Highlights
- 'आजादी का अमृत महोत्सव' में लिएंडर पेस की जीत का जश्न
- लिएंडर पेस ने 1996 ओलंपिक में जीता था ब्रॉन्ज मेडल
- पेस ने अटलांटा ओलंपिक में पदक जीतकर 44 साल के इंतजार को किया था खत्म
Azadi Ka Amrit Mahotsav: भारत को 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी मिली थी। 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं और देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के तमाम नागरिकों से ‘हर घर तिरंगा’ का आह्वान कर रहे हैं। इन 75 वर्षों में भारत ने कई ऐसे मौकों पर भी तिरंगा को लहराया जब विश्व में किसी ने इसकी उम्मीद नहीं की थी। इस कड़ी में भारतीय खिलाड़ियों का नाम प्रमुखता से सामने आता है जिसमें लिएंडर पेस का नाम संभवत: सबसे पहले आता है। पेस भारत के सर्वकालीन महानतम टेनिस प्लेयर हैं। उन्होंने आज से ढाई दशक पहले विश्व के सबसे बड़े खेलों में उस समय गौरवशाली पल दिए जब भारत को अंडरडॉग समझा जाता था।
लिएंडर पेस ने 1996 ओलंपिक में रचा इतिहास
लिएंडर पेस ने अटलांटा में आयोजित 1996 ओलंपिक्स में टेनिस मेंस सिंगल्स इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता। उनकी इस सफलता से ओलंपिक में भारत के एक अदद पदक का 16 साल लंबा इंतजार खत्म हो गया। 1980 मॉस्को ओलंपिक्स में हॉकी में मिले गोल्ड के बाद से भारत के खाली हाथ में पहला मेडल 23 साल के टेनिस प्लेयर ने डाला। यह 44 साल पहले, 1952 में आजाद भारत को मिले पहले इंडिविजुअल मेडल के बाद हासिल पहला व्यक्तिगत पदक था। 1952 में हेलसिंकी में हुए ओलंपिक गेम्स में भारत के केडी जाधव ने फ्री स्टाइल बेंटमवेट रेसलिंग में ब्रॉन्ज जीतकर भारत को पहला इंडिविजुअल मेडल दिलाया था। यकीनन लगभग आधी सदी के इंतजार को खत्म करके लिएंडर ने अटलांटा में इतिहास रच दिया था। यह आजाद भारत के सबसे गौरवशाली पलों में से एक था। कुछ वक्त के लिए ही सही, भारत ने एक स्पोर्टिंग नेशन के रूप में अपनी पहचान की थी। यह पेस का करिश्मा था जिसने खिलाड़ियों और खेल अधिकारियों को भरोसा दिलाया कि भारत एक नई शुरुआत करने के लिए तैयार है।
जज्बे और जीवट से बने नेशनल आइकॉन
1996 ओलंपिक्स में जब लिएंडर पेस गए थे तब देश के लिए उनकी पहचान किसी अजनबी की तरह थी। पेस ने अब तक कोई भी बड़ा टाइटल नहीं जीता था। लेकिन अटलांटा में उनके हुनर और जज्बे ने उन्हें नेशनल आइकॉन बना दिया। भारतीय टेनिस लीजेंड का मेडल तक का सफर कुल 6 मैचों से होकर गुजरा।
पेस ने ओलंपिक में दर्ज की आजाद भारत की सबसे बड़ी जीत
मेंस सिंगल्स के पहले राउंड में उनका मुकाबला अमेरिका के रिची रेनेबर्ग से हुआ। बीच मुकाबले में जब रेनेबर्ग मेडिकल वजहों से रिटायर हुए तब स्कोरलाइन पेस के पक्ष में 6-7, 7-6, 1-0 था।
राउंड ऑफ 32 में उन्होंने वेनेजुएला के निकोलस परेरा का सामना किया और बड़ी आसानी से 6-2, 6-3 से जीत दर्ज की।
पेस ने राउंड ऑफ 16 में स्वीडन के थॉमस एनक्विस्ट का सामना किया जो एक मुश्किल मुकाबला था। भारतीय टेनिस खिलाड़ी ने इस मैच को 7-5, 7-6 से अपने नाम किया।
लिएंडर अब क्वॉर्टरफाइनल में आ चुके थे, पूरे देश की निगाहें उनपर थीं। उनके सामने इटली के रेंजो फर्नेन थे। पेस के लिए ये मैच केकवॉक साबित हुआ। उन्होंने फर्नेन को 6-1, 7-5 से शिकस्त दे दी।
पेस के सामने अब उस वक्त के सबसे बड़े और लीजेंड्री टेनिस प्लेयर अमेरिका के आंद्रे अगासी आ चुके थे। एक और जीत सिल्वर मेडल को पक्का कर देती पर चुनौती मुश्किल थी। इस मैच में भारतीय युवा खिलाड़ी ने अपने हौंसले और जीवट से विरोधियों को भी अपना मुरीद बना लिया। पहले सेट का फैसला टाईब्रेक में हुआ, पेस चूक गए, अगासी ने मुकाबले को 7-6, 6-3 से जीता। इसे 1996 ओलंपिक का सबसे बड़ा और यादगार मैच माना गया।
ब्रॉन्ज मेडल मैच में लिएंडर की टक्कर ब्राजील के फर्नान्डो मेलिगेनी से हुई। पहले सेट में पिछली हार की कसक को ढो रहे पेस को हार मिली। इसके बाद, इस खिलाड़ी के अंदर छिपा चैंपियन बाहर आया। वे देखते ही देखते कोर्ट पर छा गए। मैच को 3-6, 6-2, 6-4 से जीत लिया और ‘गेम ऑफ व्हाइट्स’ समझे जाने वाले टेनिस का ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडल भारत के नाम कर दिया।
अटलांटा ओलंपिक से सामने आया चैंपियन
17 जून 1973 में कलकत्ता में जन्मे लिएंडर पेस ने इस जीत के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपने करियर में मेंस डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में कुल 18 ग्रैंड स्लैम टाइटल जीते। उन्हें दुनिया का सबसे महान डबल्स प्लेयर माना जाता है।
पेस को 1996-97 में भारत के सबसे बड़े खेल सम्मान मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से नवाजा गया। इससे पहले, 1990 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला, 2001 में पद्मश्री से सम्मानित किए गए और 2014 में पेस को तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।