Sunday, December 22, 2024
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पैसों की दिक्कतों के बावजूद देश के लिए जीता मेडल, पैरा बैडमिंटन में इस खिलाड़ी ने किया कमाल

इंडोनेशिया में पैरा-बैडमिंटन इंटरनेशनल टूर्नामेंट में प्रेमा बिस्वास ने भारत के लिए मेडल जीता है। उन्होंने इस टूर्नामेंट में क्राउडफंडिंग की मदद ली थी।

Written By: Rishikesh Singh
Published : Sep 13, 2023 14:31 IST, Updated : Sep 13, 2023 14:31 IST
Prema Vishwas
Image Source : FACEBOOK (PREMA VISHWAS) Prema Vishwas

इंडोनेशिया के कुआलालंपुर में खेले जा रहे पैरा-बैडमिंटन इंटरनेशनल टूर्नामेंट में क्राउडफंडिंग की मदद से भाग लेने वाली उत्तराखंड की पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी प्रेमा बिस्वास ने भारत के लिए कांस्य पदक जीता है। उनके इस कमाल पर पूरे देश को गर्व है। 5 से 10 सितंबर तक चले इस टूर्नामेंट में कुल 15 देशों के पैरा-एथलीटों ने हिस्सा लिया था। प्रेमा के लिए यह मेडल जीत पाना कोई आसानस काम नहीं था। उन्हें खेल किट, इंडोनेशिया से वापसी उड़ान टिकट और वहां पर रहने की व्यवस्था के लिए पैसों का जुगाड़ करने में काफी ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। 34 साल की इस महिला पैरा एथलीट ने बताया था कि पैसों की मदद के लिए उन्होंने प्रशासन से संपर्क किया था। लेकिन किसी ने उनकी अपील पर ध्यान नहीं दिया।

इस तरह मिले पैसे

प्रेमा को इंडोनेशिया में भाग लेने के लिए पैसों की काफी जरूरत थी, तब हल्दवानी के रहने वाले एक व्यक्ती ने उनकी मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाएं। हल्दवानी के हेमंत गौनिया ने उनकी मदद करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया और उन्हें वहां एक अभियान शुरू किया। जिसकी मदद से सिर्फ 10 दिनों के अंदर 1.2 लाख रुपये जुटाए गए और इस मदद के कारण वह इस टूर्नामेंट में हिस्सा ले सकी।

जीत के बाद क्या बोलीं प्रेमा

भारत के लिए मेडल जीतने के बाद, प्रेमा ने कहा कि अगर राज्य सरकार ने मुझे खेल नीति के अनुसार नौकरी दी होती, तो मैं किसी से पैसे नहीं लेती। मेरे पास आवश्यक खेल उपकरण और यहां तक कि कोर्ट भी नहीं था, जहां मैं अभ्यास करती थी। लेकिन मैंने सब कुछ झेला और अपने देश को गौरवान्वित करने में कामयाब रही। मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मुझे अपने जीवन में इस ऐतिहासिक क्षण का अनुभव करने में मदद की।

प्रेमा ने आगे कहा कि मुझे अभी भी अपने बचपन के दिन याद है जब बच्चे मुझे व्हीलचेयर पर देखकर मेरे साथ बैडमिंटन खेलने से मना कर देते थे। तभी मैंने फैसला किया कि एक दिन मैं ऐसे मंच पर खेलूंगी जहां बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं। इन सबके बावजूद कठिन चुनौतियों के बावजूद, मैंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता है। मेरा अगला लक्ष्य ओलंपिक में खेलना है, लेकिन इसे हासिल करने के लिए मेरे पास वर्तमान में संसाधनों की कमी है। अगर मुझे अधिकारियों से सहायता मिले, तो मैं साबित कर सकती हूं कि विकलांग लोग भी खेलों में सफल हो सकते हैं।

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