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कभी अनाज बेचकर खरीदी थी 'हॉकी स्टिक', अब ट्रेनिंग करने अमेरिका जाएगी झारखण्ड की पुंडी

पुंडी बताती है कि तीन साल पहले जब उसने हॉकी खेलना शुरू किया था और झारखंड के अन्य हॉकी खिलाड़ियों की तरह नाम रौशन करने का सपना देखा था, तब उसके पास हॉकी स्टिक तक नहीं थी।

Reported by: IANS
Published on: February 16, 2020 12:54 IST
Hockey Stick- India TV Hindi
Image Source : TWITTER Hockey Stick

रांची, 16 फरवरी (आईएएनएस)| झारखंड के नक्सल प्रभावित जिला खूंटी के एक छोटे से गांव हेसल की रहने वाली पुंडी सारू ने एक सपना देखा था। सपना था हॉकी के मैदान में दौड़ते-दौड़ते सात समुद्र पार जाने की। पुंडी के उस सपने को अब पंख लग चुका है।

पुंडी खूंटी के हेसल गांव से निकलकर सीधे अमेरिका जाने वाली है। लेकिन जरा ठहरिए, पुंडी के इस सपने के सच होने की कहानी इतनी आसान नहीं रही। काफी संघर्ष के बाद पुंडी का यह सपना पूरा हुआ है।

पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर की पुंडी का बड़ा भाई सहारा सारू इंटर (12वीं) तक की पढ़ाई कर छोड़ चुका है। पुंडी नौंवी कक्षा की छात्रा है। पुंडी की एक और बड़ी बहन थी, जो अब नहीं रही। पिछले साल मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो जाने के कारण उसने अपने गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। उस वक्त पुंडी टूट चुकी थी।

उस दौर में पुंडी दो महीने तक हॉकी से दूर रही थी, मगर वह हॉकी को भूली नहीं थी। पुंडी के पिता एतवा उरांव अब घर में रहते हैं। पहले वे दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे। मजदूरी करने के लिए हर दिन साइकिल से खूंटी जाते थे। वर्ष 2012 में एक दिन साइकिल से लौटने के दौरान किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी, जिससे उनका हाथ टूट गया। प्लास्टर से हाथ जुड़ गया, लेकिन उसके बाद से वे मजदूरी करने लायक नहीं रहे।

पुंडी बताती है कि तीन साल पहले जब उसने हॉकी खेलना शुरू किया था और झारखंड के अन्य हॉकी खिलाड़ियों की तरह नाम रौशन करने का सपना देखा था, तब उसके पास हॉकी स्टिक तक नहीं थी।

पुंडी ने आईएएनएस को बताया, "हॉकी स्टिक खरीदने के लिए घर में पैसे नहीं थे, तब मैंने मडुआ (एक प्रकार का अनाज) बेचा और छात्रवृत्ति में मिले 1500 रुपये को उसमें जोड़कर हॉकी स्टिक खरीदी।"

पुंडी के पिता एतवा सारू जानवरों को चराने का काम करते हैं। मां चंदू घर का काम करती है। घर की पूरी अर्थव्यवस्था खेती और जानवरों के भरण पोषण और उसके खरीद बिक्री पर निर्भर है। घर में गाय, बैल, मुर्गा, भेड़ और बकरी है।

पुंडी से उसकी दिनचर्या के बारे में पूछा तो उसने कहा, "पिछले तीन साल से हर दिन अपने गांव से आठ किलोमीटर साइकिल चलाकर हॉकी खेलने खूंटी के बिरसा मैदान जाती हूं।"

खूंटी में खेलते हुए पुंडी कई ट्रॉफी जीत चुकी है। पुंडी के प्रशिक्षक भी उसके मेहनत के कायल हैं। वे कहते हैं कि पुंडी मैदान में खूब पसीना बहाती है।

अमेरिका जाने के लिए चयन होने के बाद पुंडी ने आईएएनएस से कहा, "हॉकी स्टिक खरीदने से लेकर मैदान में खेलने तक के लिए काफी जूझना पड़ा है। लेकिन लक्ष्य सिर्फ अमेरिका जाना नहीं है। हमें निक्की दीदी (भारतीय हॉकी टीम की सदस्य निक्की प्रधान) जैसा बनना है। देश के लिए हॉकी खेलना है।"

पुंडी कहती है, "पहले पापा बोलते थे कि खेलने में इतनी मेहनत कर रही हो, क्या फायदा होगा? कुछ काम करो तो घर का खर्च भी निकलेगा, लेकिन मां ने हमेशा साथ दिया और उत्साहित किया।"

उल्लेखनीय है कि रांची, खूंटी, लोहरदगा, गुमला और सिमडेगा की 107 बच्चियों को रांची के 'हॉकी कम लीडरशिप कैम्प' में प्रशिक्षण दिया गया। यह ट्रेनिंग यूएस कंसोलेट (कोलकाता) और स्वयंसेवी संस्था 'शक्तिवाहिनी' द्वारा आयोजित था। सात दिनों के कैम्प में पांच बच्चियों का अमेरिका जाने के लिए चयन हुआ, जिसमें पुंडी का नाम भी शामिल है।

यूएस स्टेट की सांस्कृतिक विभाग (असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ यूएस, डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट, फॉर एडुकेशनल एंड कल्चरल अफेयर) की सहायक सचिव मैरी रोईस बताती हैं कि चयनित सभी लड़कियां 12 अप्रैल को यहां से रवाना होंगी और अमेरिका के मिडलबरी कॉलेज, वरमोंट में पुंडी को हॉकी का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

शक्तिवाहिनी के प्रवक्ता ऋषिकांत ने आईएएनएस से कहा कि इन लड़कियों के साथ दो महिलाएं और पुरुष भी अमेरिका जाएंगे। इन लड़कियों को वहां 21 से 25 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

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