लखनऊ: विश्व रिकॉर्डधारी पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा दुनिया की सात प्रमुख पर्वत चोटियों में आखिरी बची माउंट विन्सन को फतह करने के लिये गुरुवार को रवाना होंगी। दक्षिणी ध्रुव में अंटार्कटिका स्थित ‘माउंट विन्सन‘ दुनिया के सातों महाद्वीपों की प्रमुख पर्वत चोटियों में से आखिरी शिखर है, जिस पर अरुणिमा ने अब तक विजय हासिल नहीं की है। इस पर्वतारोही ने इस असाधारण उपलब्धि के सफर पर रवाना होने से पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की।
अरुणिमा ने बताया कि प्रधानमंत्री ने उन्हें माउंट विन्सन पर लहराने के लिये तिरंगा देकर विदा किया और कामयाबी के लिये आशीर्वाद तथा शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि वह इस बेहद मुश्किल परिस्थितियों वाली पर्वत चोटी फतह करके सभी प्रमुख चोटियों पर तिरंगा लहराने का अपना लक्ष्य हासिल करना चाहती हैं।
उन्होंने बताया कि वह माउंट विन्सन के सफर के तहत 13 दिसम्बर को चिली के पुंटा एरीना के लिये रवाना होंगी। उसके बाद वह 16 दिसम्बर को पुंटा से यूनियन ग्लेशियर जाएंगी। वहां से 18 तारीख को आरोहण शुरू होगा। उम्मीद है कि वह 29 या 30 दिसम्बर को माउंट विन्सन पर पहुंच जाएंगी।
अरुणिमा ने बताया कि इस सफर पर उनके साथ उनके पति गौरव सिंह भी जाएंगे। इस पर्वत शिखर पर चढ़ाई के लिये उन्होंने प्रशिक्षण भी लिया है। एक कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की एकमात्र महिला अरुणिमा अब तक एवरेस्ट (एशिया) के साथ-साथ किलीमंजारो (अफ्रीका), एल्ब्रुस (रूस), कास्टेन पिरामिड (इंडोनेशिया), किजाश्को (आस्ट्रेलिया) और माउंट अकंकागुआ (दक्षिण अमेरिका) पर्वत चोटियों पर फतह हासिल कर चुकी हैं।
उन्होंने बताया कि अब माउंट विन्सन उनकी आखिरी मंजिल है, जिसे पाकर वह नया इतिहास रचना चाहती हैं।
गौरतलब है कि पूर्व में वॉलीबॉल खिलाड़ी रहीं अरुणिमा को अप्रैल 2011 में लखनऊ से नयी दिल्ली जाते वक्त कुछ बदमाशों ने चलती रेलगाड़ी से बाहर फेंक दिया था। उसी वक्त दूसरी पटरी पर आयी ट्रेन से उनका बांयां पैर कट गया था।
लम्बे समय तक अस्पताल में रहने के बाद अरुणिमा ने एक कृत्रिम पैर लगवाकर एवरेस्ट फतह करने का इरादा किया था और 21 मई 2013 को मंजिल पाकर दुनिया को चौंका दिया था। उसके बाद उन्होंने सभी सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों पर आरोहण का इरादा किया था।
अरुणिमा की तमाम उपलब्धियों पर सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री‘ अवार्ड से नवाजा था। हाल में उन्हें ब्रिटेन की एक यूनीवर्सिटी ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया था।