गवर्नर के मुताबिक देश आर्थिक पुनरोद्धार के मुहाने पर पहुंच चुका है, ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि वित्तीय इकाइयों के पास बढ़त को समर्थन के लिए पर्याप्त पूंजी हो। उन्होने कहा कि कई वित्तीय इकाइयां पहले ही पूंजी जुटा चुकी हैं, कुछ पूंजी जुटाने की योजना बना रही हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि निश्चित रूप से आने वाले महीनों में बाकी इकाइयां भी पूंजी जुटा लेंगी।
कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये लगाये गये कड़े लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था छह महीने तक दिक्कतों में फंसी रही। अब जल्दी जल्दी प्राप्त होने वाले कुछ आंकड़े संकेतक दे रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की हालत सुधार पर है हालांकि अभी यह सुधार कमजोर है।
आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि कोरोना संकट की वजह से इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज गिरावट दर्ज होगी। अनुमान के मुताबिक साल 2020 में अर्थव्यवस्था 10.2 फीसदी गिर सकती है।
कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में लगातार वृद्धि और देश में लगाये गये कड़े लॉकडाउन का प्रभाव जारी रहने से अर्थव्यवस्था पर दबाव बना हुआ जिससे आर्थिक वृद्धि को लेकर चिंता गहरा गई है।
रेटिंग एजेंसी ने भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को बीबीबी (-) पर बरकरार रखा है। एजेंसी ने कहा कि भारत की लंबी अवधि की रेटिंग के लिए उसका आउटलुक स्थिर है।
मंगलवार को आए आंकड़ों के मुताबिक देश के निर्यात में लगातार छठे महीने गिरावट दर्ज हुई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अगस्त में पेट्रोलियम, चमड़ा, इंजीनियरिंग सामान और रत्न एवं आभूषण के निर्यात में कमी दर्ज हुई है।
गवर्नर के मुताबिक देश अभी भी कोरोना वायरस के प्रभाव में है और विकास की रफ्तार धीरे-धीरे लौटेगी। वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में स्थितियां सुधरी हैं। अर्थव्यवस्था के कई हिस्सों में बेहतर प्रदर्शन देखने को मिल रहा है
जुलाई के दौरान देश के औद्योगिक उत्पादन में लगातार पांचवे महीने गिरावट देखने को मिली है। आज जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक जुलाई के दौरान इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन यानि आईआईपी में 10.4 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। जून के दौरान इसमें 16.6 फीसदी की गिरावट थी।
अनुमानों के मुताबिक अगले वित्त वर्ष अर्थव्यवस्था में तेज रिकवरी देखने को मिलेगी। एजेंसी के मुताबिक तीसरी तिमाही से रिकवरी शुरू होगी और 2021-22 में अर्थव्यवस्था में बेस इफेक्ट की वजह से तेज बढ़त देखने को मिल सकती है।
“बैंक न भूलें कि उनका मूल काम लोगों को कर्ज देना है, उन्हे ये काम करते रहना चाहिए। वहीं उन्हें सरकारी योजनाओं के माध्यम से लोगों का कल्याण भी करना चाहिए। वहीं निजी क्षेत्र के बैंकों को भी सरकारी योजनाओं के जरिए लोगों की मदद के लिए आगे आना चाहिए”
जुलाई 2020 के दौरान सीमेंट, इस्पात और कोयला जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार के संकेत मिले हैं। हालांकि पिछले साल के स्तर के मुकाबले इन सेक्टर में अभी भी गिरावट का रुख है लेकिन जून के मुकाबले स्थिति में तेज सुधार का अनुमान
पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत की गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में यह गिरावट 12 से 15 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4 से 5 प्रतिशत रह सकती है।
इस फिरौती के बाद दुनिया को पहली ग्लोबल करंसी मिली इसके साथ ही पैसे का फ्लो बढ़ने से महंगाई और करंसी के डीवैल्यूशन जैसे अहम सबक भी मिले, इसी की वजह से दुनिया की पहली कैशलैस सभ्यता भी खत्म हो गई।
वित्त मंत्रालय द्वारा जारी ताजा मासिक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिबंधों में ढील के बाद से अब अर्थव्यवस्था से जुड़े संकेत बेहतर होने लगे हैं। पीएमआई इंडेक्स, कोर सेक्टर, खरीफ की बुवाई, मालढुलाई, यात्री वाहनों की बिक्री के आंकड़ों से रिकवरी के संकेत हैं।
यह रिकॉर्ड गिरावट निजी क्षेत्र के कारण आई थी, जो कि कोविड-19 महामारी को रोकने के प्रयासों के तहत या तो बंद थे या प्रतिबंधित थे।
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