नई दिल्ली। भारत की स्टार भारोत्तोलक मीराबाई चानू ओलंपिक की महिला 49 किग्रा स्पर्धा में मजबूत दावेदारों में से एक है और वह 2016 रियो ओलंपिक के निराशाजनक प्रदर्शन की भरपायी तोक्यो ओलंपिक में पदक जीतकर करना चाहेंगी। तोक्यो के लिये क्वालीफाई करने वाली एकमात्र भारोत्तोलक मीराबाई का रियो ओलंपिक में क्लीन एवं जर्क में तीन में से एक भी प्रयास वैध नहीं हो पाया था जिससे 48 किग्रा में उनका कुल वजन दर्ज नहीं हो सका था।
पांच साल पहले के इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद उन्होंने वापसी की और 2017 विश्व चैम्पियनशिप में और फिर एक साल बाद राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपने आलोचकों को चुप कर दिया। उन्होंने पीठ की परेशानी से भी वापसी की जिसके कारण वह 2018 में अच्छा नहीं कर सकीं थी। साथ ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय महासंघ के नये वजन वर्ग को शामिल किये जाने के बाद अपने 48 किग्रा वजन को बदलकर 49 किग्रा कर दिया।
मीराबाई का रियो में जिस वजह से निराशाजनक प्रदर्शन रहा था, वही अब उनकी मजबूती बन गयी है। 26 साल की इस खिलाड़ी ने लगातार अपने वर्ग में सुधार किया और वह शीर्ष प्रतियोगिताओं में पदक की दावेदार बनी रहीं। बल्कि मीराबाई के नाम अब महिला 49 किग्रा वर्ग में क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकार्ड भी है। उन्होंने तोक्यो ओलंपिक से पहले अपने अंतिम टूर्नामेंट एशियाई चैम्पियनशिप में 119 किग्रा का वजन उठाया और इस वर्ग में स्वर्ण और ओवरआल वजन में कांस्य पदक जीता।
मीराबाई जब 24 जुलाई को भारोत्तोलन एरेना में उतरेगी तो इस प्रदर्शन का असर उनके आत्मविश्वास पर दिखायी देगा। हाल के वर्षों में उनका क्लीन एवं जर्क में शानदार प्रदर्शन उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे ही रखता आया है, पर उनका स्नैच स्पर्धा में प्रदर्शन अकसर परेशानी का कारण बनता रहा है। कंधे की चोट की वजह से वह स्नैच में जूझती रही हैं जिसे वह खुद भी स्वीकार करती हें।
मीराबाई अपनी कमजोरियों को जानती हैं और डा.आरोन होरशिग के साथ इन पर काम कर रही हैं जो पूर्व भारोत्तोलक से फिजियो थेरेपिस्ट और स्ट्रेंथ एवं कंडिशिनंग कोच बने। वह अमेरिका के सेंट लुईस से 50 दिन की ट्रेनिंग के बाद तोक्यो पहुंची हैं।