राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता मंगलवार को 'बहुत खराब' श्रेणी में दर्ज की गई। दिल्ली की वायु गुणवत्ता 31 अक्टूबर तक 'बहुत खराब' श्रेणी में रहने का अनुमान है।
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार जल्द ही एक नया कानून लाएगी। पर्यावरण मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी।
राष्ट्रीय राजधानी में जहरीले धुंध की परत छाने के बीच वायु की गुणवत्ता लगातार चौथे दिन सोमवार को 'बहुत खराब' श्रेणी में दर्ज की गई। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता निगरानी संस्था ‘सफर’ ने कहा कि वायु की गुणवत्ता 31 अक्टूबर तक बहुत खराब श्रेणी में बनी रहने की आशंका है।
दिल्ली सरकार ने दिल्ली में वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से 'रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ' अभियान सोमवार को सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में शुरू किया।
दिल्ली समेत उत्तर भारत के अधिकतर हिस्सों में धुंध छाने और हवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आने के बीच वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि वायु प्रदूषण और कोविड-19 के मामलों के बीच कोई संबंध पूरी तरह भले ही साबित नहीं हो पाया है लेकिन लंबे समय तक प्रदूषण से फेफड़े के संक्रमण का खतरा बना रहेगा।
3 साल के मुकाबले सबसे ज्यादा पराली इस साल जलाई गई। जिसके कारण एयर क्वालिटी इंडेक्ड 300 से अधिक है। दुनियाभर में करीब 70 लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान गवां देते है।
स्वामी रामदेव के अनुसार वायु प्रदूषण से बचने के लिए फेफड़ों का मजबूत और हेल्दी होना बहुत ही जरूरी है। जानिए कौन से प्राणायाम कारगर साबित हो सकते है।
स्वामी रामदेव के अनुसार वायु प्रदूषण केवल अस्थमा के मरीजों के लिए ही खतरनाक नहीं है बल्कि कैंसर के मरीजों के लिए भी जानलेवा साबित हो सकता है। इसलिए रोजाना आयुर्वेदिक चीजों का सेवन करे।
स्वामी रामदेव के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा, जुकाम, सांस लेने में समस्या, साइनस, सिरदर्द जैसी समस्याएं बढ़ सकती है। ऐसे में ये योगासन फायदेमंद साबित होंगे।
पराली जलाने से तेजी से वायु प्रदूषण बढ़ता है। जिसके कारण अस्थमा के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में जरूरी है कि आप अपने फेफड़ों को हेल्दी और मजबूत बनाए। इसके लिए आप योग और कुछ आयुर्वेदिक उपायों की मदद ले सकते हैं।
उन्होंने बताया कि प्रदूषण विभाग नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों के खिलाफ लगातार जुर्माना लगा रहा है। उल्लेखनीय है कि 0 और 50 के बीच एक्यूआई को 'अच्छा', 51 और 100 के बीच 'संतोषजनक', 101 और 200 के बीच 'मध्यम', 201 और 300 के बीच 'खराब', 301 और 400 के बीच 'बेहद खराब' और 401 और 500 'गंभीर' माना जाता है।
इस बात के भी सबूत हैं कि वायु प्रदूषण भी कोविड-19 के प्रसार में काफी हद तक मदद करेगा। वहीं एक और ऐसी वजह है जिसने भारत में साल 2019 में 1 लाख 16 हजार नवजात बच्चों की जान ले चुका है। ये बात हालिया शोध में सामने आई है।
देश में ऐक्टिव केसों में तेजी से कम होने के बीच एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने चेताया है कि यह राहत ज्यादा दिन नहीं टिकने वाली। उन्होंने कहा कि स्वाइन फ्लू सर्दियों में तेजी से फैलता है। इसी तरह कोविड भी फैलेगा।
दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) गुरुवार की सुबह प्रदूषण स्तर 'खराब' श्रेणी में रहा। दिल्ली में वायु प्रदूषण पर राजनीति एक बार फिर से गर्म हो गई है।
हरियाणा में फरीदाबाद के कुछ स्थानों पर सोमवार को वायु गुणवत्ता “बहुत खराब“ श्रेणी में रही जबकि उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर व गाजियाबाद तथा हरियाणा के गुड़गांव में हवा की गुणवत्ता “खराब“ श्रेणी में दर्ज की गई।
राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता सोमवार सुबह ‘खराब’ श्रेणी में दर्ज की गई, वहीं सरकारी एजेंसियों ने कहा कि अगले कुछ दिन में हवा की दिशा में बदलाव और गति में कमी की वजह से इसमें और गिरावट से वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आ सकता है।
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए जनरेटरों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। दिल्ली समेत नोएडा, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम में जरूरी व आपात सेवाओं को छोड़कर डीजल जनरेटरों के इस्तेमाल पर पूर्ण पाबंदी रहेगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण से कोरोना वायरस के फैलने का खतरा बढ़ सकता है जिससे लोग इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं और कोविड-19 की स्थिति गंभीर हो सकती है।
मेडिकल एक्सपर्ट्स ने एक चिंताजनकर खबर दी है। पर्यावरण एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो लगातार बढ़ते प्रदूषण के बीच लोगों को ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है क्योंकि वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से कोरोना संक्रमण और ज्यादा गंभीर हो सकता है और डेथ रेट बढ़ सकता है।
राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता बृहस्पतिवार को आठ महीनों में सबसे निचले स्तर पर रही। शहर के पीएम 2.5 स्तर में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी केवल छह प्रतिशत रही।
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