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अभिलाष टॉमी ने गोल्डन ग्लोब रेस में भारत का नाम किया ऊंचा, जानें इनकी असल कहानी

अभिलाष टॉमी ने गोल्डन ग्लोब रेस 2022 में शानदार प्रदर्शन करते हुए दूसरा स्थान हासिल किया है। उन्होंने पांच सालों से बाद दमदार वापसी की है।

Written By: Rishikesh Singh
Published on: April 30, 2023 10:56 IST
Abhilash Tomy - India TV Hindi
Image Source : TWITTER (@INDIANNAVY) अभिलाष टॉमी

भारतीय नाविक कमांडर अभिलाष टॉमी (सेवानिवृत्त) गोल्डन ग्लोब रेस (जीजीआर) में 236 दिनों तक नाव चलाने के बाद आखिरकार जमीन पर पैर रखेंगे, जो दुनिया भर में इकलौती नॉन-स्टॉप नावों की रेस है। कमांडर टॉमी शनिवार को फ्रांस के लेस सेबल्स डी ओलोंने में दोपहर 1:30 बजे साउथ अफ्रीका के नाविक कर्स्टन न्यूसचफर के बाद दूसरी दौड़ पूरी करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, पांच सालों पहले इसी इवेंट के कारण उनके पीठ में गंभीर चोटे आई थी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और शानदार वापसी की।

नौसेना स्टाफ के प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार और भारतीय नौसेना के सभी कर्मियों ने कमांडर टॉमी की उपलब्धि की सराहना की और उन्हें दौड़ में दूसरा स्थान हासिल करने के लिए बधाई दी। नौसेना ने अपने सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरे शेयर करते हुए कैपशन दिया।

इंजरी के बाद लिया था फैसला

सेवानिवृत्त नौसेना कमांडर और तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड के विजेता भी रह चुके, अभिलाष टॉमी ने 22 मार्च, 2022 को गोल्डन ग्लोब रेस 2022 में अपनी भागीदारी की घोषणा की थी, जो सबसे खतरनाक प्रयासों में से एक है। उन्होंने उस वक्त कहा था कि "मैं बयानात पर गोल्डन ग्लोब रेस 2022 में भाग लूंगा। यह मेरे लिए एक बड़ी बात है।" 18 सितंबर 2018 को, वह साउथ हिंद महासागर में रेस रहे थे जब वह एक तूफान में फंस गए थे। तीन नावों में से दो नाव उस तूफान का सामना नहीं कर सकी और एक नाव बच गई। जिसमें अभिलाष टॉमी सवार थे। लेकिन उस दौरान उन्हें कई गंभीर चोट आई थी।

हैरान करने वाली कहानी

18 सितंबर, 2018 को कमांडर टॉमी की नौका का एक तूफान में एक्सिडेंट हो गया था। जिसके कारण उन्हें समुद्र में पीठ में चोट लग गई थी। वह जीजीआर 2018 के दौरान साउथ हिंद महासागर में फंसे हुए थे, जो एक नॉन-स्टॉप, दुनिया भर में नौका रेस थी। वह एक तूफान में बह गए थे जिसने उसकी नाव को बर्बाद कर दिया और ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका के बीच आधे रास्ते में फंस गए। एक जटिल अंतरराष्ट्रीय प्रयास के बाद 83 दिनों तक समुद्र में रहने के बाद उन्हें बचाया गया था। उन्हें एक भारतीय नौसेना पोत में स्थानांतरित कर दिया गया था और भारत आने के दो दिन बाद, उनकी रीढ़ में टाइटेनियम की छड़ें डाली गईं।

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