Friday, November 22, 2024
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विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने में देरी न करें विधानसभा अध्यक्ष, तेलंगाना हाई कोर्ट की टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति जे श्रीनिवास राव की पीठ ने उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के इस पिछले आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विधानसभा सचिव को बीआरएस विधायकों -दानम नागेंद्र, तेल्लम वेंकट राव और कादियाम श्रीहरि की अयोग्यता याचिकाओं को अध्यक्ष के सामने रखना चाहिए।

Edited By: Shakti Singh
Published on: November 22, 2024 21:46 IST
Telangana high court- India TV Hindi
Image Source : TSHC तेलंगाना हाई कोर्ट

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि राज्य विधानसभा अध्यक्ष को सत्तारूढ़ कांग्रेस में शामिल हुए भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर ‘उचित समय’ के भीतर निर्णय लेना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति जे श्रीनिवास राव की पीठ ने उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के इस पिछले आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विधानसभा सचिव को बीआरएस विधायकों -दानम नागेंद्र, तेल्लम वेंकट राव और कादियाम श्रीहरि की अयोग्यता याचिकाओं को अध्यक्ष के सामने रखना चाहिए। 

पीठ ने कहा, ‘‘तेलंगाना विधानसभा के अध्यक्ष को रिट याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गयी अयोग्यता याचिकाओं पर उचित समय के भीतर निर्णय लेना चाहिए।’’ उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अयोग्यता याचिकाओं पर विचार करते समय अध्यक्ष को अयोग्यता याचिकाओं के लंबित रहने की अवधि और विधानसभा के कार्यकाल का खयाल रखते हुए उचित समय की अवधारणा को ध्यान में रखना चाहिए। 

बीआरएस ने दायर की थी याचिका

याचिकाकर्ताओं - बीआरएस विधायक के पी विवेकानंद और पी कौशिक रेड्डी तथा विधानसभा में भाजपा के नेता अलेट्टी महेश्वर रेड्डी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर मांग की थी कि अध्यक्ष को तीन बीआरएस विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए, जो पहले अध्यक्ष के समक्ष दायर की गई थीं। उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने नौ सितंबर को तेलंगाना विधानसभा के सचिव को निर्देश दिया था कि वह चार सप्ताह के भीतर सुनवाई का कार्यक्रम तय करने के लिए अयोग्यता याचिका को तत्काल विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष रखें। 

विधानसभा सचिव ने एकल न्यायाधीश के आदेश को दी थी चुनौती 

उच्च न्यायालय ने सचिव को न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को तय कार्यक्रम से अवगत कराने का निर्देश दिया था। यह भी निर्देश दिया गया था कि यदि सचिव से कोई सूचना नहीं मिलती है, तो मामले को 'स्वतः संज्ञान' के तौर पर पुनः खोला जाएगा और उचित आदेश पारित किए जाएंगे। इसके बाद, विधानसभा सचिव ने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी थी। (इनपुट- पीटीआई भाषा)

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