कुछ खिलाड़ी अपने खेल के दम पर अपना कद ऐसा बना लेते हैं कि फिर वह सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं बल्कि, पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन जाते हैं, एक भावना बन जाते हैं। ऐसा ही कुछ कद था पेले का। पेले ने 82 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहे दिया, लेकिन इस दुनिया में वह अपनी वो यादें छोड़ गए हैं जो उनके ना रहने पर भी हमेशा जिंदा रहेंगी। पेले की पॉपुलरिटी आज के समय में तो आप देख ही रहे हैं लेकिन अगर बात करें 70 के दशक की उस वक्त भी लोग उनको देखने मात्र के लिए पागल हो जाते थे। ऐसा ही एक वाकिया भारत का है जब वह कोलकाता में खेलने पहुंचे थे।
आधी रात कोलकाता एयरपोर्ट पर जुटे हजारों लोग
जानकारी के मुताबिक एक ऐसा समय था जब कलकत्ता (कोलकाता) में करीब 30-40 हजार फैंस पेले को देखने के लिए सिर्फ आधी रात को दमदम हवाई अड्डे पहुंच गए थे। भारत से हजारों हजार मील दूर स्थित ब्राजील के इस महान फुटबॉलर का जादू यहां भी कुछ ऐसा था। यह बात है तब कि जब खचाखच भरे ईडन गार्डेंस पर 24 सितंबर 1977 को न्यूयॉर्क कोस्मोस के लिए मोहन बागान के खिलाफ खेलने के लिए पेले पहुंचे थे। इस मुकाबले में मोहन बागान ने फुटबॉल के इस किंग को गोल नहीं करने दिया और लगभग 2-1 से मैच जीत ही लिया था लेकिन विवादित पेनल्टी के कारण स्कोर 2-2 से बराबर हो गया।
ड्रीम मैच में कोई गोल नहीं कर पाए पेले
इस ‘ड्रीम मैच’ में मोहन बागान के कोच पी के बनर्जी ने गौतम सरकार को पेले को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस मैच में गौतम ने कुछ ऐसा खेल दिखाया कि पेले गोल नहीं कर पाने के बावजूद खासा प्रभावित हुए। मोहन बागान ने मैच के बाद शाम को पेले का सम्मान समारोह रखा जहां उन्हें हीरे की अंगूठी दी जानी थी लेकिन ‘ब्लैक पर्ल’ की रूचि खिलाड़ियों से मिलने में ज्यादा थी। गोलकीपर शिवाजी बनर्जी सबसे पहले उनसे मिले। जब छठे खिलाड़ी (गौतम सरकार) के नाम की घोषणा हुई तो कई लोगों से घिरे पेले बैरीकेड के बाहर आए और उन्होंने उस खिलाड़ी को गले लगा लिया। इसके बाद पेले ने कहा कि, तुम 14 नंबर की जर्सी वाले हो जिसने मुझे गोल नहीं करने दिया।
इतना सुनकर गौतम सरकार स्तब्ध रहे गए। उन्होंने एक बार इस बारे में बताया था कि, चुन्नी दा (चुन्नी गोस्वामी) भी मेरे पास खड़े थे जिन्होंने यह सुना। उन्होंने मुझसे कहा कि, गौतम अब फुटबॉल खेलना छोड़ दो। अब यह तारीफ सुनने के बाद क्या हासिल करना बचा है। यह मेरे कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। वाकई । इस ड्रीम मैच का आयोजन करवाना कोलकाता मैदान के मशहूर फुटबॉल प्रशासक धिरेन डे के प्रयासों का नतीजा था जो उस समय मोहन बागान के महासचिव थे।
गौतम सरकार ने यह भी बताया कि, मैं विश्वास ही नहीं कर पाया जब धिरेन दा ने हमसे कहा कि पेले हमारे खिलाफ खेलेंगे। हमने कहा कि झूठ मत बोलो लेकिन बाद में पता चला कि यह सही में होने जा रहा है। हमारी रातों की नींद ही उड़ गई थी। तीन हफ्ते पहले ही से तैयारियां शुरू हो गई थी। उस मैच में पहला गोल करने वाले श्याम थापा ने बताया था कि, सिर्फ पेले के खिलाफ खेलने के लिए ही मैं ईस्ट बंगाल से मोहन बागान में आया था। इस मैच ने हमारे क्लब की तकदीर बदल दी। मोहन बागान ने इस मैच के चार दिन बाद आईएफए शील्ड फाइनल में ईस्ट बंगाल को हराया। इसके बाद रोवर्स कप और डूरंड कप भी जीता।
मैं फिर आऊंगा...
सात साल पहले 2015 में पेले दुर्गापूजा के दौरान फिर बंगाल पहुंचे थे लेकिन इस बार उनके हाथ में छड़ी थी। बढ़ती उम्र के बावजूद उनकी दीवानगी जस की तस थी और उनके मुरीदों में ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’ सौरव गांगुली भी शामिल थे। गांगुली ने नेताजी इंडोर स्टेडियम पर पेले के स्वागत समारोह में कहा था कि,मैने तीन विश्व कप खेले हैं और विजेता तथा उपविजेता होने में काफी फर्क होता है। तीन विश्व कप और गोल्डन बूट जीतना बहुत बड़ी बात है। इस मौके पर पेले ने भी कहा था कि, मैंने भारत आने का न्योता स्वीकार किया क्योंकि मुझे यहां के लोग बहुत पसंद हैं। अगर मैं आगे सक्षम हुआ तो फिर आऊंगा।