भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही टोक्यो ओलंपिक में ग्रेट ब्रिटेन से हारकर ब्रान्ज मेडल जीतने से चूक गई हो लेकिन टीम चौथे स्थान पर रहुते हुए इतिहास रच दिया। रानी रामपाल की कप्तानी वाली महिला हॉकी टीम एक समय क्वार्टर फाइनल में पहुंचने के लिए संघर्ष कर रही थी लेकिन टीम ने अपने ग्रुप के आखिर दोनों मैच में जीत दर्ज करते हुए न केवल दूसरे दौर में जगह बनाई बल्कि ऑस्ट्रेलिया जैसी चैंपियन टीम को 1-0 से हराते हुए सेमीफाइनल में प्रवेश किया। हालांकि सेमीफाइनल में अर्जेंटीना के हाथों हारने के बाद रानी रामपाल की अगुवाई वाली टीम के पास ब्रान्ज मेडल जीतने का मौका था लेकिन टीम मामूली अंतर से मेडल जीतने से दूर रह गई।
भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही मेडल न जीत सकी लेकिन पूरे देश के लोगों का दिल और सम्मान जीतने में कामयाब रही। यही वजह है कि भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल की पूरा देश जमकर तारीफ कर रहा है। हालांकि रानी के लिए टोक्यो तक पहुंचना इतना आसान नहीं रहा।
गरीब घर से ताल्लुक रखने वाली रानी के लिए हॉकी में करियर बनाना और टीम इंडिया में जगह बनाने तक का सफर मुश्किलों से भरा रहा। रानी के परिवार ने इस बारे में इडिया टीवी से खास बातचीत में अपनी बेटी के संघर्ष की कहानी साक्षा की।
रानी रामपाल के पिता ने इडिया टीवी से बातचीत में कहा, "ये जीत है मेहनत से खेली बेटी ओलंपिक में जाना और ऐसे खेलना जीत ही है, स्वागत करेंगे जैसा सोचा था। स्कूल में हॉकी खेलना शुरू किया था, हमने मना किया फाइनेंशियल स्थिति कमजोर थी, बेटी अड़ी रही, उसके कोच बलदेव ने कहा एक हफ्ता छोड़ दो अच्छा खेली तो सिखाऊंगा, समाज के लोगो ने मना किया कि बेटी निक्कर में खेलेगी, लड़की है मत भेजो पर हमने भेजा। जो कुछ है कोच गुरु बलदेव जी की वजह से है।"
वहीं, भाई संदीप ने कहा, "अच्छा खेली, ये जीत है तिरंगे के साथ स्वागत करेंगे।" मां राममूर्ति ने कहा, "खुश है थोड़ी मायूस लगीं।हमने कहा मायूस न हो अच्छा खेली तो बोली खुश हूं, घर आएंगी तो मीठा खिलाएंगी बेटी को, कल बात हुई थी इंडिया टीवी के माध्यम से। मैंने बेटी को कहा-बढ़िया खेली बेटी मायूस न होना।"