विंडफॉल टैक्स (windfall tax) किसी स्पेसिफिक इंडस्ट्री पर लगाया जाने वाला एक हाई टैक्स है। जब कोई इंडस्ट्री उम्मीद से ज्यादा औसत प्रॉफिट कमाती है तो विंडफॉल टैक्स लागू किया जाता है।
तेल उत्पादक देशों के समूह वाला ओपेक+ ब्लॉक द्वारा उत्पादन में कटौती को तीन और महीनों के लिए बढ़ाए जाने के बाद, ब्रेंट क्रूड 5 सितंबर को 90 डॉलर प्रति बैरल से पार हो गया।
जानकारों का कहना है कि भारत अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी तेल विदेशों से आयात करता है। कच्चा तेल महंगा होने से भारत का आयात बिल बढ़ेगा जो चालू खाते का घाटा बढ़ेगा।
रूसी कच्चे तेल पर छूट में गिरावट और पेमेंट संबंधी दिक्कतें पेश आ रही हैं। इसी बीच खबर है कि भारत के सरकार रिफाइनर कच्चे तेल की खरीद के लिए मध्य पूर्व के अपने पुराने तेल निर्यातक देशों की ओर मुड़ रहे हैं।
भारत की नकल पाकिस्तान द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदने घाटे का सौदा बन गया है। पाकिस्तान को जो रूसी कच्चा तेल मिला है। वह पाकिस्तान की सरकार अपनी जनता को सस्ते दामों पर नहीं दे पा रही है। जानिए क्या है इसकी वजह?
रूस से कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से कम के भाव पर मिल रहा है, लेकिन परिवहन लागत के कारण कुल मिलाकर यह राशि 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल बैठ रही है।
रूस जिसका वर्चस्व तेल की दुनिया में आज से नहीं बल्कि 1930 के दशक से रहा है, जब तेल के भंडारों की खोज की गई थी। लेकिन अचानक परिस्थितियां बदली हैं। सऊदी अरब को अब रूस से ऑयल मार्केट में कड़ी टक्कर मिल रही है।
कच्चे तेल के कारोबार पर रोकथाम लगाने की यूरोपीयन यूनियन (EU) की कोशिशों के बीच भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने यूरोपीय संघ को ऐसा करारा जवाब दिया है कि EU की बोलती बंद हो गई।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार चीन के बाद भारत का सबसे ज्यादा व्यापार घाटा रूस के साथ है। भारत की कोशिश रही है कि व्यापार के लिए रुपये-रूबल मैकेनिजम का ही इस्तेमाल हो। इस मैकेनिज्म में भारत रूस को भारतीय मुद्रा में भुगतान करेगा और रूस भारत को रुबल में भुगतान करेगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के शीर्ष तेल निर्यातक देश सऊदी अरब चार महीनों में पहली बार एशियाई खरीदारों के लिए कच्चे तेल की कीमत में कटौती की है। दरअसल, रूस द्वारा सस्ती दरों पर तेल बेचने के बाद ऑयल मार्केट में सऊदी अरब को काफी नुकसान हुआ है।
यूरोप रूस से अपने इस्तेमाल का 30 फीसदी तेल खरीदता था। लेकिन जंग शुरू होने के बाद प्रतिबंध लग जाने के कारण वे रूस से तेल नहीं खरीद पाए और उनके यहां तेल की किल्लत हो गई। यूरोपीय देशों की इसी किल्लत को भारत पूरा कर रहा है।
NSE ने एक सर्कुलर में कहा कि 15 मई से जिंस फ्यूचर एंड ऑप्शन खंड में कारोबार के लिए कच्चा तेल एवं प्राकृतिक गैस पर वायदा अनुबंध किए जा सकेंगे।
इमरान खान ने कहा कि ‘पाकिस्तान भारत की तरह सस्ता रूसी कच्चा तेल प्राप्त करना चाहता था, लेकिन वह ऐसा करने में सक्षम नहीं हो पाए क्योंकि उनकी सरकार गिर गई। एक वीडियो जारी करके इमरान खान ने अपनी बात रखी।
रूस- यूक्रेन युद्ध के बाद पीएम मोदी के दोस्त राष्ट्रपति पुतिन उस वक्त बेहद परेशान हो गए थे, जब पश्चिमी देशों ने रूस पर यूक्रेन हमले का दोषी मानते हुए कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे और इसमें रूस के कच्चे तेल पर प्राइस कैप भी शामिल था। इससे रूस की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने का खतरा था। मगर दोस्त भारत ने उसे संभाल लिया।
भारत के आयात में रूस की हिस्सेदारी 34 प्रतिशत हो गई है। मार्च में भारत की रूस से कच्चे तेल की खरीद इराक से दोगुना रही है। इस दौरान इराक से कच्चे तेल का आयात 8.1 लाख बैरल प्रतिदिन से अधिक रहा है।
Inflation Rate Increase: पूरी दुनिया में मंदी की आशंका के बीच महंगाई के मोर्चे पर सरकार फिर से कमजोर पड़ती नजर आ रही है। सऊदी अरब ने ऐलान किया है कि वह मई महीने से तेल उत्पादन में बड़ी गिरावट करने जा रहा है। क्रूड ऑयल के प्रोडक्शन कम करने से तेल की कीमतें बढ़ेंगी और वह महंगाई को बढ़ाने का काम करेगा।
भारत की तरह ही पाकिस्तान रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना चाहता है और इसके लिए वह उतावला हुआ जा रहा है। जानिए पूरी खबर-
रूस पाकिस्तान को कच्चा तेल बेचने के लिए तैयार तो हो गया है, लेकिन उसने एक बड़ी शर्त पाकिस्तान के सामने रख दी है। रूस ने पाकिस्तान से कहा है कि वो पहले उससे कच्चे तेल का एक कार्गो आयात करे। यह शर्त पाकिस्तान पर इसलिए थोपी है, क्योंकि रूस को शक है कि पाकिस्तान तेल समझौते को लेकर गंभीर नहीं है।
यूक्रेन पर हमले का दोषी ठहराते हुए पश्चिमी देशों की ओर से रूस पर लगाए गए हजारों प्रतिबंधों के बावजूद पुतिन का हौसला डिगा नहीं है। इसकी एक वजह भारत भी है। जब पश्चिमी देशों ने रूस के कच्चे तेल पर प्राइस कैप लगाया तो यह माना जा रहा था कि इससे उसकी आर्थिक स्थिति बुरी तरह बर्बाद हो जाएगी।
Crude oil from Russia: भारत आए दिन तेल खरीदने के मामले में एक नया रिकॉर्ड बनाता जा रहा है। हालांकि इसके पीछे का एक इतिहास भी है। आइए जानते हैं कि दिसंबर और जनवरी महीने में ही हमेंशा तेल का आयात इतना अधिक क्यों बढ़ जाता है?
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