हिमा दास ये नाम आजकल हर भारतीय की जुबान पर है और हो भी क्यों ना 18 साल की इस लड़की ने कारनामा ही कुछ ऐसा किया है। हिमा की कहानी भारतीय क्रिकेट के सबसे सफलतम कप्तानों में शुमार एम एस धोनी से मिलती-जुलती है। जिस तरह से धोनी क्रिकेटर से पहले फुटबॉलर थे ठीक उसी तरह हिमा का भी पहला प्यार फुटबॉल था। धोनी की तरह ही उन्होंने भी फुटबॉल छोड़ दूसरे गेम को अपनाया और यहीं से शुरू हुई एक किसान की बेटी के वर्ल्ड चैंपियन बनने की कहानी।
''मुझे पूरा विश्वास था कि हिमा गोल्ड मेडल जीतेगी। आप सभी उसके लिए दुआएं कीजिए। ये उसकी लगन और मेहनत का नतीजा है।''
ये शब्द हैं हिमा की इस उपल्बधि पर फूले नहीं समा रहे उनके कोच निपुन दास के। जिन्होंने हिमा को यहां तक पहुंचाने में उनका साथ कड़ी मेहनत की।
हिमा ने वर्ल्ड अंडर-20 चैम्पियनशिप में 400 मीटर इवेंट में गोल्ड मेडल जीत कर तहलका मचा दिया। उन्होंने फिनलैंड के राटिना स्टेडियम में फाइनल में 51.46 सेकेंड का समय निकालते हुए बता दिया कि उनके पैरों में पंख लगे हुए हैं। हिमा एथलेटिक्स चैंपियनशिप की ट्रैक इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय बन गई हैं।
हिमा इस कामयाबी पर उनके कोच निपुन दास ने इंडिया टीवी से खास बातचीत में कहा कि, ''हिमा मेरी उम्मीदों पर खरी उतरी। मुझे गर्व है उसपर, उसने पूरे देश का नाम रोशन किया है।''
निपुन दास ने हिमा के यहां तक पहुंचने का पूरा सफर हमारे साथ शेयर करते हुए बताया कि, ''मैं हिमा को पिछले डेढ़ साल से कोच कर रहा हूं। हिमा को एथलेटिक्स से पहले फुटबॉल खेला करती थी। उसे फुटबॉल में काफी रूचि थी। गुवाहाटी में जहां एथलेटिक्स का इवेंट साल में एक बार होता है वहीं फुटबॉल टूर्नामेंट साल भर होते रहते हैं और वहां लोकल टूर्नामेंट में खेलकर वो पैसे कमाती थी। मैं उसे फुटबॉल छोड़कर एथलेटिक्स में लाने में कामयाब रहा।''
निपुन ने बताया कि वो जनवरी 2017 से हिमा को ट्रेन कर रहे हैं। उन्होंने बताया, ''मैंने जनवरी 2017 में गुवाहाटी के इंदिरा गांधी स्टेडियम में पहली बार हिमा को दौड़ते हुए देखा। जिसके बाद मैं उससे कफी प्रभावित हो गया। मैंने उसके घरवालों से बात की और स्टेडियम के पास हिमा के लिए एक कमरा किराए पर लिया। उसके रहने और खाने का खर्चा उठाया।''
यहीं शुरू हुआ हिमा का असली सफर, गुवाहटी में रहकर वो अपने द्रोणाचार्य की देखरेख में दिन-रात प्रैक्टिस करती। नतीजा ये हुआ कि छोटे से समय में उन्होंने एक बाद एक नेशनल- इंटरनेशनल लेवल पर मेडल्स जीतने शुरु कर दिए।
निपुन दास ने बताया, ''पहली बार हिमा ने हैदराबाद में हुए एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिफ में 200 मीटर में सिल्वर जीतकर मई में वर्ल्ड अंडर-18 चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाई किया। जहां वो 7वीं पोजीशन पर रही। इसके बाद कीनिया में हुई IAAF वर्ल्ड अंडर-18 चैंपियनशिप में वो ना सिर्फ 5वें नंबर पर रही बल्कि 200 मीटर में उन्होंने अपनी व्यक्तिगत बेस्ट टाइमिंग भी निकाली।''
हिमा 200 मीटर में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही थी लेकिन इसके बावजूद उनके कोच को लगा कि वो उन्हें 400 मीटर खिलाना चाहिए क्योंकि 400 मीटर में दो इवेंट होते हैं एक व्यकितगत और एक रिले।
400 मीटर के ट्रायल्स में हिमा का टाइमिंग 57 सेकेंड था लेकिन कोच को पूरा भरोसा था कि लगातार प्रैक्टिस के बाद हिमा अपना टाइमिंग 53-54 सेकेंड कर सकती हैं।
निपुन बताते हैं, ''2017 सितंबर में ईस्ट जोन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिमा ने 55.57 सेकेंड का समय निकालकर गोल्ड मेडल अपना नाम किया। इसके बाद नेशनल ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप के दौरान मैंने चीफ कोच बहादुर सिंह से कहा कि आप हिमा को एक बार नेशनल कैंप में शामिल कीजिए वो जरूर अच्छा करेगी।''
हिमा भी अपने कोच के भरोसे पर खरी उतरी और NIS पटियाला में कैंप के बाद उन्होंने एशियन गेम्स के लिए हुए ट्रायल इवेंट्स में 200 मीटर में 23.59 का समय निकालकर गोल्ड मेडल जीता।
हाल ही में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में 400 मीटर में हिमा छठे नंबर पर रही थी। हालांकि उनका टाइमिंग बेहतर हुआ था। हिमा ने व्यक्तिगत बेस्ट टाइमिंग निकालते हुए 51.32 सेकेंड का समय लिया।
हिमा के कोच निपुण दास कहते हैं, ''मुझे पूरी उम्मीद है कि हिमा ऐसा ही प्रदर्शन जारी रखते हुए एशियन गेम्स में भी गोल्ड मेडल जीतेंगी। आप भी उसके लिए दुआ कीजिए।''