साल 2021 में भी कोरोना महामारी का प्रकोप जारी रहा लेकिन भारतीय खेल प्रेमियों को खुशियां मनाने से नहीं रोक सका। साल 2021 का जब आगाज हुआ था तब शायद ही किसी ने उम्मीद जताई होगी कि कोरोना महामारी के बीच टोक्यो ओलंपिक्स 2020 का आयोजन हो पाएगा। लेकिन जापान ने न केवल निर्धारित समय में टोक्यो ओलंपिक्स का सफल आयोजन कर पूरी दुनिया में अपना डंका बजाया बल्कि पूरी दुनिया के खेल प्रेमियों में आशा की किरण भी जगाई। यही वजह रही कि भारत टोक्यो ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 7 मेडल जीतने में सफल रहा। आइए जानते हैं इस साल टोक्यो ओलंपिक में भारत के खाते में आए 10 सबसे बड़े लम्हों के बारे में.....
मीराबाई चानू ने दिखाई अपनी बाजुओं की ताकत
टोक्यो ओलंपिक में भारत के मेडल का खाता उस वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने खोला जिसे रियो ओलंपिक में खाली हाथ और नम आखों के साथ लौटना पड़ा था।मीराबाई चानू ने टोक्यो ओंलपिक में 49 किलोवर्ग में 202 किलो वजन उठाते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया और वेटलिफ्टिंग में भारत को कर्णम मल्लेश्वरी के बाद दूसरा ओलंपिक मेडल दिलाने में सफल रही। टोक्यो ओलंपिक के पहले ही दिन चानू के मेडल से भारत का खाता खुला और सारे देश में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। चानू का ये मेडल हार नहीं मानने के जज्बे का सबसे बेहतरीन उदाहरण रहा।
महानतम खिलाड़ियों में शुमार हुई पीवी सिंधु
भारत की बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधू ने इस साल ओलंपिक में एक बार फिर साबित किया कि क्यों उनकी गिनती दुनिया की टॉप शटलरों में होती है। रियो ओलंपिक की सिल्वर मेडलिस्ट सिंधू टोक्यो में गोल्ड तो नहीं जीत सकी लेकिन लगातार दो ओलंपिक में मेडल जीतकर भारत के महानतम खिलाड़ियों में शुमार हो गई। कोरोना महामारी से प्रभावित रहे टोक्यो ओलंपिक और साल 2021 सिंधु के लिए कड़ी चुनौती की तरह रहा जिसका उन्होंने एक चैंपियन की तरह सामना किया और भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया।
लवलीना के पंच की पूरी दुनिया में गूंज
टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए तीसरा अनमोल पल उस समय आया जब महज 24 साल की महिला बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन 69 किग्रा कैटेगिरी में कांस्य पदक अपने नाम करने में कामयाब रही और ओलंपिक में बॉक्सिंग मेडल के 9 साल लंबे इंतजार को समाप्त किया। इस मेडल के साथ ही लवलीना ओलंपिक में मेडल जीतने वाली भारत की केवल तीसरी बॉक्सर बन गई। इससे पहले विजेंदर सिंह (2008) और मैरीकॉम (2012) ने ये कारनामा किया था।
भारतीय हॉकी के स्वर्णिम काल की यादें हुई ताजा
साल 2021 के सुनहरें पलों में आँखों को सबसे ज्यादा सुकून देने वाला पल रहा ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का पॉडियम पर खड़े होना। टोक्यो ओलंपिक में जब 5 अगस्त को सूरज उदय हुआ तो भारतीय हॉकी टीम एक नई इबारत लिखने से कुछ कदम ही दूर खड़ी थी। फाइनल में पहुंचने के मौके से चूकने के बाद भारतीय हॉकी टीम के पास ब्रॉन्ज मेडल जीतने का सुनहरा मौका था और सामने थी 4 बार की ओलंपिक और 8 बार की यूरोपियन चैंपियन टीम जर्मनी।
इस ऐतिहासिक मुकाबले का आगाज होने के पहले मिनट के साथ ही ही हॉकी फैंस की निगाहें भारतीय खिलाड़ियों पर टिक गई। पहले हॉफ तक दोनों टीमें 3-3 के स्कोर से बराबर चल रही थी और फैंस की सांसे अटकी हुई थी। इसके बाद फिर तीसरे क्वॉर्टर में 4 मिनट के भीतर 2 गोल करने के साथ ही भारत ने मैच में पकड़ बना ली। भारत अब 5-3 से आगे था लेकिन जर्मनी की टीम लगातार बराबरी हासिल करने के लिए भारतीय गोल पर अटैक कर रही थी। भारतीय गोलकीपर पीआर श्रीजेश इस मुकाबले में अंत तक टीम इंडिया की दीवार बने रहे और अनगिनत शॉट को अपनी छाती से रोकते रहे।
आखिरी पलों में जब जर्मनी को पेनल्टी कॉर्नर के जरिए गोल करने का मौका मिला तो एक बार को लगा कि भारत का ओलंपित में मेडल जीतने का सपना फिर से चकनाचूर हो जाएगा लेकिन पीआर श्रीजेश की दीवार ने इस गोल को न केवल रोका बल्कि हम सभी को भारतीय हॉकी के उस स्वर्णिम काल में पहुंचा दिया जिसकी कहानियां सुनते हुए हम अभी तक आए थे। भारतीय हॉकी टीम ने इस मेडल के साथ ही ओलंपिक में 41 साल के लंबे इंतजार को समाप्त कर दिया।
