नई दिल्ली: गूगल ने डूडल के जरिए सोमवार को प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ गोविंदप्पा वेंकटस्वामी की 100 जयंती पर उन्हें याद किया। लाखों लोगों की जिंदगियों को रोशन करने वाले गोविंदप्पा को 'डॉ वी' के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने मदुरै में 'अरविंद आई अस्पताल' की स्थापना की थी, जहां बड़ी संख्या में लोग उनसे इलाज कराने के लिए उमड़ते थे। तमिलनाडु के वडामलप्पुरम में एक अक्टूबर 1918 को जन्मे वेंकटस्वामी रूमटॉइड गठिया द्वारा स्थाई रूप से अपंग हो गए थे, लेकिन यह स्वास्थ्य संबंधी समस्या भी उन्हें उनके लक्ष्य को हासिल करने से नहीं रोक सकी।
उन्होंने अपने गांव के उस स्कूल से पढ़ाई की, जहां छात्रों को नदी के किनारे एकत्रित रेत पर लिखना पड़ता था क्योंकि वहां कोई पेंसिल और पेपर नहीं था। वह रोजाना 2 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाया करते थे। उनके गांव में कोई डॉक्टर नहीं था। अपने कुछ परिजनों की असमय मौत से उन्होंने एक डॉक्टर बनने का फैसला किया। बाद में वह मदुरै में अमेरिकन कॉलेज में रसायन विज्ञान का अध्ययन करने के लिए गए और 1944 में मद्रास में स्टेनली मेडिकल कॉलेज से एम.डी. की डिग्री हासिल की। अपने मेडिकल स्कूल को पूरा करने के ठीक बाद वेंकटस्वामी भारतीय सेना मेडिकल कोर में शामिल हो गए। हालांकि, रूमटॉइड गठिया के गंभीर मामले ने उन्हें लगभग अपंग कर दिया और उनके करियर को झटका लगा।
वह एक साल तक बिस्तर पर पड़े रहे। जब वह अध्ययन में लौटे तो उन्होंने 1951 में नेत्र विज्ञान में डिग्री की पढ़ाई की। अरविंद आई अस्पताल जो अब मोतियाबिंद से संबंधित अंधेपन को खत्म करने वाली एक प्रमुख चेन में परिवर्तित हो गया है, इसे 1976 में वेंकटस्वामी के की निगरानी में 11 बिस्तर वाले अस्पताल के रूप में शुरू किया गया था। अपनी शारीरिक बाधाओं के बावजूद, 'डॉ वी' ने मोतियाबिंद के इलाज के लिए सर्जरी करना सीखा। उनमें एक दिन में 100 सर्जरी करने की क्षमता थी।
गूगल ने अपने ब्लॉगपोस्ट में कहा, ‘वह ग्रामीण समुदायों में नेत्र शिविर आयोजित करते थे जो आंध्र के लिए एक पुनर्वास केंद्र और नेत्रहीन सहायकों के लिए एक प्रशिक्षण सत्र के रूप में कार्य करता था, इस अवधि के दौरान उन्होंने 1,00,000 से अधिक सफल नेत्र सर्जरी की।’ साल 1973 में वेंकटस्वामी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।