नई दिल्ली। टोक्यो ओलंपिक पदक के बाद ‘वर्ल्ड गेम्स एथलीट आफ द ईयर’ बने भारतीय हॉकी टीम के अनुभवी गोलकीपर पी आर श्रीजेश का सपना ओलंपिक पदक का रंग बदलना और विश्व कप जीतना है और भविष्य में वह खुद को कोच की भूमिका में भी देखते हैं। महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल के बाद यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने वाले श्रीजेश दूसरे भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने भारी अंतर से अपने प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ा।
उन्होंने बेंगलुरू स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र से वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में कहा ,‘‘भारतीय हॉकी ही नहीं बल्कि विश्व हॉकी के लिये यह पुरस्कार बहुत खास है। मुझे एक खिलाड़ी के तौर पर दुनिया भर में पहचान मिली है। हम दूसरे खेलों से प्रतिस्पर्धा कर रहे थे और हॉकी को भी पहचान मिली है। एफआईएच ने एक भारतीय खिलाड़ी को नामित किया जो बहुत बड़ी बात है।’’
दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय श्रीजेश ने कहा ,‘‘भारतीय दर्शक मुझसे प्यार करते हैं और वोटिंग में कभी पीछे नहीं रहते। मेरा काम एक खिलाड़ी के तौर पर देश का नाम रोशन करना है। प्रशंसकों ने अपना प्यार मेरे और हॉकी के लिये वोट के जरिये दिखाया है। भारत से ही नहीं दुनिया भर से वोट मिले हैं।’’
भारतीय क्रिकेट की दीवार कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ अब क्रिकेट टीम के कोच हैं और क्या भारतीय हॉकी की दीवार को भविष्य में कोच की भूमिका में देखेंगे, यह पूछने पर श्रीजेश ने कहा ,‘‘यह कठिन सवाल है लेकिन मैं कोच बनना चाहता हूं। इस फैसले से पहले हालांकि मुझे अपने परिवार से बात करनी होगी। मैं लंबे समय से उनके साथ समय नहीं बिता सका हूं लेकिन आप मुझे उस जर्सी में जरूर देखेंगे।’’
2006 में भारतीय सीनियर टीम के लिये पदार्पण करने वाले श्रीजेश 2020-21 में एफआईएच के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी चुने गए जबकि पिछले साल उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार भी मिला। उन्होंने कहा,‘‘मैने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन नीली जर्सी पहनूंगा। पुरस्कार, नाम , पदक समय के साथ होता गया। मेरा फोकस प्रदर्शन और मेहनत पर रहा और मैने गोलकीपिंग का स्तर बेहतर करने का प्रयास किया।’’
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केरल के इस 33 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा ,‘‘जब मैने खेलना शुरू किया था तब मैने शंकर लक्ष्मण का बहुत नाम सुना था। वह महान गोलकीपर थे और मैं भारतीय हॉकी के इतिहास में उसी तरह से अपना नाम दर्ज कराना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि जब भी संन्यास लूं तो भारत के महानतम गोलकीपरों में मेरा नाम हो।’’
टोक्यो ओलंपिक में 41 साल का इंतजार खत्म करके भारतीय टीम के कांस्य पदक जीतने के बाद श्रीजेश साढे छह महीने बाद हॉकी के मैदान पर लौट रहे हैं। उन्होंने कहा ,‘‘मैं दक्षिण अफ्रीका में आगामी प्रो लीग खेलने को लेकर काफी उत्साहित हूं। मैं हॉकी से दूर नहीं गया था और टीम के साथ ही था लिहाजा मुझे खुद को ढालने में समय नहीं लगेगा।’’
ओलंपिक पदक और कई पुरस्कार जीतने के बाद अब क्या प्रेरणा बची है, यह पूछने पर उन्होंने कहा ,‘‘ओलंपिक पदक सपना था जो पूरा हुआ लेकिन हम इसका रंग बदल सकते हैं और यही प्रेरणा है। एशियाई खेल स्वर्ण जीतकर ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करना और भुवनेश्वर में अगले साल होने वाला विश्व कप जीतना है।"
अपने कैरियर में कई उतार चढाव देख चुके श्रीजेश का मानना है कि आलोचना का सामना करने से खिलाड़ी बेहतर हो सकते हैं। उन्होंने कहा,‘‘ अच्छा खिलाड़ी और इंसान बनने के लिये आलोचना का सामना करना सीखना जरूरी है। 2018 विश्व कप में भी मेरी आलोचना हुई और उससे उबरना काफी कठिन था। एक बार आलोचना को स्वीकार करना सीख जायें तो प्रदर्शन बेहतर होता है। मैने वही किया। मैं हमेशा मुस्कुराकर आलोचना का सामना करता हूं।’’
श्रीजेश के साथी बीरेंद्र लाकड़ा या वी आर रघुनाथ जैसे अधिकांश खिलाड़ी खेल को अलविदा कह चुके हैं और ऐसे में युवा खिलाड़ियों के साथ खेलना कितना चुनौतीपूर्ण है, यह पूछने पर उन्होंने कहा कि यह कतई आसान नहीं है।
उन्होंने कहा ,‘‘युवा खिलाड़ियों के साथ खेलना आसान नहीं है क्योंकि उनके लिये आप सुपरस्टार या सुपर सीनियर हो। बीरेंद्र लाकड़ा या वी आर रघुनाथ के साथ मैने शुरूआत की थी तो उनके साथ कुछ भी बात कर सकता था लेकिन युवाओं के साथ बहुत सोच समझकर बात करता हूं क्योंकि वे मुझे रोल मॉडल के रूप में देखते हैं।’’
भारत के युवा गोलकीपरों के बारे में उन्होंने कहा ,‘‘कृशन पाठक और सूरज करकेरा काफी समय से खेल रहे हैं। दोनों ने अच्छा प्रदर्शन किया है और सीख रहे हैं। जूनियर विश्व कप में भी युवा गोलकीपरों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। मेरा काम उनका मार्गदर्शन करना है ताकि भविष्य में भी भारत के पास अच्छा गोलकीपर रहे।’’
इस साल भारतीय टीम को कई टूर्नामेंट खेलने हैं जिनमें राष्ट्रमंडल खेल और एशियाई खेल शामिल हैं। श्रीजेश ने कहा कि कोरोना काल के बीच शारीरिक और मानसिक तौर पर सकारात्मक बने रहना काफी जरूरी है।
उन्होंने कहा ,‘‘हमें काफी यात्रायें करनी है , पैकिंग अनपैंकिंग , टूर्नामेंट का दबाव, स्वास्थ्य संबंधी मसले। कई बार आप परेशान हो जाते हैं। मानसिक और शारीरिक रूप से तरोताजा रहना और सकारात्मक रहना बहुत जरूरी है। कुछ खिलाड़ी आनलाइन गेम या खेल डाक्यूमेंटरी देखकर अपना ध्यान कठिन समय से हटाते हैं। मैं किताबें पढता हूं।’’