National Sports Day: मेजन ध्यानचंद कहें या हॉकी के जादूगर कहें या फिर दद्दा बोलें यह सभी वाक्य उनके लिए पर्यायवाची हैं। देश में हर साल उनकी जयंती पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) जिले में हुआ था। आज उनकी 118वीं जयंती पर एक बार फिर से देश उन्हें याद कर रहा है। इस बार का मौका काफी खास इसलिए हो जाता है क्योंकि हाल ही में एक महीने में भारत ने खेल की दुनिया में काफी कुछ खास किया है। राष्ट्रीय खेल हॉकी की टीम ने एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी जीती, भारतीय फुटबॉल टीम ने सैफ कप जीता, नीरज चोपड़ा ने डायमंड लीग के बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्णिम इतिहास रचा और शतरंज की दुनिया में युवा रमेशबाबू प्रज्ञाननंदा ने सभी को गौरवान्वित किया। मेजर ध्यानचंद को इससे अच्छी श्रद्धांजलि उनकी 118वीं जयंती पर इन सभी उपलब्धियों से बढ़कर क्या ही हो सकती है।
अब अगर बात उपलब्धियों की हो रही है तो दद्दा की भी कोई एक नहीं अनेक उपलब्धियां रही हैं। उन्होंने अपने पूरे करियर में लगभग 1,000 गोल किए। उनके खेल के प्रशंसक भारत तक ही सीमित नहीं थे। उन्होंने विदेश में भी तिरंगे के मान को बढ़ाया था। स्वतंत्रता से पहले भी भारत की अगर चर्चा होती थी तो उसके सूत्रधार होते थे मेजर ध्यानचंद। 1936 ओलंपिक में तो उनके खेल के बाद स्वयं हिटलर भी प्रभावित हो गए थे। यहां तक की उन्हें जर्मनी की नागरिकता ऑफर करने वाला वाकिया तो काफी मशहूर भी है। लेकिन दद्दा एक सच्चे हिंदुस्तानी थे। एक खिलाड़ी के साथ-साथ वह भारतीय सैनिक भी थे। अब आइए जानते हैं कि आखिर कैसे सेना से हॉकी तक का सफर उन्होंने तय किया।
दद्दा के अंदर कैसे उमड़ा हॉकी के लिए प्यार
अपनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेजर ध्यानचंद ने 1922 में एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना की सेवा करने का प्रण लिया। इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जहां से वह हॉकी की तरफ झुकते चले गए। वह हॉकी खेलने के लिए सूबेदार मेजर तिवारी से प्रेरित हो गए। ध्यानचंद ने उन्हीं की देखरेख में हॉकी खेलना शुरू किया। हॉकी में उनके शानदार प्रदर्शन के कारण सेना में भी उनकी पदोन्नति होने लगी थी। 1927 में उन्हें 'लांस नायक' के रूप में नियुक्त किया गया। फिर 1932 में नायक और 1936 में सूबेदार के रूप में भी वह पदोन्नत किए गए। इसी वर्ष वह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान बने। सेना में भी वह इसके बाद लेफ्टिनेंट, फिर कैप्टन और आखिर में मेजर के रूप में पदोन्नत हुए। अब हॉकी की तरफ दद्दा कैसे गए यह भी हमने जान लिया तो एक बार उनकी उपलब्धियों पर भी नजर डाल लेते हैं।
मेजर ध्यानचंद की अनेक उपलब्धियां
1928 एम्सटर्डम ओलंपिक से उनकी सफलता का जादू दुनिया ने देखना शुरू किया था। उसके बाद 1928, 1932 और 1936 लगातार तीन ओलंपिक में उन्होंने भारत को गोल्ड मेडल दिलाया। मेजर ध्यान चंद ने इसके बाद फिर से देश की सेवा करते हुए आर्मी में अपना ध्यान देना शुरू कर दिया। 1956 में वह आर्मी की नौकरी से रिटायर हुए और फिर उन्हें उसी साल भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण पुरस्कार से भी नवाजा गया। सेना में उन्होंने एक साधारण सैनिक से मेजर तक का सफर तय किया। उनके जैसा खिलाड़ी, उनके जैसा व्यक्ति आज भले हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनकी उपलब्धियां और उन्होंने जो जादू दुनिया पर चलाया था उस पर आज भी हम चर्चा कर ही रहे हैं। 3 दिसंबर 1979 को दद्दा ने दुनिया को अलविदा कह दिया था पर देशवासियों के लिए सैकड़ों सालों तक याद रखने वाली या फिर कहें शायद कभी ना मिटने वाली अपनी उपलब्धियों की कहानियां छोड़ गए थे।
कैसे शुरू नेशनल स्पोर्ट्स डे या राष्ट्रीय खेल दिवस?
हॉकी की दुनिया में अपने जादू से मेजर ध्यानचंद ने जो अपना कद बनाया था उससे शायद कोई भी अपरिचित नहीं था। इसको देखते हुए और इस महान खिलाड़ी को श्रद्धांजलि देने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने 2012 में उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था। पर शायद इस महान व्यक्ति को यह सम्मान देने में काफी देर हो गई थी। फिलहाल तब से आज तक उनकी जयंती यानी 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर देश के हर खिलाड़ी को जो किसी भी खेल में देश का प्रतिनिधित्व कर रहा है, उसे इंडिया टीवी स्पोर्ट्स ढेर सारी शुभकामनाएं देता है।