रवि दहिया को मिला कड़ी मेहनत का फल
टोक्यो ओलंपिक में दुनियाभर के पहलवानों का जमघट लगा हुआ था और सभी अपने को मेडल के दावेदार के रुप में पेश कर रहे थे। इन सबके बीच रवि दहिया नाम का भारतीय पहलवान चुपचाप खुद में मगन अपने मुकाबले वाले दिन का इंतजार कर रहा था। रवि दहिया ने 57 किग्रा फ्रीस्टाइल कैटेगिरी में बेहद ही शानदार अंदाज में मैट पर आगाज किया और लगातार 3 मुकाबले जीतते हुए फाइनल में खुद को पहुंचा दिया।
इस दौरान रवि दहिया खुश होने से ज्यादा शांत नजर आ रहे थे, जो ये बताने के लिए काफी था कि कितनी कड़ी मेहनत के बाद वो यहां तक पहुंचे है। फाइनल में हालांकि रवि को उस तरह की कामयाबी नहीं मिली जिसकी उम्मीद की जा रही थी और उन्हें हार के बाद सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा। रवि दहिया ने अपने पहले ही ओलंपिक में सिल्वर जीतकर कामयाबी की नई इबारत लिख दी।
बजरंग ने जीता कांसा
टोक्यो ओलंपिक खत्म होने की कगार पर था और सभी उम्मीद लगाए बैठे थे कि भारत के नंबर एक पहलवान बजरंग पुनिया गोल्ड मेडल के साथ ही भारत लौटेंगे, लेकिन बजरंग उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सके और उन्हें ब्रॉन्ज मेडल से ही संतोष करना पड़ा। ओलंपिक से पहले बजरंग को गोल्ड मेडल का सबसे मजबूत दावेदार के रुप में देखा जा रहा था क्योंकि वर्ल्ड चैंपियनशिप 2019 में कांस्य पदक जीतने के बाद उन्हें मुश्किल ही किसी टूर्नामेंट में हार का मुंह देखना पड़ा था।
नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में रचा इतिहास
टोक्यो ओलंपिक लगभग समापन की ओर था और भारतीय फैंस अभी भी गोल्ड मेडल की आस लगाए हुए थे। फिर ओलंपिक खत्म होने से कुछ घंटे पहले नीरज चोपड़ा ने वो कर दिखाया जो ओलंपिक के इतिहास में कोई भी भारतीय एथलीट अभी तक नहीं कर सका था। नीरज ने टोक्यो की धरती पर 87.58 मीटर भाला फेंककर एथलेटिक्स में भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाया। ये पहली बार था जब ओलंपिक के इतिहास में किसी भारतीय एथलीट ने एथलेटिक्स में मेडल ही नहीं बल्कि गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इसके साथ ही नीरज ने भारतीय एथलेटिक्स में नये युग का आगाज कर दिया। नीरज की इस उपलब्धि ने खेल प्रेमियों ने ही नहीं बल्कि सभी देशवासियों को कोरोना महामारी के बीच जश्न मनाने का बेहतरीन मौका प्रदान किया।
अदिति अशोक ने गोल्फ से कराया रूबरू
टोक्यो ओलंपिक में कुछ एथलीट ऐसे भी रहे जो मेडल जीतने के बेहद करीब पहुंचे लेकिन आखिरी मौके पर चूक गए। ऐसे ही एथलीट रही गोल्फर अदिति अशोक जो एक समय सिल्वर मेडल जीतने के करीब थी लेकिन आखिरी समय में वह मेडल की रेस से बाहर हो गई। अदिति भले ही मेडल के साथ वतन वापस नहीं लौट पाई लेकिन अपने खेल से देशवासियों की चहेती खिलाड़ी बन गई।
हारकर भी महिला हॉकी टीम ने जीता दिल
पुरुष हॉकी टीम की तरह महिला हॉकी टीम भी ओलंपिक में इतिहास रचने की ओर अग्रसर थी लेकिन आखिरी समय में किस्मत साथ नहीं दे सकी और महिला टीम को कांस्य पदक मैच में ब्रिटेन के हाथों हार के बाद चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। टोक्यो में लगातार 3 हार से आगाज करने वाली भारतीय महिला टीम ने शानदार अंदाज में वापसी की और क्वार्टरफाइनल में जगह बनाई जहां उसने ओलंपिक में तीन गोल्ड जीतने वाली मजबूत ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराया। इसके बाद सेमीफाइनल में चार बार की ओलंपिक मेडलिस्ट अर्जेंटीना को कड़ी टक्कर दी और फिर कांस्य पदक मुकाबले में ब्रिटेन से भी आखिरी सेकेंड तक लड़ती रही। इस तरह महिला हॉकी टीम ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सफल रही।
जज्बे से जीता विरोधियों का भी दिल
भारत के हैवीवेट बॉक्सर सतीश कुमार ने टोक्यो ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल का तक सफर तय किया और एक समय तक मेडल के दावेदार माने जा रहे थे। सतीश को प्री-क्वार्टर मैच में चेहरे पर काफी गहरी चोटों लगी जिसकी वजह से उनकी ठुड्डी और आइब्रो में 13 टांके लगाने पड़े। इसके बावजूद भारतीय बॉक्सर ने क्वॉर्टर फाइनल में उतरने का फैसला किया। सतीश के इस जज्बे को जिसने भी देखा, वो तारीफ किए बिना नहीं रह सका।