अब हेमंत सोरेन सहयोगी दलों को इस बात के लिए तैयार कर रहे हैं कि अगर उनको गिरफ्तार किया जाता है, तो उनकी पत्नी को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करें। लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा क्योंकि इस मामले में गठबंधन तो दूर की बात, परिवार में भी एक राय नहीं हैं।
हेमंत सोरेन की पार्टी के लोग कहेंगे कि ये सब चुनाव को देखते हुए हो रहा है। उन्हें परेशान करने की कोशिश की जा रही है लेकिन ये सब कहने से काम नहीं चलेगा, जवाब देना पड़ेगा, हेमंत सोरेन को इस मामले में लालू यादव से सीखना चाहिए। लालू को ED ने बुलाया और लालू पहुंच गए।
चूंकि नीतीश ये जानते हैं कि इस वक्त बीजेपी और लालू दोनों को उनकी जरूरत है, वो जिसके साथ जाएंगे उसे फायदा होगा, इसीलिए नीतीश चाहेंगे कि बीजेपी ठोस वादा करे। उसके बाद बात आगे बढ़े। बीजेपी नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए रखेगी इसमें फिलहाल कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन सवाल ये है कि फिर रुकावट कहां है?
भगवंत मान ने कहा कि बंगाल में हो सकता है ममता बनर्जी तो शायद मान भी जाएं लेकिन पंजाब में ये तय है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं होगा।
अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान शुरू हो चुका है। एक तरफ पूरा देश राममय नजर आ रहा तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने इस वृहद आयोजन से दूरी बना रखी है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने देश के मूड की उपेक्षा की है।
मुझे लगता है कांग्रेस और दूसरे मोदी विरोधी दलों ने रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न जाने का फैसला करके गलती की है। खासतौर पर 52 सीटों वाली कांग्रेस ने एक बड़ा अवसर अपने हाथ से गंवा दिया है। कांग्रेस को तो ये समझना चाहिए था कि देश के जो करोड़ों लोग हैं, वो रामलला का मंदिर बनने से उत्साहित हैं।
असल में शुरुआत उद्धव ठाकरे ने की थी ,पहली गलती उद्धव की थी, उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, 56 सीटें जीतीं और इतनी सीटों के दम पर ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग पर अड़ गये, ये धोखा था। यहीं से ये सारा किस्सा शुरू हुआ।
अगर नरेंद्र मोदी राम मंदिर के निर्माण में इतनी तत्परता नहीं दिखाते, इस काम की लगातार निगरानी न करते, तो राम मंदिर इतनी जल्दी और इतना शानदार न बन पाता। रामलला को उनका घर दिलाने के अवसर को, प्राण प्रतिष्ठा को भी नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रुचि लेकर, भव्य और दिव्य बनाने के लिए पूरी ताकत लगा दी है ।
राहुल गांधी ने अडानी के नाम को मोदी पर हमले का हथियार बना लिया लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने अडानी को क्लीन चिट दे दी, तो राहुल कहीं दिखाई नहीं दिए। उन्होंने कोई ट्वीट नहीं किया।
2014 में लोकसभा चुनाव से पहले जब मोदी ‘आप की अदालत’ में आए थे, तो उन्होंने कहा था कि वो चाहते हैं मुस्लिम नौजवानों के एक हाथ में कुरान हो और दूसरे हाथ में कंप्यूटर हो। अगर वो प्रधानमंत्री बने तो 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे पर काम करेंगे। मोदी ने दस साल तक इसी थीम पर काम किया।
नीतीश कुमार जानते हैं कि अब बिहार में उनकी पारी खत्म हो चुकी है, वो किसी तरह समय काट रहे हैं। उन्होंने बड़े जोश से मोदी-विरोधी पार्टियों को इकट्ठा किया था।वो इस गठबंधन के नेता बनना चाहते थे लेकिन पहले कांग्रेस ने राहुल गांधी के लिए उनको आउट कर दिया, फिर ममता ने खरगे का नाम चलाकर रही सही कसर भी पूरी कर दी।
ये संयोग है या प्रयोग? इसका जवाब मिलता पाता उससे पहले ही पार्लियामेंट का कामकाज पूरी तरह ठप हो गया, न बहस का मौका मिला, ना बात करने का ।
महुआ के खिलाफ एक्शन का सियासी असर ये हुआ कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान जो विपक्ष बिखरा हुआ दिख रहा था, विरोधी दलों के जिस गठबंधन में दरारें दिख रही थीं, महुआ की सजा ने उस मोर्चे के सभी नेताओं को फिर एक साथ खड़ा कर दिया।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित जीत मिली है और कांग्रेस बुरी तरह से हार गई है। इस जीत का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी ने जनता-जनार्दन को दिया है। तो वहीं, इस नतीजे ने कांग्रेस की 2024 की योजना को ध्वस्त कर दिया है।
मुझे लगता है कि तीन दिसंबर को पांच राज्यों में जनता का जो भी फैसला आए, उसका असर लोकसभा चुनाव पर होगा, ये कहना मुश्किल है। हालांकि एक्जिट पोल्स नतीजे नहीं होते, ये अनुमान ही हैं। एक्जैक्ट नतीजे तो तीन दिसंबर को ही आएंगे। तब तक इंतजार करना चाहिए।
पिछले कुछ दिनों से हलाल सर्टिफिकेट को लेकर बवाल मचा है और इसे लेकर अब सियासत भी खूब हो रही है। उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में भी इसके सुर तेज होने लगे हैं और राज्य में हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स की बिक्री पर बैन लगाने की मांग हो रही है।
कई ऐलोपैथिक डॉक्टर भी इस बात को मानते हैं कि योग और आयुर्वेद से लाइलाज बीमारियों का इलाज हो सकता है। मैं भी मानता हूं कि ऐलोपैथी ने पूरी दुनिया में लोगों की जान बचाने के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया है। इसीलिए आयुर्वेद और एलोपैथी में टकराव नहीं होना चाहिए, ये एक दूसरे के पूरक हैं।
राजस्थान में अब तक कांग्रेस का कैंपेन अच्छा भला चल रहा था। अशोक गहलोत खुद कमान संभाल हुए थे। प्रियंका गांधी की रैलियां हो रही थी। कहीं कोई गड़बड़ नहीं हुई लेकिन राहुल गांधी पहुंचे, सारा गुड़गोबर कर दिया।
मुझे लगता है कि आज के ज़माने में इस तरह के अंधविश्वास की बातें करना, किसी को पनौती कहना, खेल के मैदान में हार जीत को किसी के नाम से जोड़ना बहुत ही घटिया स्तर की राजनीति की मिसाल है।
किसी वीडियो पर नकली आवाज़ लगाना, लिप सिंक मैच करना तो और भी आसान हो गया है। नकली वीडियो से रातों रात किसी की बदनामी हो सकती है, लोगों की भावनाएं भड़काई जा सकती हैं, इसलिए ये समाज के लिए बड़ा खतरा है।
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