Highlights
- दिल्ली हाई कोर्ट ने व्हाट्सऐप पर की बेहद तल्ख टिप्पणी
- व्हाट्सऐप की प्राइवेसी पॉलिसी यूजर्स को करती है मजबूर
- यूजर्स का डेटा अपनी मूल कंपनी फेसबुक के साथ साझा करती है
WhatsApp Policy: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि व्हाट्सऐप की 2021 की प्राइवेसी पॉलिसी इसके यूजर्स को ‘‘अपनाओ या छोड़ दो’’ की स्थिति में डाल देती है और विकल्पों का भ्रम पैदा करके समझौता करने के लिए उन्हें असल में मजबूर करती है और उसके बाद उनका डेटा अपनी मूल कंपनी फेसबुक के साथ साझा करती है। उच्च न्यायालय ने उस आदेश के खिलाफ व्हाट्सऐप और फेसबुक की अपीलें गुरुवार को निरस्त कर दी, जिसमें व्हाट्सऐप की 2021 की नयी प्राइवेसी पॉलिसी की जांच से संबंधित भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) के आदेश को चुनौती देने वाली अर्जी खारिज कर दी गई थी।
पिछले साल ही व्हाट्सऐप और फेसबुक की याचिका की थी खारिज
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि 22 अप्रैल, 2021 को सुनाया गया एकल पीठ का फैसला उचित था और इन अपीलों में कोई दम नहीं है। खंडपीठ ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया, लेकिन इसे अदालत की वेबसाइट पर शुक्रवार को अपलोड किया गया। उच्च न्यायालय ने कहा कि भारत में ओटीटी (ओवर-द-टॉप) मैसेजिंग ऐप के बाजार में स्मार्टफोन के जरिये व्हाट्सऐप की प्रबल हिस्सेदारी है। अदालत की एकल पीठ ने सीसीआई द्वारा निर्देशित जांच रोकने से पिछले साल अप्रैल में इनकार कर दिया था और ‘व्हाट्सऐप एलएलसी’ और ‘फेसबुक इंक’ (अब ‘मेटा’) की याचिका खारिज कर दी थी। सीसीआई ने ‘इंस्टेंट मैसेजिंग’ प्लेटफॉर्म की अपडेटिड प्राइवेसी पॉलिसी 2021 संबंधी खबरों के आधार पर पिछले साल जनवरी में इसकी जांच करने का स्वयं फैसला किया था।
फेसबुक और व्हाट्सऐप पर तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप से मानवाधिकारों को खतरा
पिछले महीने ही एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे मंचो पर तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के कारण अभिव्यक्ति और सूचना की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और अघृणा फैलाने जैसे कृत्यों की वजह से मानवाधिकारों को खतरा है। सोशल मीडिया कंपनी मेटा ने मानवाधिकारों से संबंधित अपनी पहली रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। यह रिपोर्ट भारत और अन्य देशों में फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे मंचो से संबंधित संभावित मानवाधिकार जोखिमों पर मेटा द्वारा 2019 में शुरू किए गए एक स्वतंत्र मानवाधिकार प्रभाव मूल्यांकन (एचआरआईए) पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक एचआरआईए ने मेटा के फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे मंच पर तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के कारण पैदा होने वाले मानवाधिकार जोखिमों का अध्ययन किया है।