नई दिल्ली: इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या के मामले में दुनिया भर में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है लेकिन डेटा सुरक्षा और निजता सुनिश्चित करने के लिए कानूनी ढांचे की कमी है। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ते इस क्षेत्र में उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये मौजूदा कानून अपर्याप्त हैं। कैंब्रिज एनालिटिका मामले में खुलासे के बाद दुनिया भर में इस बात पर बहस तेज हो गई है कि इंटरनेट पर मौजूद लोगों का डेटा कितना सुरक्षित है?
ब्रिटेन की कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका पर आरोप है कि उसने 5 करोड़ फेसबुक उपयोगकर्ताओं का निजी डेटा बिना उनकी अनुमति के इस्तेमाल किया और इसका प्रयोग अमेरिकी के राष्ट्रपति चुनाव में किया गया। कंपनी के पूर्व कर्मचारी क्रिस्टोफर वाइल के दावे के बाद भारत में इसे लेकर सत्ताधारी दल बीजेपी और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा है। क्रिस्टोफर ने दावा किया है कि कंपनी भारत में काम कर रही है और कांग्रेस एवं जनता दल (यूनाइटेड) सहित कुछ अन्य राजनीतिक दलों ने उसकी सेवाएं ली थी।
अंर्स्ट एंड यंग, साइबर सिक्योरिटी, के पार्टनर जसप्रीत सिंह ने कहा, ‘इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिहाज से भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। हालांकि, भारत का सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 और उसके बाद इसमें 2008 और2011 में किए गए संशोधन सोशल मीडिया और इंटरनेट से जुड़े साइबर अपराधों से मुकाबला करने के लिए काफी नहीं हैं।’ उन्होंने कहा कि भारत में डेटा सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर कोई समर्पित कानून नहीं है।
वहीं, शीर्ष न्यायालय के अधिवक्ता पवन दुग्गल ने कहा कि साइबर सुरक्षा के लिए आईटी अधिनियम को संपूर्ण और एकमात्र कानूनी ढांचा समझना भूल होगी क्योंकि यह 10 साल पहले लागू हुआ था। उन्होंने कहा, ‘साइबर सुरक्षा और साइबर सुरक्षा उल्लंघन के मामलों नाटकीय बदलाव देखने को मिला हैं लेकिन कानून इतिहास में एक समय के हिसाब से तैयार किया गया और वह उस समय के अनुरूप स्थिर है।’