नई दिल्ली| भारतीय फुटबाल टीम हर गुजरते वक्त के साथ बेहतर हो रही है लेकिन मैदान पर निरंतरता की कमी उसे पीछे की तरफर खींचती रही है। इसके अलावा कई ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे भारतीय टीम अभी जूझ रही है और आने वाले समय में इन समस्याओं के और गहराने के आसार हैं।
भारतीय टीम के सभी खिलाड़ी अभी आईएसएल और आई-लीग में खेलने में व्यस्त हैं। भारत का अगला इंटरनेशनल एसाइन्मेंट 26 मार्च को है, जब वह 2022 फीफा विश्व कप क्वालीफायर में एशियाई चैम्पियन कतर से भिड़ेगी। इसके बाद भारत को चार जून को बांग्लादेश से भिड़ना और फिर नौ जून को अफगानिस्तान से भिड़ना है।
इन तीनों टीमों के खिलाफ भारत बीते साल ड्रॉ खेल चुका है। अफगानिस्तान और बांग्लादेश के खिलाफ उसे जीतना चाहिए था लेकिन रक्षात्मक खेल के कारण वह ड्रॉ को मजबूर हुआ। इससे उसके क्वालीफायर में आगे जाने की सम्भावनाओं को आघात लगा। कतर के खिलाफ ड्रॉ बीते साल और हाल के कुछ वर्षो में भारत की सबसे बड़ी सफलता कही जा सकती है लेकिन इसके अलावा टीम बीते साल कोई और सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकी।
भारत ने बीते साल कुल 13 मुकाबले खेले। इनमें से दो में उसकी जीत हुई और चार मुकाबले ड्रॉ रहे। बाकी के मैचों में उसे हार मिली। भारत ने एशियन कप में 6 जनवरी, 2019 को थाईलैंड पर 4-1 की जीत के साथ नए साल की शुरुआत की थी। उस समय स्टीफेन कांस्टेनटाइन भारत के कोच थे। भारत को एशियन कप में 10 जनवरी को संयुक्त अरब अमीरात से 0-2 से हार मिली और फिर 14 जनवरी को बहरीन ने उसे 1-0 से हराया। कांस्टेनटाइन ने इस टूर्नामेंट के बाद कोच पद त्याग दिया।
इसके बाद क्रोएशिया के लिए विश्व कप खेल चुके इगोर स्टीमाक को मुख्य कोच बनाया गया। उनकी देखरेख में भारत ने थाईलैंड में आयोजित किंग्स कप में थाईलैंड को 1-0 से हराकर शानदार शुरुआत की लेकिन उसके बाद वह जीत के लिए तरस गई। इस दौरान उसे कुराकाओ, ताजिकिस्तान, उत्तर कोरिया, ओमान (दो बार) से हार मिली।
भारतीय टीम अभी कई मूलभूत समस्याओं से गुजर रही है। कप्तान सुनील छेत्री को छोड़ दिया जाए तो भारत के पास और कोई स्ट्राइकर नहीं है। लगभग एक दशक से भारत की अपेक्षाओं का भार अपने कंधे पर ढो रहे छेत्री अगर चोटिल हों या फिर खराब फार्म में हों तो भारत के पास उनका सब्सीट्यूट नहीं है।
इस समस्या के खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं क्योंकि जमशेदपुर एफसी को छोड़कर आईएसएल के अधिकांश क्लबों में स्ट्राइकर की भूमिका विदेशी खिलाड़ी निभा रहे हैं। कोच स्टीमाक को शिद्दत से एक अच्छे स्ट्राइकर की तलाश है और आईएसएल क्लबों के रवैये के कारण वह तलाश पूरी होती नहीं दिख रही है।
स्टीमाक इस सम्बंध में कई बार बात कर चुके हैं। वे मानते हैं कि आईएसएल एक शानदार प्लेटफार्म है, जहां युवा खिलाड़ियों को सीनियर विदेशी खिलाड़ियों के साथ खेलने और वक्त गुजारने का मौका मिलता है लेकिन नेचुरल स्ट्राइकर्स की कमी को लेकर उनकी चिंता जायज है और भारतीय टीम के पूर्व कप्तान बाइचुंग भूटिया इस मामले में स्टीमाक से इत्तेफाक रखते हैं।
भूटिया ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "हां, हमारे यहां नेचुरल स्ट्राइकर्स की कमी है। अब हमारे कप्तान और बेहतरीन स्ट्राइकर छेत्री समय के साथ बूढ़े हो रहे हैं और उनका स्थान लेने वाला कोई दिखाई नहीं दे रहा है। यही कारण है कि हमारी टीम मौके तो बना रही है लेकिन उन्हें भुना नहीं पा रही है। हमे इसे गम्भीरता से लेना चाहिए क्योंकि छेत्री के बाद इस क्षेत्र में सूनापन आ जाएगा, जो टीम के लिए हितकर नहीं होगा।"
खिलाड़ियों की चोट और उनके ट्रीटमेंट, रीहैब और कुल मिलाकर उनके मैनेजमेंट को लेकर भी भारतीय टीम की तैयारी पूरी नहीं है। स्ट्राइकर जेजे लालपेखलुवा और डिफेंडर संदेश झिंगन लम्बे समय से चोटिल हैं। 2019 में आधे साल तक ये नहीं खेले। ऐसे में अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ को खिलाड़ियों के ट्रीटमेंट के नए साधनों और बेहतर मैनेजमेंट के बारे में सोचना होगा। झिंगन और जेजे हालांकि इस साल वापसी कर रहे हैं लेकिन उनकी गैरमौजूदगी में टीम को पहली ही काफी नुकसान हो चुका है।
नेचुरल स्ट्राइकर की कमी और डिफेंस की अनुभवहीनता के कारण ही स्टीमाक की देखरेख में भारतीय टीम ने नौ मैचों में 10 गोल किए हैं लेकिन 18 गोल खाए हैं। भूटिया हालांकि आंकड़ों पर ध्यान नहीं देते। भूटिया ने कहा कि स्टीमाक की देखरेख में भारतीय टीम के खेल के स्तर में सुधार आ रहा है लेकिन उसे अपनी निरंतरता पर ध्यान देना होगा और लगातार मैच जीतने होंगे।
भूटिया ने कहा, "मुझे इस बात की खुशी है कि हमारी टीम अच्छी फुटबाल खेल रही है। इसे लेकर मैं आश्वस्त हूं। यह टीम एक इकाई के तौर पर खेल रही है। कुछ मैच हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहे लेकिन इसके बावजूद मैं चिंता वाली कोई बात नहीं देख रहा हूं। हमें लगातार मैच जीतने होंगे। इससे खिलाड़ियों मे आत्मबल आएगा। कतर जैसी टीम से ड्रॉ खेलने के बाद हम बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भी ड्रॉ खेलते हैं। यह खेल में कमी नहीं सोच में कमी का नतीजा है।"