दरअसल इस मामले को रूसी सुरक्षा काउंसिल के डिप्टी सेक्रेटरी मिखाइल पोपोव ने उजागर किया है। उन्होंने दावा किया है कि यूक्रेन युद्ध के दौरान पिछले सप्ताह ही अमेरिका ने रूस से 43 फीसदी ज्यादा यानी करीब हर रोज एक लाख बैरल तेल की खरीद की है।
कच्चे तेल में यह तेजी अमेरिका के साथ देने के लिए यूरोपीय संघ के देशों द्वारा रूस पर लगाए तेल प्रतिबंध में शामिल होने के निर्णय के बाद आया है।
सरकारी तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) ने रूस से 30 लाख बैरल कच्चा तेल की खरीदारी की है।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की परिस्थितियों में कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी का प्रभाव दुनियाभर में देखा जा रहा है। भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है। जानिए क्या और कैसे पड़ता है इसका प्रभाव।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 130 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है। अब ईंधन की कीमत में बढ़ोतरी के कयास लगाए जा रहे हैं।
पांच राज्यों में चुनाव के चलते देश में 4 नवंबर 2021 के बाद से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बदलाव नहीं हुआ है। वहीं, ब्रेंट क्रूड इस दौरान 81 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 130 डॉलर के पार पहुंच गया है।
कमोडिटी एक्सपर्ट और केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया ने इंडिया टीवी को बताया कि बीते 90 दिन में कच्चा तेल 90% महंगा हो गया है।
विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आने वाले हैं और उसके बाद घरेलू स्तर पर पेट्रोल एवं डीजल के दाम में तीव्र बढ़ोतरी देखी जा सकती है।
वैश्विक तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमत गुरुवार को 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गई। बाद में गिरावट बढ़कर 104 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं।
आने वाले दिनों में घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल समेत तमाम पेट्रोलियम उत्पाद महंगे होंगे। यह जरूरी सामान की कीमत में बढ़ोतरी करने का भी काम करेंगे। इससे आम लोगों पर घर के बजट का बोझ बढ़ना तय है।
दिसंबर, 2021 में कच्चे तेल का उत्पादन 25.1 लाख टन रहा, जो एक वर्ष पहले के उत्पादन 25.5 लाख टन और 26 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले कम है।
विदेशी संस्थागत निवेशकों के बिकवाल रहने से घरेलू बाजार में उठापटक देखी गई। अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने की आशंका के बीच बांड प्रतिफल बढ़ने से वैश्विक स्तर पर बाजारों में बिकवाली का दबाव रहा।
वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के मानक ब्रेंट क्रूड के भाव मंगलवार को 87.7 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए।
इंडिया इंफोलाइन के वाइस प्रेसिडेंट (कमोडिटी और करेंसी) अनुज गुप्ता ने इंडिया टीवी को बताया कि कच्चे तेल की कीमतों में बीते दो महीने से लगातार तेजी है।
तेल के मामले में आयात पर निर्भरता घटाने के सरकारी प्रयासों के बावजूद भारत अपनी 85 प्रतिशत तेल जरूरत आयात से ही पूरी करता है।
भारत के पास पूर्वी और पश्चिमी तट पर तीन स्थानों पर भूमिगत भंडारगृहों में 3.8 करोड़ बैरल कच्चे तेल का भंडार मौजूद है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने से भारत पर काफी असर पड़ा है। दुनिया का तीसरा बड़ा तेल उपभोक्ता देश होने से भारत को अपनी विदेशी मुद्रा का एक बड़ा हिस्सा तेल आयात पर खर्च करना पड़ रहा है।
कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के द्वारा स्ट्रेटजिक पेट्रोलियम रिजर्व से कच्चे तेल की सप्लाई बढ़ाने के संकेतों के बाद भी कीमतों पर असर पड़ा
तीन नवंबर को केन्द्र सरकार के द्वारा पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में क्रमश: पांच और 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती के बाद से पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर हैं।
एक अनुमान के मुताबिक वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल 10 अमरीकी डालर की बढोतरी से व्यापार घाटा 12 अरब डालर या सकल घरेलू उत्पाद के 35 बेस प्वाइंट तक बढ़ेगा
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