भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले जा रहे बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी (BGT) 2024 के पहले टेस्ट मैच के पहले दिन भारतीय बल्लेबाज केएल राहुल के विकेट ने एक बार फिर से DRS यानी डिसीजन रिव्यू सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल ही में भारत और न्यूजीलैंड के बीच खेले गए टेस्ट मैच में ऋषभ पंत के विकेट में भी DRS की टेक्नोलॉजी पर सवाल उठे थे। कई दिग्गज क्रिकेटर्स का कहना था कि इतनी एडवांस टेक्नोलॉजी होने के बावजूद कभी-कभी सही निर्णय लेने में अंपायर को दिक्कत होती है। आइए, जानते हैं DRS में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी के बारे में...
DRS (Decision Review System)
DRS का इस्तेमाल सबसे पहले 2008 में टेस्ट मैच के लिए, 2011 में ODI के लिए और 2017 में T20I के लिए किया गया। इस सिस्टम का इस्तेमाल कोई भी टीम ऑन-फील्ड अंपायर द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती देने के लिए करते हैं। अंपायर द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती दिए जाने पर थर्ड अंपायर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए यह चेक करते हैं कि दिए गए फैसले को कायम रखा जाए या फिर बदल दिया जाए।
DRS की टेक्नोलॉजी
DRS में टीवी अंपायर मुख्य तौर पर तीन तरह की टेक्नोलॉजी- Hawk Eye, Real Time Snicko और Hot Spot का इस्तेमाल करते हैं।
Hawk Eye - इसे टीवी अंपायर का Virtual Eye भी कहा जाता है। इसमें बॉल ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए गेंदबाज द्वारा बॉल फेंकने के बाद ट्रेजेक्ट्री के जरिए यह देखा जाता है कि कहीं बैटर ने विकेट की लाइन में तो गेंद को नहीं रोका है। इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल LBW के डिसीजन के लिए किया जाता है।
Real Time Snicko - इसे अल्ट्राएज भी कहा जाता है। इसमें माइक्रोफोन का इस्तेमाल करते हुए यह पता लगाया जाता है कि गेंद ने पैड या फिर बल्ले में से किसे पहले टच किया है। यह रीयल टाइम में आवाज के जरिए ऑडियो स्पाइक बनाता है, जो अंपायर को सही फैसला लेने में मदद करता है।
Hot Spot - इसमें इंफ्रारेड इमेजिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है, जो यह बताता है कि गेंद ने बल्ले या पैड पर कहां संपर्क किया है। इंफ्रारेड इमेजिंग के लिए एडवांस कैमरा सिस्टम लगाया जाता है।
DRS में टेलीविजन रिप्ले के जरिए देखा जाता है कि गेंद बल्ले से लगी है या नहीं या फिर गेंद कहां पिच हुई है और विकेट से लग रही है या नहीं। इसमें अलग-अलग एंगल से हाई डिफीनिशन कैमरे से लिए गए वीडियो को एनालाइज किया जाता है। इसके अलावा बॉल की दिशा के बारे में जानने के लिए बॉल ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं, टीवी अंपायर स्टंप्स पर लगे माइक्रोफोन की आवाज के जरिए यह चेक करते हैं कि गेंद ने बल्ले का किनारा तो नहीं टच किया है। साथ ही, इंफ्रारेट इमेजिंग के जरिए गेंद और बल्ले के बीच हुए संपर्क के निशान को चेक किया जाता है।
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