फैसले के बाद की स्थितियों को लेकर जतायी जा रही तमाम आशंकाओं और अटकलों के विपरीत उत्तर प्रदेश में हालात बिल्कुल सामान्य रहे। शुरू में सड़कों पर सन्नाटा जरूर दिखा, मगर बाद में लोगों और वाहनों का आवागमन सामान्य रहा।
शीर्ष अदालत के फैसले का हिन्दू नेताओं और समूहों ने व्यापक स्वागत किया, वहीं मुस्लिम नेतृत्व ने इसमें खामियां बताते हुए कहा कि वे निर्णय को स्वीकार करेंगे। उन्होंने भी शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की। इसके साथ ही राजनीतिक दलों ने कहा कि यह अब आगे बढ़ने का समय है।
नया घाट पर कोई विशेष गतिविधि नहीं थी। इक्का-दुक्का श्रद्धालु डुबकी लगाते नजर आए। एक भी पुरोहित नहीं दिखा। केवल पुलिसकर्मी, मीडिया के लोग और कुछ साधु संत नजर आए।
अपर पुलिस महानिदेशक असीम अरूण ने पत्रकारों को बताया, ‘‘इमरजेंसी आपरेशन सेंटर पुलिस के 112 मुख्यालय में बनाया गया है। यहां जोन वार डेस्क बनाये गये हैं जो 112 की कॉल, सोशल मीडिया, मीडिया से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर नजर रख रहे हैं। अगर कहीं जरूरत पड़ी तो पीआरवी, क्यूआरटी, पीएएसी आदि बल भेजे जाने के निर्देश दिये जायेंगे।’’
न्यायालय में पराशरण को बैठकर दलील पेश करने की सुविधा भी दी गई लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि वह भारतीय वकालत की परंपरा का पालन करेंगे।
फैसले के बाद कुछ भाजपा नेताओं के राम मंदिर में दर्शन करने के संबंध में पवार ने कहा कि यह किसी का व्यक्तिगत अधिकार और पसंद है कि वह मंदिर जाए या मस्जिद।
अयोध्या भूमि विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट के शनिवार के फैसले के बाद मुस्लिम धर्मगुरुओं ने एक सुर से फैसले का स्वागत किया और इसके प्रति सम्मान जाहिर किया है।
अयोध्या प्रकरण पर शनिवार को आने वाले फैसले के मद्देनजर उत्तर प्रदेश सरकार ने नौ नवंबर से 11 नवंबर तक प्रदेश के सभी स्कूल कालेज और शैक्षणिक संस्थान बंद करने के निर्देश दिए हैं।
रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद मामले में उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले से पहले राम की नगरी अयोध्या छावनी में बदल गयी है। जमीन से आसमान तक पुलिस निगरानी की व्यवस्था की गयी है। शहर के हर चौराहे पर सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं।
संविधान पीठ द्वारा किसी भी दिन फैसला सुनाये जाने की संभावना को देखते हुये केन्द्र ने देश भर में सुरक्षा बंदोबस्त कड़े कर दिये थे। अयोध्या में भी सुरक्षा बंदोबस्त चाक चौबंद किये गये हैं ताकि किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हो सके।
अयोध्या के राम जन्मभूमि -बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट शनिवार को अपना फैसला सुनाएगा। राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर फैसले से पहले पूरे देश में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं।
बता दें कि 17 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं। लिहाजा उम्मीद है कि अगले हफ्ते तक इस विवाद पर फैसला आ सकता है।
देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा ए हिन्द ने बुधवार को कहा कि राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर उच्चतम न्यायालय का फैसला उसे स्वीकार्य होगा।
अयोध्या फैसले से पहले मुस्लिम समुदाय तक पहुंच बनाने के लिए आरएसएस और भाजपा के प्रयासों के तहत मुस्लिम समुदाय के मौलवियों, शिक्षाविदों और प्रमुख हस्तियों के साथ यहां मंगलवार को एक बैठक आयोजित की गई।
बैठक के बाद नावेद हामिद ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, बैठक में कुछ बिंदुओं पर खासतौर पर जोर दिया गया। मसलन, न्यायालय का जो भी फैसला आए, वो सबको स्वीकार करना चाहिए। दूसरा, देश में यह सबकी जिम्मेदारी है कि शांति बरकरार रखी जाए।
ईमाम अरशद ने नमाजियों से कहा कि कई साल पुराने अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मसले पर अब फैसला आने मे कुछ ही वक्त बचा है लेकिन मुसलमान भाई किसी भी बहकावे मे न आये।
ईमाम खालिद रशीद ने जुम्मे की नमाज के दौरान मुस्लिम समुदाय से किसी भी तरह के फैसले पर अमन बनाए रखने की अपील की।
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का मतलब है कि अगर मालिकाना हक किसी एक या दो पक्ष को मिल जाए तो बचे हुए पक्ष को क्या वैकल्पिक राहत मिल सकती है। मुस्लिम पक्षकारों ने दस्तावेजों को संयुक्त रूप से सीलबंद लिफाफे में पेश किया है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़कर बाकी मुस्लिम पार्टियों की तरफ एक प्रेस रिलीज़ जारी की गई है, जिसमें उन्होंने मध्यस्थता की पेशकश को ठुकरा दिया है।
मध्यप्रदेश और राजस्थान के उच्च न्यायालयों के पूर्व न्यायाधीश ने कहा, "हम उच्चतम न्यायालय से यह अपेक्षा भी करते हैं कि वह मुकदमे में एकदम स्पष्ट फैसला सुनायेगा।"
संपादक की पसंद
लेटेस्ट न्यूज़